सोमवार, 7 सितंबर 2020

आईएएस बनने के लिए करें निबंध और सामान्य अध्ययन पत्र की साझा तैयारी



सिविल सेवा के वर्तमान तैयारी में एक सुझाव मैं सभी अभ्यर्थियों को देना चाहूँगा | निबंध के पत्र की महत्ता  काफी बढ़ गयी है | और इस पत्र की तैयारी का कोई बंधा-बंधाया फार्मूला नहीं है | पत्र-पत्रिकाएं, अच्छी किताबें, आपके जीवन का अच्छा-बुरा सारा अनुभव, आपकी भाषा-सब मिलकर आपको निबंध के पत्र एवं साथ ही  साक्षात्कार के लिए तैयार करती है | 

निबंध के पत्र की तैयारी में अभ्यास का काफी महत्त्व है | मेरा सुझाव है की सामान्य अध्ययन के चारों पत्रों में  लगभग एक तिहाई से ज्यादा टॉपिक ऐसे हैं जिन्हें अगर आप निबंध के लिए तैयार कर ले तो एक पंथ दो काज होंगे | हाँ, वही प्रश्न निबंध की सामान्य अध्ययन में आने पर 1250 शब्दों की जगह 150 -250 शब्दों में सुन्दर, सटीक एवं प्रासंगिक उत्तर लिख पाने की कला आपमें होनी चाहिए | पिछले वर्ष सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र में आये एक प्रश्न को मैं यहाँ आपकी मार्गदर्शन के लिए निबंध एवं  के उत्तर, दोनों के रूप में  हूँ




 

निंबंध - क्या हम वैश्विक पहचान के लिए अपनी स्थानीय पहचान खोते जा रहे हैं? युक्तियुक्त विवेचन करें  |  (125  अंक - 1250 शब्द )
या 
क्या पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर हावी हो रही है ? अपने तर्कसंगत विचार रखे | 

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फैसला रखना | 
जहाँ कतरा समंदर से मिला,  कतरा नहीं रहता | 
-बशीर बद्र 

वैश्विक पहचान और स्थानीय पहचान को ऊपर के शेर में दिए गए उदहारण से बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है |  वैश्विक पहचान का मतलब है एक विश्व मानव के रूप में हमारी पहचान | वहीं स्थानीय पहचान हमें हमारी जड़ों, हमारे निवास स्थान, समाज, क्षेत्र एवं देश  के साथ जोड़ते हुए बनी हुयी पहचान है | स्थानीय पहचान को सूक्ष्म स्तर पर समाज या  समुदाय के स्तर तक भी देखा जा सकता है | मगर जब हम वैश्विक पहचान के सन्दर्भ में तुलना करे तो स्थानीय पहचान से हमारी भारतीय पहचान अपेक्षित है |  अगर हम पूरी मानव सभ्यता की बात करे तो वैश्विक पहचान भी जरुरी है |  मगर वैश्विक पहचान में स्थानीय पहचान गुम नहीं होनी चाहिए | स्थानीय पहचान और वैश्विक पहचान उसी तरह आपस में जुड़े होने चाहिए जैसे मोतियों की माला में हर  मोती अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखते हुए माला की खूबसूरती भी बढाती है | 

भारत के संदर्भ में देखे तो वैश्वीकरण के आक्रमण ने हमारी स्थानीय पहचान को बहुत हद तक क्षति पहुँचाई है | विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार इसपर चढ़ाई की | कइयों ने इस देश की संपत्ति को लूटा और   यहाँ से चले गए | मगर उनमे से बहुतेरे यहीं बस गए और यहाँ की पहचान में अपनी जीवनशैली की खुशबू मिलकर आत्मसात हो गए | महाकवि इकबाल ने इसे ही वाणी देते हुए कहाँ है की -
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा[7] सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा | 
वैश्वीकरण और वैश्विक पहचान से स्थानीय पहचान के आक्रांत होने को  शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, सभ्यता, कला, नृत्य के साथ जीवन के कई अंगों में देखा जा सकता है |  वैश्वीकरण का सबसे बड़ा नुक्सान यह है की हमें हमेशा दूर के ढोल सुहावने लगते हैं | वैश्विक पहचान की चकाचौंध में हम अपनी स्थानीय पहचान की गरिमा को भूलने लगते हैं | 

शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम के कान्वेंट स्कूलों का वर्चस्व 

शिक्षा के क्षेत्र में देखे तो हम भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा को  नकारने लगे हैं | आज गरीब-से-गरीब आदमी भी यह सोचता है की अगर बच्चे को कुछ बनाना है तो अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में उसे भेजना पड़ेगा | 
इंटरनेशनल स्कूल के ब्रांड के आगे नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और गुरुदेव रवींद्रनाथ के भारतीय पहचान में रचे-बसे शांतिनिकेतन जैसे शिक्षा के महती केंद्रों की स्थानीय पहचान लुप्त हो रही है |  अपने बच्चों को विश्व नागरिक बनाने की चाह में हम उनकी भारतीय पहचान को विलुप्त कर  रहे हैं | उच्च  शिक्षा के लिए भी उच्च वर्ग के परिवारों में अपने बच्चों को विदेश में ऑक्सफ़ोर्ड, कैंब्रिज, MIT  जैसे वैश्विक पहचान वाले संस्थाओं में भेजने की होड़ लगी रहती है | शोध के क्षेत्र में भी जगदीश चंद्र बोस, सर सी वी रमण,होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई की स्वदेशी शोध की राह को भूल हमें लगता है उच्च स्तर की शोध और खोज भारत में रहकर नहीं  सकता |   ऐसी शिक्षा से वो शायद आधुनिक कहला सके, मगर इस आधुनिकता को पाने के लिए बहुधा स्थानीय पहचान के नेपथ्य में जाने की कीमत चुकानी पड़ती है | 

