रविवार, 19 मई 2024

सिविल सेवा के बारे में संवैधानिक उपबंध एवं संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की भूमिका एवं कृत्य

किसी भी सिविल सेवक के लिए भारतीय संविधान एक पथप्रदर्शक के स्थान पर है। भारत के स्वाधीनता संग्राम के सबक, संविधान सभा की धारदार बहसें, संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, कर्तव्य ,  नीति निर्देशक तत्त्व, पंचायती राज एवं स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था एवं अन्य संवैधानिक प्रावधान सिविल सेवक को कठिन निर्णयों के समय दिशा दिखाते हैं। सिविल सेवाओं की व्यवस्था भारतीय संविधान में वर्णित है।   

भारतीय संविधान के 14 वें भाग में सिविल सेवाओं के बारे में प्रावधान हैं। 
अनुच्छेद 309, 310, 311, 312 में सिविल सेवाओं का वर्णन है जिसका सार संक्षेप निम्नलिखित है - 

अनुच्छेद 309-सक्षम विधायिका द्वारा अधिनियम बनाने की शक्ति एवं  राष्ट्रपति एवं राज्यपाल द्वारा सेवाओं की भर्ती एवं सेवा शर्तों के सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्ति 

अनुच्छेद  310 -सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल के  प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर बने रहेंगे। 
(उन्हेंअनुच्छेद 311 की सुरक्षा, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्राप्त है।उन्हें विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही अनुच्छेद 311 के प्रावधानों के अधीन ही पदच्युत किया जा सकता है ) 
अनुच्छेद 311-केंद्र एवं राज्य की  सिविल सेवाओं को संरक्षण हेतु प्रावधान
पदच्युति नियुक्ति प्राधिकार के अधीनस्थ द्वारा नहीं , 
पदच्युति, पदावनति,  जांच के बिना नहीं जहां आरोप बताये गए हैं, उन आरोपों पर सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया गया है, जांच के दौरान प्राप्त सबूतों के आधार पर दंड का अधिरोपण किया जा सकता है।  
अनुच्छेद  312 -अखिल भारतीय सेवा का वर्णन , नयी अखिल भारतीय सेवा के निर्माण की प्रक्रिया 

अखिल भारतीय सेवा एवं केंद्रीय राजपत्रित सेवाओं हेतु परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाती है। इस प्रतिष्ठित आयोग ने अपनी जनमानस में एक अटूट छवि और विश्वास साल-दर-सालबरक़रार  रखा है और इस कारण सिविल सेवा परीक्षा भारत की ही नहीं विश्व की सबसे कठिन एवं प्रतिष्ठित परीक्षाओं में एक मानी जाती है।  सिविल सेवाओं हेतु परीक्षा संघ UPSC के बारे में संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 315 से से 323 तक हैं और इन प्रावधानों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-

अनुच्छेद 315 के अनुसार  संघ के लिए एक लोग सेवा आयोग होगा और प्रत्येक राज्य के लिए  एक लोक सेवा आयोग होगा | 

अनुच्छेद 316  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी  |  सदस्यों में लगभग आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी  नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम -से -कम दस वर्ष पद धारण किया हो |   संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य अपने पद ग्रहण की तारीख से छः वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक अपना पद धारण करेगा। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य राष्ट्रपति  को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा | 
इस अनुच्छेद में राज्य लोक सेवा के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया का भी वर्णन है जिनकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी। 

अनुच्छेद 317   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या कोई  अन्य सदस्य यदि दिवालिया घोषित होता है, अपनी पद पर रहते हुए अपने कर्तव्यों के इतर किसी सवेतन नियोजन में लगता है या राष्ट्रपति राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के अयोग्य है , तो राष्ट्रपति अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेंगे। 

संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या कोई  अन्य सदस्य यदि निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में या संयुक्त रूप में भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त किये गए करार से सम्पृक्त  या हितबद्ध हो या उसके लाभ, फायदे या उपलब्धि में साझीदार हों तो इसे कदाचार माना जायेगा | इस कदाचार या किसी अन्य कदाचार में राष्ट्रपति के निर्देश  उपरांत उच्चतम न्यायलय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन जांच पर प्रतिवेदन दिया जायेगा जिसमे कदाचार पुष्ट होने पर राष्ट्रपति अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेंगे। 

अनुच्छेद 318  के अनुसार राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के  सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का विनियमों द्वारा निर्धारण करेंगे मगर लोक सेवा आयोग के  सदस्यों की सेवा की शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जायेगा | राज्य लोक सेवा आयोग के संबंध में यह शक्ति राज्यपाल के पास है।  

अनुच्छेद 319   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा। संघ लोक सेवा आयोग के   अध्यक्ष से भिन्न अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या राज्य  लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होंगे ।राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य (अध्यक्ष को छोड़कर ) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य बनने या किसी किसी भी राज्य सेवा आयोग के अध्यक्ष बनने के पात्र होंगे।  

अनुच्छेद 320   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग संघ की सेवाओं के लिए परीक्षाओं का संचालन करेगी। इसके साथ ही सिविल सेवा और सिविल पदों पर भर्ती की प्रद्धति से संबंधित विषयों पर,  इन पर नियुक्ति में, एक सेवा से दूसरी सेवा में प्रोन्नति या अंतरण में, सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक विषयों, क्षतिपूर्ति पेंशन जैसे कई बिंदुओं पर राष्ट्रपति के निर्देश पर परामर्श देने की संघ लोक सेवा आयोग की अहम् परामर्शदात्री भूमिका है। राज्य लोक सेवा आयोग राज्य हेतु समान भूमिका निभाएगी।   

अनुच्छेद 321 के अनुसार संसद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की सेवाओं  संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में भी  अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा। राज्य विधायिका द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के संबंध में यही भूमिका निभायी जाएगी। 

अनुच्छेद 322  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होंगे एवं राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे। 


अनुच्छेद 322  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का यह कर्त्तव्य होगा की वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किये जाने वाले कार्यों  संबंध में वार्षिक प्रतिवेदन दे  और राष्ट्रपति उन मामलों के संबंध में जिसमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गयी थी, अस्वीकृति के कारणों  स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन  की प्रति संसद के दोनों सदनों के सम्मुख रखवाएंगे। 
राज्य लोक सेवा आयोग वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को देंगे और इसे उपरोक्त रूप में राज्य विधानमंडल के सम्मुख रखा जायेगा। 

सिविल सेवा के संबंध में ये प्रावधान एक नियमबद्ध एवं देश के विकास के लिए प्रतिबद्ध सेवा हेतु सभी आवश्यक प्रावधानों को संवैधानिक संरक्षण दे कर सिविल सेवाओं को उनकी आंतरिक मजबूती प्रदान करते हैं और सेवाओं को एक गरिमापूर्ण उत्तरदायित्व के रूप में सामने लाते हैं। 

रविवार, 24 दिसंबर 2023

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा- भारतीय भाषा प्रश्न पत्र (हिंदी )


सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सबसे पहला पेपर भारतीय भाषा का है जिसमे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किसी भी भाषा को चुना जा सकता है | हिंदी भाषियों के लिए सबसे सुगम विकल्प हिन्दी है | कुछ लोग मैथिली भाषा भी अपनी सुविधानुसार चुन सकते हैं |   यह पत्र  UPSC की नोटिस के अनुसार दसवीं के स्तर का है मगर वास्तविकता में यह उससे थोडा सा भारी है |  वैसे तो इस पत्र के अंक आपके रैंक को निर्धारित करने में कोई भूमिका नहीं निभाते, मगर अगर आप इस पत्र में पास करने हेतु  अंक नहीं लाते हैं तो आपके सिविल सेवा में आने के सपने को एक साल का और इंतजार करना पद सकता है | इस पत्र में पास होने पर ही आपके अन्य पत्रों की जांच की जायेगी | इस पत्र की तैयारी के लिए मुख्य बातें मैं संक्षेप में आपके सामने रख रहा हूँ |

वर्तमान में यह पत्र 300 अंकों का है जिसके लिए 3 घंटे का समय निर्धारित है। अर्हक अंक UPSC 2023 की नोटिफिकेशन के अनुसार 25 % है। आत्मविश्वस्त रहने के लिए इस पत्र में कम-से-कम 60 % अंक आ सके, ऐसी तैयारी रखें।  

इस पत्र के वर्तमान पैटर्न में 600 शब्दों में निबंध लिखना होता है जिसकी तैयारी आपको अलग से करने की कोई आवश्यकता नहीं। इसके लिए 100 अंक हैं।   यह निबंध पत्र की तैयारी के साथ स्वयमेव तैयार हो जायेगा। वर्ष 2022 में सामान्य हिंदी पत्र में पूछे निबंध इस प्रकार हैं -
नवीकरणीय ऊर्जा - संभावनाएं एवं चुनौतियां 
संचार क्रांति का महत्त्व 
खेलों का बढ़ता व्यवसायीकरण 
खान-पान का स्वास्थ्य पर प्रभाव 