अपनी मातृभाषा एवं साहित्य में भारतीय वांग्मय और लेखन के प्रति उपेक्षा 
वैश्विक पहचान की एक और बड़ी बुराई यह देखने को मिल रही है की हमारे बच्चों को शेक्सपियर और वर्ड्सवर्थ तो मालूम होते हैं मगर उनसे अगर प्रेमचंद, महादेवी वर्मा , तकषि शिवशंकर पिल्लई , फकीरचंद सेनापति, विभूतिभूषण बंदोपाध्याय, काजी नजरुल इस्लाम, सुब्रह्मण्यम भारती, विद्यापति, कबीर के बारे में पूछे  पता नहीं होता | अपनी मातृभाषा और उसके साहित्य को पाश्चात्य साहित्य से हीन  समझने की मनोग्रंथि वैश्विक पहचान के आगे घुटने टेकने जैसी है | शिक्षित तबके का तो यह आलम है की वो अपनी मातृभाषा को छोड़ दैनंदिन व्यवहार में भी अंग्रेजों के कान काटने लगा है | उन्हें अपनी बोली और जुबान में बोलना पिछड़ेपन की निशानी लगता है | यह सैकड़ों भाषाओं और स्थानीय पहचान के लिए  अस्तित्व का संकट पैदा कर रहा है | 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में एलोपैथी का वर्चस्व 
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारतीयों ने योग पर भी तब ज्यादा ध्यान देना शुरू किया जब योग वैश्विक पहचान का हिस्सा बन गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मानाने की शुरुआत हुई | भारतीय चिकित्सा प्रद्धतियों आयुर्वेद, सिद्ध एवं भारत का प्राचीन काल से उपयोगित यूनानी, तिब्बी जैसी पब्लिक हेल्थ में कारगर चिकित्सा प्रद्धति की घनघोर उपेक्षा की गयी और उनके विकास  के लिए अभी भी पर्याप्त प्रयास नहीं हो पा रहे हैं | कोरोना संकट के समय में जब प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने की बात आती है, तब जाकर लोग फिर  आयुर्वेद एवं सिद्धा की और मुड़ते हैं | भारत के देशज आयुर्वेदा और सिद्धा में प्रकृति के अनमोल जड़ी-बूटियों और हजारों वर्षों के अनुभव का सार छुपा है और इस स्थानीय पहचान का आदर करने और इसका और विकास करने की जरुरत है | 

कला, संगीत, नाटक  एवं सिनेमा के क्षेत्र में 
सौभाग्यवश इस क्षेत्र में भारत  की मिली-जुली संस्कृति-सभ्यता की समृद्ध विरासत के कारण हमारी स्थानीय पहचान ने अपनी विशिष्टता कायम रखी  वैश्विक योगदान भी दिया | भारत के शास्त्रीय नृत्य यथा भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, कथक  ने अपनी वैश्विक पहचान बनायी | भारत के शास्त्रीय संगीत एवं संगीतकारों ने भी पुरे विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया | पंडित रविशंकर, बिरजू महाराज, सोनल मानसिंह जैसे बहुमुखी प्रतिभा धनी कलाकारों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया |   सिनेमा में भी बॉलीवुड एवं भारतीय सिनेमा ने विश्व के कई हिस्सों में अपनी अमिट  छाप छोड़ी है | नाटक में भी पृथ्वी थिएटर, जन नाट्य मंच जैसे संस्थाओं  भारतीय पहचान को मजबूत बनाया |  सत्यजीत रे, अडूर गोपालकृष्णन, हबीब तनवीर जैसे लोगों ने सिनेमा और थिएटर की विधा की भारतीय पहचान को विश्व स्तर पर नाम दिलाया | 

धर्म-दर्शन-अध्यात्म के क्षेत्र में 

इस क्षेत्र में भी भारतीय नवजागरण के नायकों की वजह से भारतीय पहचान ने वैश्विक पहचान को प्रभावित किया | धार्मिक पर्यटन दृष्टि  हर धर्म के कई पवित्र स्थल मौजूद है | हिन्दू, बुद्ध, जैन, सिख धर्म की यह जन्मभूमि है | पारसी धर्म को भी इसने आश्रय देकर जिलाये रखा | मुस्लिम और ईसाई धर्म भी यहाँ अपनी स्थापना  शुरूआती दौर में ही आये और भारतीय प्रभाओं के साथ मौजूद हैं | बुद्ध, कबीर,  विवेकानंद, कृष्णमूर्ति, अरविन्द जैसे महान लोगों  भारतीय धर्म और आध्यात्म का पुरे विश्व में परचम लहराया | गीता और उपनिषदों के उपदेश की भी विश्व में धूम रही | जयदेव, विद्यापति  चैतन्य से प्रेरित स्वामी प्रभुपाद का इस्कॉन पूरे विश्व में कृष्णा  मधुरा भक्ति की पताका फहरा रहा है | आध्यात्मिक शांति के लिए पूरी दुनिया बनारस, पांडिचेरी, बोधगया, सारनाथ जैसे अनगिन  पवित्र स्थलों के चक्कर लगाती है | चाणक्य नीति से लेकर पंचतंत्र, कथासरित्सागर से लेकर  कथाएं, रामायण, महाभारत ने वैश्विक मानस पर भारतीय धर्म और दर्शन  गहरी छाप छोरी है | 

फैशन एवं रहन - सहन
इस  क्षेत्र में हमारी स्थानीय पहचान कुछ हद तक वैश्विक पहचान से प्रभावित हुई और कुछ हद तक इसने वैश्विक पहचान को प्रभावित भी किया है | साड़ी, बिंदी, चूड़ी और हमारे आभूषणों ने पुरे विश्व में अपना छवि बनायी | वहीं सूट, पैंट, शर्ट ने हमारे धोती-कुर्ते के पहनावे पर बहुत प्रभाव डाला है | आज उच्च वर्ग पहनावे के मामले में विदेशी पहचान को पूरी तरह आत्मसात कर रहा है | मगर ग्रामीण भारत और महिलाओं ने पहनावे मे स्थानीय पहचान को तरजीह दी है |  विदेशी ब्रांडो के प्रति हमारा मोह और विश्वास ज्यादा ही गहरा है | 

 


खेल-कूद के क्षेत्र में 
खेल-कूद भी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारतीय पहचान वैश्विक  आगे दब जाती है | हॉकी के स्वर्णिम दिनों को छोड़ दें  तो क्रिकेट की दीवानगी ने अन्य भारतीय खेलों  हाशिये पर धकेल दिया | ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन जनसंख्या के अनुपात में शर्मनाक है | खेल में राजनीति एवं देश में खेल संस्कृति का अभाव भी इसका एक कारन है | हालाँकि, तीरंदाजी, निशानेबाजी, शतरंज, बैडमिंटन जैसे खेलों में हमारा प्रदर्शन सुधरा है मगर अभी भी खेलों में भारतीय पहचान को विश्व पटल पर सम्मान दिलाने को बहुत कुछ करना बाकी है |  

औद्योगिक पहचान और स्थानीय बनाम वैश्विक ब्रांड 
भारत जिस एक  चीज में पिछड़ा है, वह है हमारा औद्योगिक विकास | आज स्टील से लेकर मोटरकार, बाइक, दवाएं,  जैसी कई उत्पादों में हम विश्व में अग्रणी हैं | हीरो हौंडा, टीवीएस  बाइक  उत्पादन में विश्व में अग्रणी है |  भारत दुनिया भर को सस्ती दवाएं देकर वर्ल्ड फार्मेसी कहलाता है | आयुर्वेदा की पूरे  मांग बढ़ रही है |   क्षेत्र में हम पूरी दुनिया को अपनी  देते हैं | लेकिन कई ऐसे उत्पाद है जिसमे  क्षमता होते हुए हम विदेशों पर निर्भर हैं | हमारा युवा छाछ, लस्सी, फलों के जूस जैसे हजारों स्वस्थ पेय  छोड़ कोकाकोला, पेप्सी जैसे विदेशी  कोल्ड ड्रिंक का दीवाना है | हमारे देशी नमकीन और भुजिया को छोड़ Lays  चिप्स  जैसे विदेशी उत्पादों का दीवाना है | हमारे देश की करोड़ों जनता पहले फ़िनलैंड  नोकिआ, साउथ कोरिया की सैमसंग, अमेरिका के एप्पल और चीन के  वीवो जैसे मोबाइल खरीदने को बाध्य है चूँकि हम मोबाइल के निर्माण के  भारतीय ब्रांडों को  नहीं बढ़ा पाए |    ऐसे कई  उदहारण दिए जा सकते हैं | यह एक क्षेत्र है जहाँ हमें लोकल के लिए वोकल होना पड़ेगा |  भारतीय उत्पादों को हमें विदेशी उत्पादों  तरजीह देनी होगी |  जिन वस्तुओं का अभी भारत में उत्पादन नहीं रहा हैं, उनके  उत्पादन की क्षमता को लाने के लिए हमें प्रयास करना होगा | 

रीति-रिवाज एवं पर्व-त्यौहार  
हमारी स्थानीय पहचान में हमारी रीतियों जैसे जन्म से लेकर  शादी से लेकर श्राद्ध तक होने वाले परिपाटियों में न के बराबर बदलाव आया है | हमारे पर्व त्यौहार जैसे होली, दीवाली, ईद, छठ, दुर्गा पूजा, नवरोज (पारसी), बुद्ध पूर्णिमा यथावत है | हाँ, वैश्विक पहचान से हमने क्रिसमस, ईसाई नववर्ष, मदर्स डे, फादर्स डे जैसे पर्व और दिनों को मानना सीखा है जिसमे कुछ अच्छे हैं और कुछ सांकेतिक होने के कारन अनावश्यक हैं | 

खान-पान -
भारत में खान-पान की विविधता ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है | विश्व से पिज़्ज़ा, फास्टफूड जैसी कई प्रभाव भी हमने लिए हैं | मगर हमारे मसाले, मिठाइयाँ, नमकीन, अचार, पापड़, शाकाहारी एवं मांसाहारी व्यंजनों ने पूरे विश्व को अपना दीवाना बनाया है और विश्व के कोने-कोने में आज भारतीय रेस्टोरेंट मौजूद है | 


वैश्विक पहचान के संदर्भ में जब हम स्थानीय पहचान की बात करते हैं तो देशीय पहचान या भारतीय पहचान  होती है | देखा जाए तो भारतीय पहचान  अपने आप में कई स्थानीय पहचानों को समेटे है | सैकड़ों भाषाएं, बोलिया, वेशभूषा, आभूषण, गीत-संगीत, लोकनृत्य, रीति-रिवाज, धर्म, पर्व-त्यौहार, खान-पान, रहन-सहन को आपस में समेटे भारतीय पहचान अपने आप में विविधता में एकता का एक जीवन्त अनूठा उदहारण है | भारत वर्ष में आपको सैकड़ों जीवन शैली और स्थानीय पहचान मिल जायेगी जो समग्र रूप से भारत की स्थानीय पहचान को निर्मित करती है | इन स्थानीय पहचान और प्रभाव को बचाये रखना भी भारत की  विशिष्ट पहचान को बचाये  रखने और इसे  वैश्विक पहचान में अपनी विशिष्टता बनाये रखने में सहायक होंगे |  