फिर , 60  अंकों के गद्यांश आधारित प्रश्न हैं जिन्हें बनाने में ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए। सामान्यतः, यदि आप अच्छे पाठक हैं तो ये प्रश्न आपके लिए चुटकी बजाते हल होनेवाले हैं। और, प्रारंभिक परीक्षा में सी-सैट  में भी आप गद्यांश आधारित प्रश्नों की तैयारी कर चुके होते हैं। 

अगला खंड है दिए गए गद्यांश का एक तिहाई शब्दों में संक्षेपण लिखने का। इसके लिए भी 60  अंकों का प्रावधान है। इसके लिए थोड़ा अभ्यास वांछनीय हैं। 

फिर 20 अंकों का अंग्रेजी से हिंदी और 20 अंकों का  हिंदी  से अंग्रेजी अनुवाद है। यह खंड कुछ विद्यार्थियों को थोड़ा भारी लग सकता है पर चूँकि यह पत्र क्वालीफाइंग है, इसलिए किसी कमजोर खंड को  लेकर आप फ़िलहाल तनावग्रस्त न हों।  हालांकि, वर्तमान में संपर्क भाषा के तौर पर ठीक-ठाक अंग्रेजी जानना आपके आत्मविश्वास के लिए अच्छा है। 

इसके बाद का 40 अंकों का खंड हिंदी व्याकरण का है। मुहावरों का वाक्य में प्रयोग, वाक्यों को शुद्ध करके लिखने जैसे सवाल, पर्यायवाची शब्द, श्रुति सम भिन्नार्थक शब्दों के वाक्य प्रयोग द्वारा अर्थान्तर  स्पष्ट करने जैसे 10-10 अंको के चार सवाल आते हैं।

इस पत्र की तैयारी के लिए डॉ वासुदेवनन्दन  प्रसाद की आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना या कोई भी अन्य समकक्ष हिंदी व्याकरण एवं रचना की पुस्तक ली जा सकती है। पुस्तक से सब कुछ तैयार करने की जगह निर्धारित पाठ्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करें।   

कुल मिलाकर हिंदी भाषी विद्यार्थियों के लिए यह एक सरल पत्र है। मगर इसको हलके में लेने की भूल मत करें।  अगर इस पत्र में पास मार्क नहीं, तो आपके सिविल सेवा का सपना टूट सकता है। 



रविवार, 2 जुलाई 2023

IAS @ हिंदी माध्यम -पुस्तक के रूप में



अपनी पहली पुस्तक को आप सबों को हाथों में सौंपने में मुझे अतीव आह्लाद का अनुभव हो रहा है।  यह पुस्तक इस  ब्लॉग पर आप सबों के साथ और प्यार से प्रेरित है।  आशा है की पुस्तक को आप सबों का प्यार प्राप्त होगा।  पुस्तक अमेज़न और प्रभात प्रकाशन के प्रमुख पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध है।  अमेज़न पर पुस्तक का लिंक निम्नवत है -

https://amzn.eu/d/6ilYWuO 


आपका, 

केशवेंद्र कुमार 



रविवार, 8 जनवरी 2023

DISTANCE EDUCATION से भी आप बन सकते हैं आईएएस

 दोस्तों, मेरे ब्लॉग पर एक सवाल बहुत बार लोगों ने पूछा है की अगर उन्होंने IGNOU से स्नातक किया है,  क्या वे IAS की परीक्षा दे सकते हैं।  जवाब है हाँ।  मैंने खुद स्नातक और परास्नातक की डिग्री इग्नू से ली है। विगत 15 वर्षों में बहुत से ऐसे विद्यार्थियों ने सिविल सेवा परीक्षा पास की है जिन्होंने स्नातक की डिग्री IGNOU या किसी अन्य प्रतिष्ठित मान्यता प्राप्त दूरस्थ शिक्षा कोर्स से की है। 

Distance education too can give IAS officers

UPSC की वर्ष 2022 की सिविल सेवा की नोटिस से शैक्षणिक योग्यता के सम्बन्ध में प्रावधान निम्नलिखित है- 

स्नातक डिग्री या समकक्ष योग्यता भारत के  केंद्र या राज्य विधानमंडल द्वारा निगमित विश्वविद्यालय या संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित  या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1956 के खंड 3 के अधीन विश्वविद्यालय के समकक्ष मानी गयी किसी अन्य शिक्षा संस्थान द्वारा। 

जो विद्यार्थी स्नातक या समकक्ष परीक्षा दे चुके हैं और रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहे हैं वे भी प्राम्भिक परीक्षा दे सकते हैं लेकिन मुख्य परीक्षा का फॉर्म भरने के समय परीक्षा उत्तीर्ण होने का प्रमाणपत्र देना होगा। 

IGNOU भारत की संसद द्वारा स्थापित विश्विद्यालय है और इसकी स्नातक डिग्री के साथ आप गर्व से सिविल सेवा परीक्षा में बैठ सकते है।  इग्नू की कई विषयों की किताबें सिविल सेवा की तैयारी के लिए सबसे बेहतरीन पुस्तकों में गिनी जाती है।  

यहां तक की जो छात्र कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेकर UPSC सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और कहीं से PG की पढाई अभी नहीं कर रहे हैं, उनके लिए भी तैयारी के साथ अपने वैकल्पिक विषय से PG कोर्स में एडमिशन IGNOU या किसी अन्य प्रतिष्ठित मान्यता प्राप्त दूरस्थ शिक्षा कोर्स  में लेना वैकल्पिक विषय की तैयारी को मजबूत करने के साथ PG डिग्री हासिल करने के हिसाब से बेहतरीन रणनीति है।  

तो, दूरस्थ शिक्षा के कारण आपके मन में कोई भी संशय हो तो उसे निकाल फेंके और नए विश्वास के साथ लग जाए सिविल सेवा की तैयारी में। 

रविवार, 1 जनवरी 2023

नववर्ष 2023 में सफर चलता रहे यूं ही

सफर चलता रहे यूं ही ।

दिल मचलता रहे यूं ही ।।


मुकम्मल होने की चाहत रहे।
अधूरापन खलता रहे यूं ही ।।

हुस्न तो नूर है इलाही का ।
आशिकों को  छलता रहे यूं ही ।।

तूफानों में बीच समंदर खेवे नैया।
न कोई किनारे हाथ मलता रहे यूं ही ।।

सिकंदर को भी जहां से खाली हाथ जाना है ।
चांद सितारों का अहं गलता रहे यूं ही ।।

जलेगा राख होगा फिर भी उससे आएगी खुशबू।
दिल तो दिल है, जले, जलता रहे यूं ही ।।

तीर लोहे का हो या सरकंडे का ।
तीर का मोल है, निशाने हलता रहे यूं ही ।।

दोस्तों पे प्यार हो, दुश्मनों पे वार हो ।
दुश्मन की छाती पे मूंग दलता रहे यूं ही।।

दोस्ती जज्बा है वो जिसका कोई जोड़ नहीं।
दोस्तों का बिछड़ना टलता रहे यूं ही ।

लाख नाउम्मीदी हो, अंधेरे हो
सीने में आस पलता रहे यूं ही

डूबते हुए भी छठ में जिसे पूजते हैं
नई सुबह आने को,सूरज ढलता रहे यूं ही ।।

दीप से दीप जले, हाशिए भी रौशन हो ।
अच्छा काम फलता रहे यूं ही ।।

नववर्ष 2023 की हार्दिक शुभमंगलकामनाएं।   

शनिवार, 24 दिसंबर 2022

UPSC CIVIL SERVICE INTERVIEW 2022

 सिविल सेवा 2022  की मुख्य परीक्षा का परिणाम एवं साक्षात्कार की तिथि  आ चुकी  है | ।  30.01.2023 से ही साक्षात्कार शुरू हो रहे हैं और इसी थोड़े समय में आपको अपने व्यक्तित्व में धार लगानी है। आपको साक्षात्कार बोर्ड के सामने अपने आपको सम्पूर्णता में सामने रखना है अपनी मानवीय खूबियों-खामियों के साथ। मेरी सलाह यही है की चिंता में अपना सर खुजाने की जगह उपरवाले का शुक्रिया अदा करते हुए आगे की तैयारियों में जुट जाये। 

साक्षात्कार की तैयारी के समय सिविल सेवा परीक्षा की नोटिफिकेशन से साक्षात्कार के सम्बन्ध में दिए निर्देश को अपने दिशासूचक की तरह प्रयोग करें  | ये निर्देश इस प्रकार हैं -

अ)उम्मीदवार  का साक्षात्कार एक बोर्ड द्वारा होगा जिसके सामने उम्मीदवार का बायोडाटा होगा | उससे सामान्य रूचि की बातों पर प्रश्न पूछे जायेंगे | साक्षात्कार का उद्देश्य यह जानना है की उम्मीदवार लोकसेवा के लिए व्यक्तित्व की दृष्टि से उपयुक्त है या नहीं | यह परीक्षा उम्मीदवार की मानसिक क्षमता को जांचने के अभिप्राय से की जाती है | मोटे तौर पर इस परीक्षा का प्रयोजन न केवल उसके बौध्दिक गुणों को वरन सामाजिक लक्षणों को और सामाजिक घटनाओं में उसकी रूचि  का भी  मूल्याङ्कन करना  है | इसमें उम्मीदवार की मानसिक सतर्कता, आलोचनात्मक ग्रहण शक्ति, स्पष्ट और तर्क संगत प्रतिपादन की शक्ति, संतुलित निर्णय की शक्ति, रूचि की विविधता और गहराई, नेतृत्व और सामाजिक संगठन की योग्यता, बौधिक और नैतिक ईमानदारी की भी जांच की जा सकती है |

आ) साक्षात्कार की प्रणाली क्रॉस-एग्जामिनेशन की नहीं वरन स्वाभाविक वार्तालाप की प्रक्रिया द्वारा उम्मीदवार के मानसिक गुणों का पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है | परन्तु, वह वार्तालाप एक विशेष दिशा में एवं एक विशेष प्रयोजन से होता है |

इ) साक्षात्कार उम्मीदवार के सामान्य या विशेष ज्ञान की परीक्षा के लिए नहीं होता क्यूंकि उनकी जांच लिखित प्रश्न पत्रों में पहले ही हो जाती है | उम्मीदवारों से आशा की जाती है की वो ना केवल अपने शैक्षणिक विशेष विषयों में पारंगत हो बल्कि उन घटनाओं पर भी ध्यान दें जो उनके चारों और अपने राज्य या देश के भीतर और बाहर घट रही हैं, तथा आधुनिक विचारधारा और नई-नई खोजों में भी रूचि लें जो की किसी सुशिक्षित युवा में जिज्ञासा पैदा कर सकती है |"


साक्षात्कार की औपचारिकताओं से मैं इस लेख की शुरुआत करना चाहूँगा | ये चीजें महत्वपूर्ण है पर बहुत ज्यादा नहीं।  साक्षात्कार बोर्ड के लोग आप सिविल सेवा के लिए कितने उपयुक्त है, इसे जांचने-परखने के लिए बैठे हैं।  इसलिए आपके अन्दर क्या है, यह उनके लिए ज्यादा मायने रखता है। हालांकि, बाहरी व्यक्तित्व भी गरिमामय हो, इस बात का ध्यान रखना जरुरी है। 

1.औपचारिकताए-- साक्षात्कार के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यताओं के सारे सर्टिफिकेट करीने से रखें | जाति प्रमाणपत्र (अगर आप अनुसूचित जाति/ जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं ),  अपने नियोक्ता से अनापत्ति प्रमाणपत्र (अगर आप वर्तमान में नौकरी कर रहे हैं ) और साक्षात्कार फॉर्म में दिए अन्य निर्दिष्ट प्रमाण पत्र साथ में रखना ना भूलें | आपके साक्षात्कार से पहले आपके सर्टिफिकेट वेरीफाई किये जायेंगे |

2.वेश-भूषा -  आपका पहनावा औपचारिक एवं गरिमापूर्ण होना चाहिए | हाँ, इस बात का ध्यान रखे की आप मॉडलिंग के लिए नहीं जा रहे हैं | मैंने अपने साक्षात्कार के लिए डार्क ब्लू कलर की पैंट और उजले में महीन सोबर डिजाईन वाली शर्ट पहनी थी | टाई का प्रयोग आपकी इच्छा पर है, पर अगर आप इसके साथ आरामदेह है तो टाई का व्यवहार करे | बेल्ट और शू फॉर्मल होनी चाहिए | सबसे महत्त्वपूर्ण बात है की आप अपने साक्षात्कार के दिन के ड्रेस के साथ सहज और विश्वस्त होने चाहिए | साक्षात्कार के पहले ड्रेस को दो-तीन बार पहने | एक वैकल्पिक जोड़ा भी साथ में रखे |

3.अभिवादन -
हिंदी माध्यम से जो छात्र साक्षात्कार देने जाते हैं, उनको इस बात की सबसे ज्यादा उलझन होती है की अभिवादन में हिंदी का व्यवहार करे या प्रचलित अंग्रेजी जुमलों का | मेरी अपनी राय है की जब आप पूरा साक्षात्कार हिंदी में देने जा रहे हैं तो उसकी शुरुआत अंग्रेजी के साथ करना इस बात को दर्शाता है की आप अपनी भाषा को कमतर मानते है | कमरे में प्रवेश के समय अनुमति भी हिंदी में ही मागे- "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ श्रीमान ?"( वैसे बहुत बार इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती है , साक्षात्कार बोर्ड गेट खुलते ही  आपका नाम पुकारते हुए आपको अन्दर आकर बैठने को कह सकता है |) अन्दर जाकर आप अपने लिए निर्दिष्ट कुर्सी के पास जाकर खड़े होकर चेहरे पर मुस्कराहट के साथ भारतीय परम्परा में साक्षात्कार बोर्ड के अध्यक्ष/अध्यक्षा एवं अन्य सदस्यों की तरफ देखते हुए हाथ जोड़ कर नमस्कार करे | सामान्यतः चेयरमैन बीच में और चार अन्य सदस्य (दो उनकी दायीं तरफ और दो बायीं तरफ ) होते हैं | आप अभिवादन करते हुए एक बार चेयरमैन को, एक बार दायीं और के दो सदस्यों को और एक बार बायीं और के दो सदस्यों को देखते हुए नमस्कार करें | सारे सदस्यों को अलग- अलग नमस्कार करने की जरुरत नहीं है | हाँ  अगर कोई महिला सदस्य हो तो आप उन्हें अलग से नमस्ते कर सकते हैं |


4.बायो-डाटा -    आप सबों की तरह मुझे भी ये शंका थी कि आप के सर्टिफिकेट और बायोडाटा साक्षात्कार कक्ष में आपके साथ रखना जरुरी है या नहीं? आपके द्वारा भरे गए विवरण के आधार पर आपका बायोडाटा साक्षात्कारकर्ताओं के पास मौजूद होता है | अतः , आप अपने बायोडाटा और सर्टिफिकेट की फाइल  एहतियात के तौर पर अपने साथ साक्षात्कार कक्ष में ले भी  सकते हैं या कक्ष के बाहर यदि उसे रखने की व्यवस्था हो तो छोड़ भी सकते हैं |  


 
तो, साक्षात्कार के दिन क्या पहनना है, किस तरह के कपड़े आपके व्यक्तित्व की सही  झलक देंगे, प्रमाणपत्र, बायोडाटा जैसी आवश्यक  औपचारिकताए 3-4  दिनों के अन्दर निपटा ले।  इनके बाद आपको अपने साक्षात्कार के केंद्र बिंदु पर ध्यान देना है। 

सबसे पहले आपने प्राथमिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा के फॉर्म को भरने में जो जानकारियां भरी हैं, उनकी एक कॉपी ले अपनी एक डायरी या नोट बुक में साक्षात्कार के संभावित मुद्दों एवं  का चयन करे एवं संभावित प्रश्नों  उनका करें।

कुछ संभावित टॉपिक इस प्रकार हैं-

१. आपकी शैक्षिक पृष्ठभूमि - आपने जिस विषय से स्नातक एवं उससे ऊपर का अध्ययन किया है उसकी एक स्तरीय जानकारी होना आपके लिए जरुरी है. वर्तमान में उस विषय से जुड़े मुद्दे जो ख़बरों में हो उसकी भी जानकारी आपके लिए अनिवार्य है। साक्षात्कार बोर्ड  आपसे आपके पढ़े विषयों की  गंभीर जानकारी अपेक्षित  करता है खासकर जब वो आपका वैकल्पिक विषय भी हो। 

२. आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि - आपके माता- पिता , भाई- बहन के कार्यक्षेत्र से जुडी महत्तवपूर्ण बातें | 

३. आपका गृह राज्य- उसका इतिहास-भूगोल-राजनीति-कला-संस्कृति और वहां वर्तमान में चर्चा में रही ख़बरें जो राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में रही हो।  

४. आपका गृह जिला- वहां की खास बातें, वहां का प्रशासन, अगर आपको वहां का जिला कलक्टर या पुलिस कप्तान का कार्यभार दिया जाये तो क्या बदलाव लायेंगे.