गाँधी जी के शब्दों में थोड़ा फेर बदल कर कहे तो हम ये  नहीं चाहते की हमारी स्थानीय पहचान संकीर्ण हो और उस घर की तरह हो जिसके  दरवाजे और खिड़कियां बंद हो | घर की दरवाजे और खिड़कियां खुले रहने चाहिए  वैश्विक पहचान की ताज़ी हवा को आने की जगह हो, कुछ प्रभावित करने और कुछ हमारी पहचान की सुवास से प्रभावित होने की जगह हो | मगर ऐसा भी न हो की वैश्विक पहचान की जब आंधी चले तो हम अपनी स्थानीय पहचान के घर के सभी खिड़की- दरवाजे खुले रखे, क्यूंकि इससे घर के तूफ़ान में उड़ने का खतरा है | वैश्विक पहचान के फूलों के बगिया में हमारी स्थानीय पहचान के फूल को अपनी विशिष्ट पहचान, फूल और खुशबू बचाये रखनी है | इसी में भारत और विश्व दोनों का भला है | 




सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र १ म २०१९ 
प्रश्न संख्या २० - क्या हम वैश्विक पहचान के लिए अपनी स्थानीय पहचान को खोते जा रहे हैं ? चर्चा कीजिये (१५ अंक, २५० शब्द )

उत्तर २० 
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फैसला रखना | 
जहाँ कतरा समंदर से मिला,  कतरा नहीं रहता | 
-बशीर बद्र 

अगर हम पूरी मानव सभ्यता की बात करे तो वैश्विक पहचान भी जरुरी है | मगर वैश्विक पहचान में स्थानीय पहचान गुम नहीं होनी चाहिए | भारत के संदर्भ में देखे तो वैश्वीकरण के आक्रमण ने हमारी स्थानीय पहचान को बहुत हद तक क्षति पहुँचाई है | 

*शिक्षा के क्षेत्र में देखे तो हम भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा को  नकारने लगे हैं | आज गरीब-से-गरीब आदमी भी यह सोचता है की अगर बच्चे को कुछ बनाना है तो अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में उसे भेजना पड़ेगा | अमीर लोग अपने बच्चों को भारत की जगह विदेशों  में उच्च शिक्षा एवं शोध के लिए  भेजना पसंद करते है | 

*स्थानीय पहचान को एक और बड़ा खतरा भाषा और साहित्य के क्षेत्र में है |  हमारे बच्चों को शेक्सपियर और वर्ड्सवर्थ तो मालूम होते हैं मगर भारतीय लेखकों के बारे में मालूम नहीं होता |   शिक्षित तबके का तो यह आलम है की वो अपनी मातृभाषा को छोड़ दैनंदिन व्यवहार में भी अंग्रेजों के कान काटने लगा है | 

*स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारतीयों ने योग पर भी तब ज्यादा ध्यान देना शुरू किया जब योग वैश्विक पहचान का हिस्सा बन गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मानाने की शुरुआत हुई | भारतीय चिकित्सा प्रद्धतियों आयुर्वेद, सिद्ध एवं भारत का प्राचीन काल से उपयोगित यूनानी, तिब्बी जैसी पब्लिक हेल्थ में कारगर चिकित्सा प्रद्धति की घनघोर उपेक्षा की गयी | 

*कला, संगीत, नाटक  एवं सिनेमा के क्षेत्र में  भारत  की मिली-जुली संस्कृति-सभ्यता की समृद्ध विरासत के कारण हमारी स्थानीय पहचान ने अपनी विशिष्टता कायम रखी  वैश्विक योगदान भी दिया | भारत के शास्त्रीय नृत्य यथा भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, कथक  ने अपनी वैश्विक पहचान बनायी |  पंडित रविशंकर, बिरजू महाराज, सोनल मानसिंह जैसे बहुमुखी प्रतिभा धनी कलाकारों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया |   सिनेमा में भी बॉलीवुड एवं भारतीय सिनेमा ने विश्व के कई हिस्सों में अपनी अमिट  छाप छोड़ी है |  सत्यजीत रे, अडूर गोपालकृष्णन, हबीब तनवीर जैसे लोगों ने सिनेमा और थिएटर की विधा की भारतीय पहचान को विश्व स्तर पर नाम दिलाया | 

*धर्म-दर्शन-अध्यात्म के क्षेत्र में  भारतीय नवजागरण के नायकों की वजह से भारतीय पहचान ने वैश्विक पहचान को प्रभावित किया | हिन्दू, बुद्ध, जैन, सिख धर्म की यह जन्मभूमि है | पारसी धर्म, मुस्लिम और ईसाई धर्म भी  भारतीय प्रभाओं के साथ मौजूद हैं | बुद्ध, कबीर,  विवेकानंद, कृष्णमूर्ति, अरविन्द जैसे महान लोगों  भारतीय धर्म और आध्यात्म का पुरे विश्व में परचम लहराया | वेद, उपनिषद, गीता. बुद्धोपदेश, चाणक्य नीति से लेकर पंचतंत्र, कथासरित्सागर से लेकर  कथाएं, रामायण, महाभारत ने वैश्विक मानस पर भारतीय धर्म और दर्शन  गहरी छाप छोरी है | 