५. आपका कर्म क्षेत्र एवं  कर्म भूमि-  अगर आप किसी नौकरी में  हों तो उस नौकरी के कार्य, महत्त्व, आंकड़े, संगठन और अन्य जरुरी बातों को भी तैयार कर ले |  आप कही दुसरे राज्य में कार्य कर रहे हैं तो उस राज्य और जिले के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाना जरुरी है. जैसे पश्चिम बंगाल में  काम कर रहे लोगों के लिए विवेकानंद एवं रामकृष्ण मिशन, नक्सलवाद, बंगाल का विकास, बंगलादेशी शरणार्थियों और आप्रवासियों की समस्या जैसे मुद्दे पर विस्तृत जानकारी जरुरी है.  राजस्थान में यदि आप नौकरी कर रहे हैं  राजपूताने का इतिहास, रेगिस्तान से जुडी जानकारियां, पर्यटन, वहां के किले, जल संरक्षण जैसे बिंदु आपको जानने चाहिए | 

६,भारत के इतिहास, भूगोल, वर्तमान, भविष्य, यहाँ की कला-संस्कृति-सभ्यता- धर्म-साहित्य- प्रशासन-राजनीति जैसे मुद्दों पर आपके पास समुचित जानकारी होनी चाहिए | 

७.अंतर्राष्ट्रीय संबध -खासकर भारत के विदेश संबंधों के बारे में आपकी स्पष्ट राय होनी चाहिए. अभी खासकर इस  सम्बन्ध में कुछ अहम् मुद्दे निम्न हैं -
* G  20 की अध्यक्षता एवं महत्त्व, 
*संयुक्त राष्ट्र संघ  भारत की भूमिका,
* रूस-यूक्रेन  युद्ध और रूस -नाटो के तनाव के तृतीय विश्व  युद्ध में बदलने की सम्भावना 
*क्या भारत की रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थता और रूस से पेट्रोलियम खरीदना भारत के विदश नीति हेतु ठीक है 
* श्रीलंका का आर्थिक संकट और जन आंदोलन 
*गलवान, डोकलाम, अरुणाचल तिब्बत पर चल  रहे विवादों के बीच भारत चीन संबंध और भारत को चीन के साथ संतुलन हेतु सामरिक, आर्थिक एवं वैश्विक सम्बन्ध में क्या करना चाहिए 
* पाकिस्तान के साथ भारतीय संबंधों की वर्तमान स्थिति 
*अफगानिस्तान की  वर्तमान तालिबान  सरकार के साथ भारत के संबंध 

८.आपने सेवाओं की जो प्राथमिकता दी है, उसके स्पष्ट और तर्कपूर्ण उत्तर आपके पास होने चाहिए. और आपके उत्तरों से ऐसा नही लगना चाहिए की आप किसे सर्विस को कम करके आंक रहे हैं .
उदाहरण के लिए यदि आपकी पहली प्राथमिकता आईएएस और दूसरी आईएफएस है तो उसका कारण आपसे पूछा जा सकता है. अगर आपने कुछ अनोखी प्राथमिकताएँ दी है, तो सवाल पूछे जाने की संभावनाएं ज्यादा होती है. जैसे किसी की प्रथम चॉइस अगर IRS या आईपीएस हो तो 'क्यूँ 'का आपके पास संतोषजनक उत्तर होना चाहिए.

९. राज्यों की प्राथमिकताओं पर भी सवाल हो सकते हैं. ईमानदार जवाब काफी है. हर किसी के अपने गृह राज्य या नजदीक के राज्य या पसंद के राज्य में जाने के अपने -अपने कारण होते है. उसे विश्वस्तपूर्ण रूप में बताना काफी है. हाँ, बोर्ड को ये नही लगना चाहिए की आप समस्याग्रस्त राज्यों से भागने की चेष्टा कर रहे हैं.

१०. बजट एवं एवं भारतीय अर्थव्यवस्था  के बारे में मुख्य जानकारियां आपके पास होनी चाहिए.

११. समसामयिक मुद्दों  जैसे 
*फुटबॉल को भारत में कैसे बढ़ावा दिया  सकता है ताकि विश्व कप फुटबॉल जैसे मुकाबलों में  भारत की टीम भी हिस्सा ले सके 
*कोरोना से देश-दुनिया में आये बदलाव 
*प्राथमिक स्वस्थ्य को सुदृढ़ किये  आवश्यकता 
*जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के  प्रश्न का क्या समाधान 
*क्या क्रिप्टो करेंसी को बैन किया जाना चाहिए 
* TB के उन्मूलन की भारत की 
*  प्रशासनिक भ्रष्टाचार की रोकथाम 
*  महिलाओं के विरुद्ध  बढ़ते जघन्य  अपराध और उन्हें रोकने की  रणनीति 
 * जनांदोलन का बदलता स्वरुप 

 इन समसामयिक मुद्दों पर आपके पास एक संतुलित और तार्किक राय होनी चाहिए. अति से बचे. हमेशा ध्यान रखे की विचारों में बुध्ध के मध्यम  मार्ग का पालन हमेशा श्रेयस्कर होता है. मूल्यों पर अटल रहे पर विचारों में लचीलापन बनाये रखे. आपके खुद के विचार समय के साथ कैसे बदलते हैं , इसका विश्लेषण करने पर आप इस बात की उपयोगिता समझ पाएंगे. अपने विचारों के साथ दूसरों (बोर्ड के सदस्यों ) के विचारों का भी आदर करे और हठधर्मिता से बचे। किसी व्यक्ति, संस्था,देश,  अंतर्राष्ट्रीय संगठन, NGO के बारे  में प्रश्न होने पर सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं के  साथ संतुलित विचार रखें | 

१२. पाठ्येतर गतिविधियों में अगर आपकी सहभागिता रही है तो उसके बारे में पूरा जानकारी जुटा कर रखे.

१३. आपने फॉर्म में जो शौक फरमाए हैं(HOBBY) वो आपको शौक न दें, इसका ख्याल रखे. हॉबी से साक्षात्कार  में ढेर सारे सवाल आने की आशा रख सकते हैं. इसलिए, हॉबी में आपने जो- जो विषय दिए हैं, उसके बारे में आपके पास पूरी जानकारी होनी चाहिए. जैसे, अगर आपने किताबें पढना अपनी हॉबी में दिया है तो हाल में पढ़ी अच्छी किताबों के बारे में, आपके प्रिय लेखक एवं कवि के बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए.  आपको साहित्यिक फेस्टिवल एवं पुस्तक मेलों के आयोजन के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए. हॉबी पर मैंने एक विस्तृत आलेख दिया है जिसे आप एक बार देख सकते हैं.

१४.बहुत सारे परिस्थिति वाले सवाल आपसे पूछे जा सकते हैं जैसे-
---आपके जिले  कोविड के केस तेजी से बढ़ रहे हैं, आप जिला पदाधिकारी के तौर पर क्या कदम उठायेंगे। 
---आपके जिले में एक  पुराना पल पुल क्षतिग्रस्त हो गया है और और वहां कई लोगों  के फंसे होने की सूचना है, आप क्या कदम उठाएंगे | 
   --अगर आप किसी नक्सल प्रभावित जिले में पोस्टेड हो तो नक्सलवाद से निपटने के लिए क्या कदम उठाएंगे?
---आपको ऐसे जिले में पोस्टिंग मिली है जहाँ पेयजल की भारी समस्या है, आप उससे कैसे निपटेंगे?
---आपके जिले में भूकंप या चक्रवात या बाढ़ जैसी कोई प्राकृतिक आपदा आने की चेतावनी मिली है. आप क्या-क्या कदम उठाएंगे?

इन सारे मुख्य विषयों पर पूछे जा सकने वालों सवालों की खुद से सूची बनाये और उनके जवाब तैयार करे।  अपने साथियों के साथ पूरी गंभीरता से छद्म साक्षात्कार की तैयारी करे।  जरुरत लगे तो कोचिंग संस्थाओं के छदम साक्षात्कार बोर्ड की सहायता भी ले सकते हैं।  पत्रिकाओं से सफल प्रतिभागियों के साक्षात्कार पढ़े। उनसे आपको साक्षात्कार में पूछे जा सकने वाले प्रश्नों की विविधता का अंदाजा लगेगा।  साक्षात्कार पर   कुछ स्तरीय बुक भी ले सकते हैं। पत्रिकाओं में कम्पटीशन सक्सेस रिव्यु के साक्षात्कार वाले कॉलम और विश्लेषण से आपको काफी सहायता मिलेगी।  इसके 2 -3 सालों के अंक  साक्षात्कार एवं ग्रुप डिस्कशन के कॉलम अच्छे से पढ़ पढ़ लें। 


साक्षात्कार कक्ष में में ध्यान देने योग्य कुछ अन्य बातें -




-साक्षात्कार में नपे- तुले शब्दों में जवाब देना श्रेयस्कर है. जितना पूछा जाये, उतना ही जवाब दे।  साक्षात्कार बोर्ड के सभी सदस्यों की और देखते हुए आई कांटेक्ट बनाये रखते हुए जवाब दे। 

-चेहरे पर स्वाभाविक सहज मुस्कान बनाये रखे। चेहरे पर चिंता या घबराहट को नहीं झलकने दें।  काफी सहजता से साक्षात्कार के सहज प्रवाह में बहते चले। 

-जिस सवाल का जवाब न आता हो, ईमानदारी के साथ बोर्ड को बताये कि आपको उस सवाल का जवाब पता नहीं है। और आप उस बारे में जानकारी हासिल करेंगे। (सभी सवालों के जवाब तो गूगल को भी पता नहीं है। )  

-यथार्थोन्मुख आदर्शवाद पर चलें, ऐसे जवाब न दें जिन्हें अमली  जामा नहीं पहनाया जा सकता |  

-मानवतावाद, संविधान और नैतिक मूल्य मात्र से प्रेरित हो उनके दायरे में जवाब दें। 


अपनी तरफ से इन्ही शब्दों के साथ मैं आप लोगों की सफलता की दुआ करते हुए आप लोगों से विदा लेता हूँ. ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.


 

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

शिशु मृत्यु दर में सतत विकास लक्ष्य की केरल की मैराथन दौड़

किसी भी देश के लिए शिशु मृत्यु दर यानि प्रति एक हजार जीवित जन्मे शिशुओं में एक वर्ष के समय में होने वाली मृत्यु की संख्या उसके सामाजिक विकास को दर्शाने का एक अहम  मापदंड है | भारत सरकार  रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय इस आंकड़ें का का वार्षिक आकलन करता है | भारत के लिए वर्ष 2018 में शिशु मृत्यु दर 32 से घटकर 30 पर पहुंची है | बड़े राज्यों में बिहार अच्छा प्रदर्शन करते हुए 32 से घटकर 29 के आंकड़े पर पहुंचा है | यह पहली बार है की बिहार की शिशु मृत्यु दर भारत से बेहतर हुई है और यह सतत विकास लक्ष्य की समयबद्ध प्राप्ति के लिए पूरे देश को आशाजनक आश्वस्ति देता है | बिहार के बारे में यह बात भी काफी अच्छी है की शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर में बस दो अंकों का अंतर है | शहरी क्षेत्र के लिए जहाँ यह दर 27 है, वही ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह दर 29 है | 

सैंपल रजिस्ट्रेशन बुलेटिन अक्टूबर 2021 में जारी हुई है और बड़े राज्यों में केरल ने शानदार उपलब्धि दर्ज करते हुए शिशु मृत्यु दर को 6 पर लाने का कारनामा कर दिखाया है |  सतत विकास लक्ष्य के इस महत्तवपूर्ण पड़ाव को 11 वर्ष पहले हासिल करके केरल ने भारत के अन्य बड़े राज्यों के लिए एक मिसाल पेश की है | केरल की यह यात्रा एक मैराथॉन  यात्रा रही है | एक समय वह भी था जब केरल की शिशु मृत्यु दर 13 के आंकड़े से नीचे आने का नाम ही नहीं ले रही थी | यह वह समय था जब लोग केरल में सवाल पूछ रहे थे की शिशु मृत्यु दर को एक अंक में लाने का केरल का सपना क्या सपना ही रह जायेगा | 


केरल की  इस उपलब्धि के पीछे क्या-क्या आधारभूत कारण रहे हैं, इस पर इस आलेख में विस्तार से चर्चा करना चाहूंगा | 

राज्य आधारित सतत विकास लक्ष्य  

सतत विकास लक्ष्यों में केरल अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में काफी आरामदेह स्थिति में था | ऐसे में स्वास्थ्य की टीम ने मिलकर स्वास्थ्य सचिव राजीव सदानंदन के नेतृत्व में केरल के अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज विशेषज्ञों के टीम वर्क द्वारा केरल केंद्रित चुनौतीपूर्ण सतत विकास लक्ष्यों का निर्धारण किया | इसने पूरी टीम को एक लक्ष्य दिया जिसको प्राप्त करना श्रमसाध्य था और साथ ही रोमांचक भी था | शिशु मृत्यु दर का लक्ष्य 2020 तक 8 एवं वर्ष 2030 तक 6 का लक्ष्य निर्धारित किया गया था | 


लक्ष्य का क्रियान्वयन 

शिशु मृत्यु दर को तीव्र गति से कम करने के लिए स्वास्थ्य सचिव के स्तर पर सभी विशेषज्ञों एवं सम्बद्ध लोगों के साथ टास्क फाॅर्स का गठन किया गया था | प्रति माह की आवृति में होनेवाली इसकी बैठक ने द्रुत गति से शिशु मृत्यु दर में कमी में एक बड़ी भूमिका निभायी | स्वास्थ्य मिशन, स्वास्थ्य निदेशालय, स्वास्थ्य शिक्षा निदेशालय, SHSRC, शिशु रोग विशेषज्ञों  संगठन IAP , यूनिसेफ एवं अन्य सभी सम्बद्ध लोगों ने इस लक्ष्य के प्रति अपना पूरा सहयोग और समर्पण दिया | 

राज्य  में सभी शिशु मृत्यु की रिपोर्टिंग और जिला एवं राज्य स्तर पर गोपनीय शिशु मृत्यु लेखा को कार्यक्षम बनाया गया ताकि कोई भी शिशु मृत्यु रिपोर्टिंग से न छूटने पाए |  इसके लिए जन्म पंजीयन के आंकड़े एवं आशा द्वारा भी आंकड़ों की पुष्टि की प्रकिया अपनाई गयी |  गोपनीय शिशु मृत्यु लेखा का उद्देश्य था की इससे प्राप्त सीख को सरकारी एवं निजी अस्पतालों के डॉक्टरों, कर्मचारियों के प्रशिक्षण में उपयोग में लाया जाए |  इसने शिशु मृत्यु दर के प्रति सभी स्तरों पर गंभीरता लायी | 


केरल के शत प्रतिशत संस्थागत प्रसव, लोगों में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूकता, टीकाकरण की उच्च दर, गुणवत्तापूर्ण गर्भावस्था जांच इन सब घटकों ने भी वहां के शिशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम् योगदान दिया है | साथ ही राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को रोगी केंद्रित करने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अधिक सुविधा, अधिक डॉक्टर, स्टाफ नर्स के साथ फैमिली हेल्थ सेंटर में बदलने के निर्णय ने भी मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की सुविधाओं में बड़ा परिवर्तन लाने में योगदान दिया | 

दो अन्य कार्यक्रम जिसने इस उपलब्धि को पाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई वो हैं हृदय की गंभीर आनुवंशिक बीमारी से ग्रसित (CHD) बच्चों के ईलाज हेतु हृदयम कार्यक्रम एवं समग्र नवजात  शिशु स्वास्थ्य जाँच के कार्यक्रम शलभं  | इन दोनों कार्यक्रमों ने पूरे देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा | इन दोनों नवाचारों ने शिशु मृत्यु दर को तेजी से घटाने में अहम् भूमिका निभायी |  

केरल की यह उपलब्धि आशान्वित करती है की केरल के साथ पूरे देश में शिशु स्वास्थ्य में क्रन्तिकारी बदलाव संभव है, बस रणनीति सही होनी चाहिए | केरल स्वास्थ्य टीम  के साथ मिशन डायरेक्टर , NHM  के तौर पर इन तीन वर्षों के कार्यकाल की संतुष्टि आज भी मन को  आनंद और आत्मसंतुष्टि  देती है |  सभी राज्य यदि शिशु मृत्यु दर में कमी की रणनीति बनाकर सुचारु क्रियान्वयन करे तो सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ देश के विकास में भी अहम् भूमिका निभा पाएंगे | 





 

रविवार, 15 अगस्त 2021

आज़ादी के सही मायने

 मेरे लिए आज़ादी का मतलब है की गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी सरकार से सवाल कर सके, सरकार को जवाबदेह रख सके  और उसे यह बता सके की लोकतंत्र में जनता संप्रभु है | 

आज़ादी का मतलब है की जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं शिक्षा एवं स्वास्थ्य अमीर और गरीब के लिए एक जैसी गुणवत्ता में सुलभ हो  | 

आज़ादी जिसमे हर काम की गरिमा हो और समुचित पारिश्रमिक हो और जिसमें हर हाथ को काम उपलब्ध हो | 

मेरे लिए आज़ादी का मतलब है की करोड़ों की हाँ के बीच भी सच की अकेली ना न डरे और अपने विचार पर कायम रहे | 

आज़ादी ऐसी हो की सत्ता जनता की सोचे और जनता को सत्ता को भी उसकी गलती दिखाने में रत्ती-भर हिचक या डर न हो |

मेरे लिए आज़ादी का मतलब है की हर नागरिक शासन में भागीदार हो, सत्ता के सामने कोई न लाचार हो | 

ऐसी आजादी जिसमें किसी भी व्यक्ति  का अहं देश के गौरव से बड़ा होने की सोचे तक नहीं, जहाँ व्यक्तिवाद राष्ट्रवाद और और राष्ट्रवाद मानववाद पर हावी न हो |  



 