*फैशन एवं रहन - सहन के क्षेत्र में हमारी स्थानीय पहचान कुछ हद तक वैश्विक पहचान से प्रभावित हुई और कुछ प्रभाव भी डाला | साड़ी, बिंदी, चूड़ी और हमारे आभूषणों ने पुरे विश्व में अपना छवि बनायी | वहीं सूट, पैंट, शर्ट ने हमारे धोती-कुर्ते के पहनावे पर बहुत प्रभाव डाला है | भारतीय खान-पान और मसलों  विश्व में अपनी छाप छोड़ी है | 

* हमारी रीति-रिवाजों  जैसे जन्म से लेकर  शादी से लेकर श्राद्ध तक होने वाले परिपाटियों में न के बराबर बदलाव आया है | हमारे पर्व त्यौहार जैसे होली, दीवाली, ईद, छठ, दुर्गा पूजा, नवरोज (पारसी), बुद्ध पूर्णिमा यथावत है | हाँ, वैश्विक पहचान से हमने क्रिसमस, ईसाई नववर्ष, मदर्स डे, फादर्स डे जैसे पर्व और दिनों को मनाना  सीखा है | 

*खेल-कूद भी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारतीय पहचान वैश्विक  आगे दब जाती है | हॉकी के स्वर्णिम दिनों को छोड़ दें  तो क्रिकेट की दीवानगी ने अन्य भारतीय खेलों  हाशिये पर धकेल दिया | ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन जनसंख्या के अनुपात में शर्मनाक है | खेल में राजनीति एवं देश में खेल संस्कृति का अभाव भी इसका एक कारण  है | हाल के वर्षों में  तीरंदाजी, निशानेबाजी, शतरंज, बैडमिंटन जैसे खेलों में हमारा प्रदर्शन सुधरा है | 


*भारत जिस एक  चीज में पिछड़ा है, वह है हमारा औद्योगिक विकास | आज स्टील से लेकर मोटरकार, बाइक, दवाएं,  जैसी कई उत्पादों में हम विश्व में अग्रणी हैं | हीरो हौंडा, टीवीएस  बाइक  उत्पादन में विश्व में अग्रणी है |  भारत दुनिया भर को सस्ती दवाएं देकर वर्ल्ड फार्मेसी कहलाता है |  हमारे देश की करोड़ों जनता विदेशी में उत्पादित  मोबाइल खरीदने को बाध्य है चूँकि हम मोबाइल के निर्माण के  भारतीय ब्रांडों को  नहीं बढ़ा पाए | ऐसे  क्षेत्रों में  हमें लोकल के लिए वोकल होना पड़ेगा और मेक इन इंडिया को यथार्थ करना होगा  |  


गाँधी जी के शब्दों में थोड़ा फेर बदल कर कहे तो हम ये   नहीं चाहते की हमारी स्थानीय पहचान संकीर्ण हो और उस घर की तरह हो जिसके  दरवाजे और खिड़कियां बंद हो की बाहर  की हवा ही न आ सके  |  मगर ऐसा भी न हो की वैश्विक पहचान की जब आंधी चले तो  हमारा घर तूफ़ान से उड़ जाए |  वैश्विक पहचान के फूलों के बगिया में हमारी स्थानीय पहचान के फूल को अपनी विशिष्ट पहचान, फूल और खुशबू बचाये रखनी है | इसी में भारत और विश्व दोनों का भला है | 














शनिवार, 5 सितंबर 2020

सतगुर की महिमा अनँत

 कबीरदास के दोहों में सच्चे गुरु की महिमा बड़े ही रोचक ढंग से और लोकजीवन से उदाहरण देते हुए कही गयी है| सच्चा गुरु मनुष्य को देवता के समान बनाने के प्रयास में लगा रहता है, अनंत ज्ञान को शिष्य को देने का प्रयास करता है | गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता | जब गोविन्द कृपा करते हैं तो गुरु की प्राप्ति  होती है  | अयोग्य गुरु  अयोग्य शिष्य एक दूसरे का उसी प्रकार नुकसान करते हैं जैसे अँधा मनुष्य दूसरे अंधे मनुष्य को रास्ता बतलाने के समय करता है | गुरु शिष्य के संशय का नाश करता है | गुरु के पारस स्पर्श से शिष्य लोहे से सोने में बदल जाता है| 

भारतीय परंपरा में गुरु का जो आदर है, वह पाश्चात्य परंपरा के लिए आश्चर्य  की वस्तु है | यहाँ पर गुरु का दर्जा भगवान के बराबर माना गया है | गुरु-गोविन्द दोनों के सामने आने पर शिष्य का यह कर्त्तव्य है की वह पहले गुरु की वंदना करे जिसने उसे गोविन्द का ज्ञान दिया है | कृष्ण, बुद्ध, महावीर और गुरु नानक, इनके व्यक्तित्व का अहम् हिस्सा गुरु के रूप में  लोगों के पथप्रदर्शन का है |   गुरु बिना ज्ञान न होई, यह कहावत लोकमन में यूँ ही नहीं बैठी है |  

प्राचीन काल की गुरुकुल  प्रद्धति में गुरु ही शिष्य के अभिभावक और उसके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास  हेतु उत्तरदायी  होते थे | शिष्य शिक्षा के पूर्ण होने पर अपनी क्षमता के अनुसार गुरुदक्षिणा देकर गुरु के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे | द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा तो हम  सब ने सुनी है जहाँ गुरु  पक्षपात के कारण एकलव्य को जिसने गुरु को अपने मन में स्थान देकर धनुर्विद्या सीखी थी, उसका अंगूठा गुरुदक्षिणा के तौर पर मांग बैठते है | और   एकलव्य बेहिचक अपनी शस्त्र-विद्या के बलिदान समान अपना अंगूठा काटकर गुरु के चरणों में रख देता है |  