सोमवार, 7 सितंबर 2020

आईएएस बनने के लिए करें निबंध और सामान्य अध्ययन पत्र की साझा तैयारी



सिविल सेवा के वर्तमान तैयारी में एक सुझाव मैं सभी अभ्यर्थियों को देना चाहूँगा | निबंध के पत्र की महत्ता  काफी बढ़ गयी है | और इस पत्र की तैयारी का कोई बंधा-बंधाया फार्मूला नहीं है | पत्र-पत्रिकाएं, अच्छी किताबें, आपके जीवन का अच्छा-बुरा सारा अनुभव, आपकी भाषा-सब मिलकर आपको निबंध के पत्र एवं साथ ही  साक्षात्कार के लिए तैयार करती है | 

निबंध के पत्र की तैयारी में अभ्यास का काफी महत्त्व है | मेरा सुझाव है की सामान्य अध्ययन के चारों पत्रों में  लगभग एक तिहाई से ज्यादा टॉपिक ऐसे हैं जिन्हें अगर आप निबंध के लिए तैयार कर ले तो एक पंथ दो काज होंगे | हाँ, वही प्रश्न निबंध की सामान्य अध्ययन में आने पर 1250 शब्दों की जगह 150 -250 शब्दों में सुन्दर, सटीक एवं प्रासंगिक उत्तर लिख पाने की कला आपमें होनी चाहिए | पिछले वर्ष सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र में आये एक प्रश्न को मैं यहाँ आपकी मार्गदर्शन के लिए निबंध एवं  के उत्तर, दोनों के रूप में  हूँ




 

निंबंध - क्या हम वैश्विक पहचान के लिए अपनी स्थानीय पहचान खोते जा रहे हैं? युक्तियुक्त विवेचन करें  |  (125  अंक - 1250 शब्द )
या 
क्या पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर हावी हो रही है ? अपने तर्कसंगत विचार रखे | 

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फैसला रखना | 
जहाँ कतरा समंदर से मिला,  कतरा नहीं रहता | 
-बशीर बद्र 

वैश्विक पहचान और स्थानीय पहचान को ऊपर के शेर में दिए गए उदहारण से बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है |  वैश्विक पहचान का मतलब है एक विश्व मानव के रूप में हमारी पहचान | वहीं स्थानीय पहचान हमें हमारी जड़ों, हमारे निवास स्थान, समाज, क्षेत्र एवं देश  के साथ जोड़ते हुए बनी हुयी पहचान है | स्थानीय पहचान को सूक्ष्म स्तर पर समाज या  समुदाय के स्तर तक भी देखा जा सकता है | मगर जब हम वैश्विक पहचान के सन्दर्भ में तुलना करे तो स्थानीय पहचान से हमारी भारतीय पहचान अपेक्षित है |  अगर हम पूरी मानव सभ्यता की बात करे तो वैश्विक पहचान भी जरुरी है |  मगर वैश्विक पहचान में स्थानीय पहचान गुम नहीं होनी चाहिए | स्थानीय पहचान और वैश्विक पहचान उसी तरह आपस में जुड़े होने चाहिए जैसे मोतियों की माला में हर  मोती अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखते हुए माला की खूबसूरती भी बढाती है | 

भारत के संदर्भ में देखे तो वैश्वीकरण के आक्रमण ने हमारी स्थानीय पहचान को बहुत हद तक क्षति पहुँचाई है | विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार इसपर चढ़ाई की | कइयों ने इस देश की संपत्ति को लूटा और   यहाँ से चले गए | मगर उनमे से बहुतेरे यहीं बस गए और यहाँ की पहचान में अपनी जीवनशैली की खुशबू मिलकर आत्मसात हो गए | महाकवि इकबाल ने इसे ही वाणी देते हुए कहाँ है की -
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा[7] सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा | 
वैश्वीकरण और वैश्विक पहचान से स्थानीय पहचान के आक्रांत होने को  शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, सभ्यता, कला, नृत्य के साथ जीवन के कई अंगों में देखा जा सकता है |  वैश्वीकरण का सबसे बड़ा नुक्सान यह है की हमें हमेशा दूर के ढोल सुहावने लगते हैं | वैश्विक पहचान की चकाचौंध में हम अपनी स्थानीय पहचान की गरिमा को भूलने लगते हैं | 

शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम के कान्वेंट स्कूलों का वर्चस्व 

शिक्षा के क्षेत्र में देखे तो हम भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा को  नकारने लगे हैं | आज गरीब-से-गरीब आदमी भी यह सोचता है की अगर बच्चे को कुछ बनाना है तो अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में उसे भेजना पड़ेगा | 
इंटरनेशनल स्कूल के ब्रांड के आगे नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और गुरुदेव रवींद्रनाथ के भारतीय पहचान में रचे-बसे शांतिनिकेतन जैसे शिक्षा के महती केंद्रों की स्थानीय पहचान लुप्त हो रही है |  अपने बच्चों को विश्व नागरिक बनाने की चाह में हम उनकी भारतीय पहचान को विलुप्त कर  रहे हैं | उच्च  शिक्षा के लिए भी उच्च वर्ग के परिवारों में अपने बच्चों को विदेश में ऑक्सफ़ोर्ड, कैंब्रिज, MIT  जैसे वैश्विक पहचान वाले संस्थाओं में भेजने की होड़ लगी रहती है | शोध के क्षेत्र में भी जगदीश चंद्र बोस, सर सी वी रमण,होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई की स्वदेशी शोध की राह को भूल हमें लगता है उच्च स्तर की शोध और खोज भारत में रहकर नहीं  सकता |   ऐसी शिक्षा से वो शायद आधुनिक कहला सके, मगर इस आधुनिकता को पाने के लिए बहुधा स्थानीय पहचान के नेपथ्य में जाने की कीमत चुकानी पड़ती है | 

अपनी मातृभाषा एवं साहित्य में भारतीय वांग्मय और लेखन के प्रति उपेक्षा 
वैश्विक पहचान की एक और बड़ी बुराई यह देखने को मिल रही है की हमारे बच्चों को शेक्सपियर और वर्ड्सवर्थ तो मालूम होते हैं मगर उनसे अगर प्रेमचंद, महादेवी वर्मा , तकषि शिवशंकर पिल्लई , फकीरचंद सेनापति, विभूतिभूषण बंदोपाध्याय, काजी नजरुल इस्लाम, सुब्रह्मण्यम भारती, विद्यापति, कबीर के बारे में पूछे  पता नहीं होता | अपनी मातृभाषा और उसके साहित्य को पाश्चात्य साहित्य से हीन  समझने की मनोग्रंथि वैश्विक पहचान के आगे घुटने टेकने जैसी है | शिक्षित तबके का तो यह आलम है की वो अपनी मातृभाषा को छोड़ दैनंदिन व्यवहार में भी अंग्रेजों के कान काटने लगा है | उन्हें अपनी बोली और जुबान में बोलना पिछड़ेपन की निशानी लगता है | यह सैकड़ों भाषाओं और स्थानीय पहचान के लिए  अस्तित्व का संकट पैदा कर रहा है | 

स्वास्थ्य के क्षेत्र में एलोपैथी का वर्चस्व 
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारतीयों ने योग पर भी तब ज्यादा ध्यान देना शुरू किया जब योग वैश्विक पहचान का हिस्सा बन गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मानाने की शुरुआत हुई | भारतीय चिकित्सा प्रद्धतियों आयुर्वेद, सिद्ध एवं भारत का प्राचीन काल से उपयोगित यूनानी, तिब्बी जैसी पब्लिक हेल्थ में कारगर चिकित्सा प्रद्धति की घनघोर उपेक्षा की गयी और उनके विकास  के लिए अभी भी पर्याप्त प्रयास नहीं हो पा रहे हैं | कोरोना संकट के समय में जब प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने की बात आती है, तब जाकर लोग फिर  आयुर्वेद एवं सिद्धा की और मुड़ते हैं | भारत के देशज आयुर्वेदा और सिद्धा में प्रकृति के अनमोल जड़ी-बूटियों और हजारों वर्षों के अनुभव का सार छुपा है और इस स्थानीय पहचान का आदर करने और इसका और विकास करने की जरुरत है | 

कला, संगीत, नाटक  एवं सिनेमा के क्षेत्र में 
सौभाग्यवश इस क्षेत्र में भारत  की मिली-जुली संस्कृति-सभ्यता की समृद्ध विरासत के कारण हमारी स्थानीय पहचान ने अपनी विशिष्टता कायम रखी  वैश्विक योगदान भी दिया | भारत के शास्त्रीय नृत्य यथा भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, कथक  ने अपनी वैश्विक पहचान बनायी | भारत के शास्त्रीय संगीत एवं संगीतकारों ने भी पुरे विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया | पंडित रविशंकर, बिरजू महाराज, सोनल मानसिंह जैसे बहुमुखी प्रतिभा धनी कलाकारों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया |   सिनेमा में भी बॉलीवुड एवं भारतीय सिनेमा ने विश्व के कई हिस्सों में अपनी अमिट  छाप छोड़ी है | नाटक में भी पृथ्वी थिएटर, जन नाट्य मंच जैसे संस्थाओं  भारतीय पहचान को मजबूत बनाया |  सत्यजीत रे, अडूर गोपालकृष्णन, हबीब तनवीर जैसे लोगों ने सिनेमा और थिएटर की विधा की भारतीय पहचान को विश्व स्तर पर नाम दिलाया | 