वर्तमान समय में देखे तो गुरु-शिष्य की भारतीय अवधारणा में पाश्चात्य प्रभावों की घुसपैठ हुई है | पहले के जैसे गुरु भी कम है, और शिष्य तो और भी कम हैं | गुरु कई ऐसे हैं जिनके ज्ञान की गगरी अधजल है और छलकती जा रही है | ना तो उनमें बाल मनोविज्ञान की परख है, ना ही विद्यार्थियों के प्रति समानुभूति और प्रेम | नतीजा है की शिक्षा बोझिल होती जा रही है और रचनात्मकता का ह्रास हो रहा है | 


सरकारी विद्यालयों के साथ-साथ प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं में भी शिक्षकों की  गुणवत्ता, ज्ञान और छात्रों को नए जमाने की तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए आकर्षक तरीके से पढ़ाने की क्षमता में गिरावट दीख पड़ती है | सरकारी व्यवस्था में आंगनवाड़ी से पूर्व -प्राथमिक शिक्षा तक का सफर काफी धीमा रहा है और अब जाकर वर्तमान शिक्षा नीति में उसकी रूपरेखा सामने आयी है | प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा के व्यवसायीकरण ने भी शिक्षक और छात्रों के रिश्ते में दरार डाली है | 

एक सशक्त और सकारात्मक शिक्षा व्यवस्था के लिए पूर्ण रूपेण प्रशिक्षित एवं संकल्पित शिक्षक अनिवार्य है | शिक्षक की आत्मनिष्ठा शिष्य को संवारने के हिसाब से महत्त्वपूर्ण है | नई शिक्षा नीति का भी मानना है कि शिक्षा में सकारात्मक बदलाव लाने धुरी शिक्षक ही है |  समाज में शिक्षक का सम्मान एवं स्थान सर्वोच्च आदर का होना चाहिए | इसे सुनिश्चित करने के लिए यह जरुरी है की शिक्षण को कैरियर मात्र नहीं वरना समाजसेवा के तौर पर देखा जाए | शिक्षकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, सतत गुणवत्ता वर्धन,  एवं सेवा शर्तें इस   प्रकार की  होनी  चाहिए ताकि  बेहतरीन  प्रतिभाओं को शिक्षण  क्षेत्र में  आकर्षित  किया जा सके |  नयी शिक्षा नीति में 30 छात्रों पर एक शिक्षक(पिछड़े क्षेत्रों में 25 पर एक शिक्षक ) का लक्ष्य रखा गया है जो स्वागतयोग्य है | शिक्षकों के लिए साल में 50 घंटे का सतत व्यावसायिक विकास का ऑनलाइन कार्यक्रम भी शिक्षकों के ज्ञान और क्षमता को अद्यतन रखने के उद्देश्य में काफी कारगर रहेगा | 

शिक्षक दिवस जिनकी याद में मनाया जाता है, उन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन भी अपनेआप में एक सीख है | एक सामान्य परिवार से आते हुए अपने ज्ञान के बूते उन्होंने  भारत के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया | मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज, मैसूर विश्वविद्यालय, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी  में  दर्शन शास्त्र का अध्यापन, बनारस विश्वविद्यालय के उप कुलपति के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन  और भारतीय दर्शन, सभ्यता-संस्कृति के ऊपर लिखी उनकी किताबें ज्ञान को बांटने की उनकी लगन को दर्शाती है | 

 शिक्षक दिवस के अवसर पर आज मैं अपने सभी शिक्षकों विशेषकर अपने गुरु श्री नागेंन्द्र सिंह और उनके बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ के साथ बच्चों को पढाने की  उनकी तकनीक आप लोगों के सम्मुख रखना चाहूॅंगा | खेल-खेल में बच्चों को अंकगणित, भाषा एवं विज्ञान सिखाने की उनकी कला सभी प्राथमिक शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है | बच्चों को  प्यार के साथ और जिज्ञासु बनाते हुए पढ़ाने की शैली उनमें क्या खूब थी | 


उदाहरण के लिए गिनती सीखने  के लिए माटी की गोलियां बनवाना, उनको आग में पक्का करना और फिर उनसे गिनती सीखना | क्या मजाल की बच्चा पढ़ने में फिर आना-कानी करें | वैसे ही घन और घनाभ के बारे में पढ़ाते हुए लकड़ी के बक्सों से उदाहरण देते हुए पढ़ाना | मानों चित्र जैसे बच्चे की  स्मृति में बस जाए | भाषा पठन  श्रुतलेख का नित्य अभ्यास, कविता का सस्वर पाठ और याद करना, शब्दों से वाक्य निर्माण में कल्पना की ऊंची उड़ान को अवसर देना उनकी खूबी थी | भाषा को  पढ़ना  प्रेमचंद्र की  कहानियों और जयशंकर प्रसाद के नाटक, दिनकर की कविताओं से हो तो फिर भाषा पर मजबूत पकड़ सुनिश्चित है | साथ में गीता के एक श्लोक को नित्य याद करना और अर्थ का मनन  करना, महापुरुषों की जीवनियों को पढ़ना-लिखना-गुनना, गुरूवार को सुंदरकांड पाठ, ऐसी कितनी उनकी तकनीकें थी जिनकी खूबी अपने बच्चों के लिए ऐसे अवसरों के  अभाव में ही नजर आती है | 

ऐसे ही अपने बलभद्र उच्च विद्यालय, बभनगामा के भूगोल के मौलवी साहब की भी याद आती है | कक्षा में आने के बाद अध्याय का नाम पूछने के बाद किताब बंद कर रख देते थे | फिर जो वो भूगोल की जटिलता को सरस चित्रात्मकता के साथ पढ़ाते थे, तो समां  बंध जाता था | उनके द्वारा पढ़ाया गया बफर स्टेट का पाठ जब-जब भारत-चीन के संबंधों और सीमा विवाद की चर्चा होती है, आँखों के आगे मूर्तिवत हो जाता है | दो बड़े देशों की सीमा यथासंभव आपस में नहीं मिलनी चाहिए  और उनके बीच छोटे-छोटे बफर स्टेट होने चाहिए | और उसके बाद उनके द्वारा दिया गया भारत और चीन के बीच के बफर स्टेट्स का विवरण आज तक यादों में चित्र की तरह जड़ा है | रीगा मध्य विद्यालय के अपने शिक्षकों भुवनेश्वर सर, चन्द्रिका सर, जीतेन्द्र सर, रामरेखा सर और अन्य सभी गुरुजनों का, बलभद्र उच्च विद्यालय बभनगामा के अपने गुरुजनों का, एम पी उच्च विद्यालय डुमरा  विशेषकर इंदु मैडम, प्रभावती मैडम, मिलिंद सर, पाठक सर, मंडल सर, पीटी अध्यापक और अन्य गुरुजन  , भोलानंद विद्यालय बैरकपुर से झरना मैडम,देवाशीष सर, मुख़र्जी सर और अन्य गुरुजन इन  सभी  आदर्श शिक्षकों के  प्रति इस शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ एवं सभी शिक्षकों का समाज  उनके महती योगदान हेतु अभिनन्दन करता हूँ | 

बराकर में सरकारी विद्यालय में शिक्षक रहे अपने नानाजी स्वर्गीय श्री उमेश चंद्र ठाकुर को भी इस अवसर पर मैं श्रद्धा पूर्वक याद करता हैं | पुस्तक प्रेम उनका ऐसा था की घर पर लगभग १० अलमीरा में साहित्य, धर्म, अध्यात्म की किताबें भरी रहती थी | निराला की अनामिका, राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा का पहला सजिल्द संस्करण, स्वामी प्रभुपाद की Bhagvad  Gita As Is के अमेरिकी संस्करण की पहले संस्करण की किताब, कल्याण के सैकड़ों अंक, वेद-पुराण-उपनिषद की अनगिन किताबें-यह प्रचुर पुस्तक प्रेम जो एक शिक्षक में होना ही चाहिए, वह उनसे विरासत में मिला है | गीता या धर्म की जब वो व्याख्या करते थे तो क्या ज्ञानी और क्या आम जान, मंत्रमुग्ध से उनकी वाणी को घंटों सुनते न अघाते थे | 


कोरोना संकट के बाद आये इस दौर में छात्रों को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाना एक नयी चुनौती के रूप में हमारे शिक्षकों के सामने है |  वैसे भी जिन विद्यालयों में स्मार्ट क्लासरूम की व्यवस्था थी, वो इस समय ज्यादा अच्छे से तकनीक  प्रयोग कर पा रहे हैं | लेकिन इस समस्या ने शिक्षकों को अपने तकनीकी ज्ञान को अद्यतन रखने की आवश्यकता भी सामने लायी है | वर्तमान समय में ऑनलाइन क्लास रोचक बनाना और अच्छे कंटेंट दे पाना एक बड़ी चुनौती और अवसर के रूप में हमारे शिक्षक समुदाय के सामने है | अभी की सीख उन्हें शिक्षा को और विद्यार्थी केंद्रित, तकनीकी युक्त और इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए रोचक बनाने में मदद करेगी | जब शिक्षक खुद नया ज्ञान सीख रहे हों, तो वाकई वो छात्रों  समानुभूति भी रख पाएंगे और उन्हें प्रेरित भी कर पाएंगे | शिक्षक का कार्य छात्रों को जिज्ञासु, नैतिक मूल्य युक्त और मानवीय गुणों से ओतप्रोत बनाने का है | इतना कर पाए तो  बाकी की राह शिष्य बड़ी कृतज्ञतापूर्वक तय कर लेंगे और जीवन में हमेशा अपने शिक्षक को आदर और प्रेम के साथ याद रखेंगे | कोरोना काल में पूर्वछात्रों द्वारा अपने शिक्षकों  की यथासंभव मदद करने की ख़बरें इस समय भी गुरु-शिष्य संबंधों के  प्रेम भाव की एक अलग की बानगी सामने लाती हैं |  

--केशवेंद्र कुमार---


गुरुवार, 6 अगस्त 2020

Address by Chief Guest Shree Keshvendra Kumar IAS at Clairvoyance 2018

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा का भाषिक लोकतंत्रीकरण


सिविल सेवा परीक्षा 2019 का परीक्षाफल आ चुका है और इसमें सफल सभी अभ्यर्थियों को मेरी हार्दिक बधाई | जो सफल नहीं हो सके हैं,  इस बार की प्राथमिक परीक्षा दे रहे हैं, उन्हें अपनी कमियों से सीख लेते हुए आत्मविश्लेषण कर इस वर्ष 4 अक्टूबर को होनेवाली प्राथमिक परीक्षा  के लिए पूरे जोश-खरोश से तैयारी में जुटने हेतु शुभकामनाएं | वैसे अभ्यर्थी, जिनकी पास अब प्रयास बाकी नहीं है या आयुसीमा पार कर चुके हैं, उनसे मैं कहना चाहूंगा की आप हार नहीं माने और अपनी रुचि  के अनुरूप अन्य करियर ऑप्शन पर अपनी ऊर्जा लगाएं  | जीवन हर परीक्षा से बड़ा और महत्तवपूर्ण है | हो सकता है की आप जीवन में कुछ और बड़ा काम करने हेतु आएं हो |

सिविल सेवा में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं  के छात्रों की घटती संख्या चिंता का विषय है |  जहाँ एक और नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा देने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी और CSAT के आगमन के बाद अंग्रेजी माध्यम और इंजीनियरिंग से सिविल सेवा में आनेवाले छात्रों का वर्चस्व बढ़ा है  जो सिविल सेवा के लोकतान्त्रिक स्वरुप और विविधता के लिए सही नहीं  है |

संविधान की 22 भाषाओं में एक या दो भाषा का सिविल सेवा में वर्चस्व यह दिखाता है की हम अभी भी सभी भारतीय भाषाओं  को सिविल सेवा परीक्षा हेतु बराबरी दिलाने के लक्ष्य से कोसों दूर है | हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु माध्यम में कुछ वर्ष काफी छात्रों ने सिविल सेवा की तैयारी  कर सफलता प्राप्त की और यह आशा बंध रही थी की सिविल सेवा परीक्षा भाषिक लोकतांत्रीकरण की और जा रही है | लेकिन फिर हाल के वर्षों में सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम समेत अन्य भारतीय भाषाओं का नगण्य प्रदर्शन यह दर्शाता है की अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व जिसे भारतीय भाषाएं चुनौती देने की दिशा में बढ़ रही थी, पुनः पहले की भांति होता जा रहा है | मैथिली,  कोंकणी, बोडो, डोगरी, मणिपुरी, संथाली, सिंधी, नेपाली, ओड़िआ, असामीज,  जैसी भाषाओं  से यदि सिविल सेवा में रिजल्ट चाहिए तो इन भाषाओं को बोलने वाले राज्यों में राज्य सरकाओं द्वारा प्रतिभाशाली बच्चों के लिए फ्री कोचिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए | उपरोक्त वर्णित भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी, तमिल , उर्दू,  तेलुगु, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़, काश्मीरी,  पंजाबी,  मलयालम, मराठी, संस्कृत भाषाओं के माध्यम से भी सिविल सेवा में रिजल्ट लाने और अभी आ रहे नगण्य रिजल्ट की संख्या में वृद्धि के लिए  NGO  एवं इन भाषाओं के संगठनों को भी इस दिशा में फ्री कोचिंग हेतु कदम उठाने की जरुरत है |

UPSC  को आत्ममंथन करते हुए सिविल सेवा परीक्षा में आये बदलावों पर विचार करने की जरुरत है | यह परीक्षा ऐसी होनी चाहिए की किसी भी भाषा के माध्यम से आने वाली प्रतिभा को बढ़ावा दे सके और तकनीकी या मानविकी किसी भी शैक्षिक पृष्ठभूमि से आये छात्र के लिए परीक्षा का स्तर समान हो | दो वैकल्पिक विषय को हटा सामान्य अध्ययन के अंक बढ़ाने की नीति ने इस परीक्षा का क्या भला किया है और क्या बुरा, इसपर भी विकार करने का समय आ गया है |

UPSC से यह भी अनुरोध है की सिविल सेवा परीक्षा परिणामों के बाद जल्द ही किस माध्यम से कितने छात्र उत्तीर्ण हुए है और किस शैक्षणिक पृष्ठभूमि से कितने छात्रों का चयन हुआ है , इसके तथ्यों को सामने ला दे ताकि एक सटीक विश्लेषण किया जा सके |  जिन भाषाओं को माध्यम के रूप में  लेते हुए बहुत ही काम छात्र भाग ले रहे हैं या सफल हो रहे हैं, उनके सन्दर्भ में प्रोत्साहन हेतु कदम उठाने हेतु UPSC  द्वारा केंद्र एवं सम्बद्ध राज्य सरकार को सलाह दिया जाना चाहिए | रिक्तियों की घटती संख्या भी चिंता का विषय है और यह देखने की जरुरत है की सभी सर्विस वर्तमान समय की जरुरत को देखते हुए पदों की संख्या का निर्धारण कर सभी रिक्तियों को UPSC को रिपोर्ट करें |

हिंदी में जो प्रश्न पत्र बनाये जा रहे हैं, उनकी भाषा पर हर बार बहस होती है | कहने की जरुरत नहीं है की हिंदी के प्रश्न को समझने के लिए हिंदी के विद्वानों को भी अंग्रेजी सवाल को पढ़ना पड़ जाता | इस परीक्षा में यदि सवाल अंग्रेजी से यांत्रिक रूप से अनुदित किये जाने की जगह सरल हिंदी में लिखे जाए तो इससे भी विद्यार्थियों का भला होगा |

अभ्यर्थियों को मैं यह सलाह भी देना चाहूंगा की CSAT  में 33 % अंक लाने की बाध्यता इतना बड़ा पहाड़ भी नहीं है जिसके वजह से वो हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को माध्यम के रूप में चुनने की जगह मजबूरी में अंग्रेजी माध्यम का चुनाव करें | माध्यम तो बस एक साधन है, अगर आपमें प्रतिभा है, लगन है और समाज, देश और मानवता के लिए कुछ कर दिखाने का जूनून है , तो सफलता आपके कदम जरूर चूमेगी |  हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए मैं अपने ब्लॉग पर और समय निकाल कर कुछ अन्य महत्तवपूर्ण विषयों पर आपको सलाह देने की लिए नियमित रूप से हाजिर होता रहूँगा |
शुभकामनाओं के साथ,
आपका,
केशवेंद्र कुमार