धर्म-दर्शन-अध्यात्म के क्षेत्र में 

इस क्षेत्र में भी भारतीय नवजागरण के नायकों की वजह से भारतीय पहचान ने वैश्विक पहचान को प्रभावित किया | धार्मिक पर्यटन दृष्टि  हर धर्म के कई पवित्र स्थल मौजूद है | हिन्दू, बुद्ध, जैन, सिख धर्म की यह जन्मभूमि है | पारसी धर्म को भी इसने आश्रय देकर जिलाये रखा | मुस्लिम और ईसाई धर्म भी यहाँ अपनी स्थापना  शुरूआती दौर में ही आये और भारतीय प्रभाओं के साथ मौजूद हैं | बुद्ध, कबीर,  विवेकानंद, कृष्णमूर्ति, अरविन्द जैसे महान लोगों  भारतीय धर्म और आध्यात्म का पुरे विश्व में परचम लहराया | गीता और उपनिषदों के उपदेश की भी विश्व में धूम रही | जयदेव, विद्यापति  चैतन्य से प्रेरित स्वामी प्रभुपाद का इस्कॉन पूरे विश्व में कृष्णा  मधुरा भक्ति की पताका फहरा रहा है | आध्यात्मिक शांति के लिए पूरी दुनिया बनारस, पांडिचेरी, बोधगया, सारनाथ जैसे अनगिन  पवित्र स्थलों के चक्कर लगाती है | चाणक्य नीति से लेकर पंचतंत्र, कथासरित्सागर से लेकर  कथाएं, रामायण, महाभारत ने वैश्विक मानस पर भारतीय धर्म और दर्शन  गहरी छाप छोरी है | 

फैशन एवं रहन - सहन
इस  क्षेत्र में हमारी स्थानीय पहचान कुछ हद तक वैश्विक पहचान से प्रभावित हुई और कुछ हद तक इसने वैश्विक पहचान को प्रभावित भी किया है | साड़ी, बिंदी, चूड़ी और हमारे आभूषणों ने पुरे विश्व में अपना छवि बनायी | वहीं सूट, पैंट, शर्ट ने हमारे धोती-कुर्ते के पहनावे पर बहुत प्रभाव डाला है | आज उच्च वर्ग पहनावे के मामले में विदेशी पहचान को पूरी तरह आत्मसात कर रहा है | मगर ग्रामीण भारत और महिलाओं ने पहनावे मे स्थानीय पहचान को तरजीह दी है |  विदेशी ब्रांडो के प्रति हमारा मोह और विश्वास ज्यादा ही गहरा है | 

 


खेल-कूद के क्षेत्र में 
खेल-कूद भी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारतीय पहचान वैश्विक  आगे दब जाती है | हॉकी के स्वर्णिम दिनों को छोड़ दें  तो क्रिकेट की दीवानगी ने अन्य भारतीय खेलों  हाशिये पर धकेल दिया | ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन जनसंख्या के अनुपात में शर्मनाक है | खेल में राजनीति एवं देश में खेल संस्कृति का अभाव भी इसका एक कारन है | हालाँकि, तीरंदाजी, निशानेबाजी, शतरंज, बैडमिंटन जैसे खेलों में हमारा प्रदर्शन सुधरा है मगर अभी भी खेलों में भारतीय पहचान को विश्व पटल पर सम्मान दिलाने को बहुत कुछ करना बाकी है |  

औद्योगिक पहचान और स्थानीय बनाम वैश्विक ब्रांड 
भारत जिस एक  चीज में पिछड़ा है, वह है हमारा औद्योगिक विकास | आज स्टील से लेकर मोटरकार, बाइक, दवाएं,  जैसी कई उत्पादों में हम विश्व में अग्रणी हैं | हीरो हौंडा, टीवीएस  बाइक  उत्पादन में विश्व में अग्रणी है |  भारत दुनिया भर को सस्ती दवाएं देकर वर्ल्ड फार्मेसी कहलाता है | आयुर्वेदा की पूरे  मांग बढ़ रही है |   क्षेत्र में हम पूरी दुनिया को अपनी  देते हैं | लेकिन कई ऐसे उत्पाद है जिसमे  क्षमता होते हुए हम विदेशों पर निर्भर हैं | हमारा युवा छाछ, लस्सी, फलों के जूस जैसे हजारों स्वस्थ पेय  छोड़ कोकाकोला, पेप्सी जैसे विदेशी  कोल्ड ड्रिंक का दीवाना है | हमारे देशी नमकीन और भुजिया को छोड़ Lays  चिप्स  जैसे विदेशी उत्पादों का दीवाना है | हमारे देश की करोड़ों जनता पहले फ़िनलैंड  नोकिआ, साउथ कोरिया की सैमसंग, अमेरिका के एप्पल और चीन के  वीवो जैसे मोबाइल खरीदने को बाध्य है चूँकि हम मोबाइल के निर्माण के  भारतीय ब्रांडों को  नहीं बढ़ा पाए |    ऐसे कई  उदहारण दिए जा सकते हैं | यह एक क्षेत्र है जहाँ हमें लोकल के लिए वोकल होना पड़ेगा |  भारतीय उत्पादों को हमें विदेशी उत्पादों  तरजीह देनी होगी |  जिन वस्तुओं का अभी भारत में उत्पादन नहीं रहा हैं, उनके  उत्पादन की क्षमता को लाने के लिए हमें प्रयास करना होगा | 

रीति-रिवाज एवं पर्व-त्यौहार  
हमारी स्थानीय पहचान में हमारी रीतियों जैसे जन्म से लेकर  शादी से लेकर श्राद्ध तक होने वाले परिपाटियों में न के बराबर बदलाव आया है | हमारे पर्व त्यौहार जैसे होली, दीवाली, ईद, छठ, दुर्गा पूजा, नवरोज (पारसी), बुद्ध पूर्णिमा यथावत है | हाँ, वैश्विक पहचान से हमने क्रिसमस, ईसाई नववर्ष, मदर्स डे, फादर्स डे जैसे पर्व और दिनों को मानना सीखा है जिसमे कुछ अच्छे हैं और कुछ सांकेतिक होने के कारन अनावश्यक हैं | 

खान-पान -
भारत में खान-पान की विविधता ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है | विश्व से पिज़्ज़ा, फास्टफूड जैसी कई प्रभाव भी हमने लिए हैं | मगर हमारे मसाले, मिठाइयाँ, नमकीन, अचार, पापड़, शाकाहारी एवं मांसाहारी व्यंजनों ने पूरे विश्व को अपना दीवाना बनाया है और विश्व के कोने-कोने में आज भारतीय रेस्टोरेंट मौजूद है | 


वैश्विक पहचान के संदर्भ में जब हम स्थानीय पहचान की बात करते हैं तो देशीय पहचान या भारतीय पहचान  होती है | देखा जाए तो भारतीय पहचान  अपने आप में कई स्थानीय पहचानों को समेटे है | सैकड़ों भाषाएं, बोलिया, वेशभूषा, आभूषण, गीत-संगीत, लोकनृत्य, रीति-रिवाज, धर्म, पर्व-त्यौहार, खान-पान, रहन-सहन को आपस में समेटे भारतीय पहचान अपने आप में विविधता में एकता का एक जीवन्त अनूठा उदहारण है | भारत वर्ष में आपको सैकड़ों जीवन शैली और स्थानीय पहचान मिल जायेगी जो समग्र रूप से भारत की स्थानीय पहचान को निर्मित करती है | इन स्थानीय पहचान और प्रभाव को बचाये रखना भी भारत की  विशिष्ट पहचान को बचाये  रखने और इसे  वैश्विक पहचान में अपनी विशिष्टता बनाये रखने में सहायक होंगे |  




गाँधी जी के शब्दों में थोड़ा फेर बदल कर कहे तो हम ये  नहीं चाहते की हमारी स्थानीय पहचान संकीर्ण हो और उस घर की तरह हो जिसके  दरवाजे और खिड़कियां बंद हो | घर की दरवाजे और खिड़कियां खुले रहने चाहिए  वैश्विक पहचान की ताज़ी हवा को आने की जगह हो, कुछ प्रभावित करने और कुछ हमारी पहचान की सुवास से प्रभावित होने की जगह हो | मगर ऐसा भी न हो की वैश्विक पहचान की जब आंधी चले तो हम अपनी स्थानीय पहचान के घर के सभी खिड़की- दरवाजे खुले रखे, क्यूंकि इससे घर के तूफ़ान में उड़ने का खतरा है | वैश्विक पहचान के फूलों के बगिया में हमारी स्थानीय पहचान के फूल को अपनी विशिष्ट पहचान, फूल और खुशबू बचाये रखनी है | इसी में भारत और विश्व दोनों का भला है | 




सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र १ म २०१९ 
प्रश्न संख्या २० - क्या हम वैश्विक पहचान के लिए अपनी स्थानीय पहचान को खोते जा रहे हैं ? चर्चा कीजिये (१५ अंक, २५० शब्द )

उत्तर २० 
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फैसला रखना | 
जहाँ कतरा समंदर से मिला,  कतरा नहीं रहता | 
-बशीर बद्र 

अगर हम पूरी मानव सभ्यता की बात करे तो वैश्विक पहचान भी जरुरी है | मगर वैश्विक पहचान में स्थानीय पहचान गुम नहीं होनी चाहिए | भारत के संदर्भ में देखे तो वैश्वीकरण के आक्रमण ने हमारी स्थानीय पहचान को बहुत हद तक क्षति पहुँचाई है | 

*शिक्षा के क्षेत्र में देखे तो हम भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा को  नकारने लगे हैं | आज गरीब-से-गरीब आदमी भी यह सोचता है की अगर बच्चे को कुछ बनाना है तो अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में उसे भेजना पड़ेगा | अमीर लोग अपने बच्चों को भारत की जगह विदेशों  में उच्च शिक्षा एवं शोध के लिए  भेजना पसंद करते है | 

*स्थानीय पहचान को एक और बड़ा खतरा भाषा और साहित्य के क्षेत्र में है |  हमारे बच्चों को शेक्सपियर और वर्ड्सवर्थ तो मालूम होते हैं मगर भारतीय लेखकों के बारे में मालूम नहीं होता |   शिक्षित तबके का तो यह आलम है की वो अपनी मातृभाषा को छोड़ दैनंदिन व्यवहार में भी अंग्रेजों के कान काटने लगा है | 

*स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारतीयों ने योग पर भी तब ज्यादा ध्यान देना शुरू किया जब योग वैश्विक पहचान का हिस्सा बन गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मानाने की शुरुआत हुई | भारतीय चिकित्सा प्रद्धतियों आयुर्वेद, सिद्ध एवं भारत का प्राचीन काल से उपयोगित यूनानी, तिब्बी जैसी पब्लिक हेल्थ में कारगर चिकित्सा प्रद्धति की घनघोर उपेक्षा की गयी | 

*कला, संगीत, नाटक  एवं सिनेमा के क्षेत्र में  भारत  की मिली-जुली संस्कृति-सभ्यता की समृद्ध विरासत के कारण हमारी स्थानीय पहचान ने अपनी विशिष्टता कायम रखी  वैश्विक योगदान भी दिया | भारत के शास्त्रीय नृत्य यथा भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, मोहिनीअट्टम, कथक  ने अपनी वैश्विक पहचान बनायी |  पंडित रविशंकर, बिरजू महाराज, सोनल मानसिंह जैसे बहुमुखी प्रतिभा धनी कलाकारों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया |   सिनेमा में भी बॉलीवुड एवं भारतीय सिनेमा ने विश्व के कई हिस्सों में अपनी अमिट  छाप छोड़ी है |  सत्यजीत रे, अडूर गोपालकृष्णन, हबीब तनवीर जैसे लोगों ने सिनेमा और थिएटर की विधा की भारतीय पहचान को विश्व स्तर पर नाम दिलाया | 

*धर्म-दर्शन-अध्यात्म के क्षेत्र में  भारतीय नवजागरण के नायकों की वजह से भारतीय पहचान ने वैश्विक पहचान को प्रभावित किया | हिन्दू, बुद्ध, जैन, सिख धर्म की यह जन्मभूमि है | पारसी धर्म, मुस्लिम और ईसाई धर्म भी  भारतीय प्रभाओं के साथ मौजूद हैं | बुद्ध, कबीर,  विवेकानंद, कृष्णमूर्ति, अरविन्द जैसे महान लोगों  भारतीय धर्म और आध्यात्म का पुरे विश्व में परचम लहराया | वेद, उपनिषद, गीता. बुद्धोपदेश, चाणक्य नीति से लेकर पंचतंत्र, कथासरित्सागर से लेकर  कथाएं, रामायण, महाभारत ने वैश्विक मानस पर भारतीय धर्म और दर्शन  गहरी छाप छोरी है | 

*फैशन एवं रहन - सहन के क्षेत्र में हमारी स्थानीय पहचान कुछ हद तक वैश्विक पहचान से प्रभावित हुई और कुछ प्रभाव भी डाला | साड़ी, बिंदी, चूड़ी और हमारे आभूषणों ने पुरे विश्व में अपना छवि बनायी | वहीं सूट, पैंट, शर्ट ने हमारे धोती-कुर्ते के पहनावे पर बहुत प्रभाव डाला है | भारतीय खान-पान और मसलों  विश्व में अपनी छाप छोड़ी है | 

* हमारी रीति-रिवाजों  जैसे जन्म से लेकर  शादी से लेकर श्राद्ध तक होने वाले परिपाटियों में न के बराबर बदलाव आया है | हमारे पर्व त्यौहार जैसे होली, दीवाली, ईद, छठ, दुर्गा पूजा, नवरोज (पारसी), बुद्ध पूर्णिमा यथावत है | हाँ, वैश्विक पहचान से हमने क्रिसमस, ईसाई नववर्ष, मदर्स डे, फादर्स डे जैसे पर्व और दिनों को मनाना  सीखा है | 

*खेल-कूद भी एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारतीय पहचान वैश्विक  आगे दब जाती है | हॉकी के स्वर्णिम दिनों को छोड़ दें  तो क्रिकेट की दीवानगी ने अन्य भारतीय खेलों  हाशिये पर धकेल दिया | ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन जनसंख्या के अनुपात में शर्मनाक है | खेल में राजनीति एवं देश में खेल संस्कृति का अभाव भी इसका एक कारण  है | हाल के वर्षों में  तीरंदाजी, निशानेबाजी, शतरंज, बैडमिंटन जैसे खेलों में हमारा प्रदर्शन सुधरा है | 


*भारत जिस एक  चीज में पिछड़ा है, वह है हमारा औद्योगिक विकास | आज स्टील से लेकर मोटरकार, बाइक, दवाएं,  जैसी कई उत्पादों में हम विश्व में अग्रणी हैं | हीरो हौंडा, टीवीएस  बाइक  उत्पादन में विश्व में अग्रणी है |  भारत दुनिया भर को सस्ती दवाएं देकर वर्ल्ड फार्मेसी कहलाता है |  हमारे देश की करोड़ों जनता विदेशी में उत्पादित  मोबाइल खरीदने को बाध्य है चूँकि हम मोबाइल के निर्माण के  भारतीय ब्रांडों को  नहीं बढ़ा पाए | ऐसे  क्षेत्रों में  हमें लोकल के लिए वोकल होना पड़ेगा और मेक इन इंडिया को यथार्थ करना होगा  |  


गाँधी जी के शब्दों में थोड़ा फेर बदल कर कहे तो हम ये   नहीं चाहते की हमारी स्थानीय पहचान संकीर्ण हो और उस घर की तरह हो जिसके  दरवाजे और खिड़कियां बंद हो की बाहर  की हवा ही न आ सके  |  मगर ऐसा भी न हो की वैश्विक पहचान की जब आंधी चले तो  हमारा घर तूफ़ान से उड़ जाए |  वैश्विक पहचान के फूलों के बगिया में हमारी स्थानीय पहचान के फूल को अपनी विशिष्ट पहचान, फूल और खुशबू बचाये रखनी है | इसी में भारत और विश्व दोनों का भला है | 














शनिवार, 5 सितंबर 2020

सतगुर की महिमा अनँत

 कबीरदास के दोहों में सच्चे गुरु की महिमा बड़े ही रोचक ढंग से और लोकजीवन से उदाहरण देते हुए कही गयी है| सच्चा गुरु मनुष्य को देवता के समान बनाने के प्रयास में लगा रहता है, अनंत ज्ञान को शिष्य को देने का प्रयास करता है | गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता | जब गोविन्द कृपा करते हैं तो गुरु की प्राप्ति  होती है  | अयोग्य गुरु  अयोग्य शिष्य एक दूसरे का उसी प्रकार नुकसान करते हैं जैसे अँधा मनुष्य दूसरे अंधे मनुष्य को रास्ता बतलाने के समय करता है | गुरु शिष्य के संशय का नाश करता है | गुरु के पारस स्पर्श से शिष्य लोहे से सोने में बदल जाता है| 

भारतीय परंपरा में गुरु का जो आदर है, वह पाश्चात्य परंपरा के लिए आश्चर्य  की वस्तु है | यहाँ पर गुरु का दर्जा भगवान के बराबर माना गया है | गुरु-गोविन्द दोनों के सामने आने पर शिष्य का यह कर्त्तव्य है की वह पहले गुरु की वंदना करे जिसने उसे गोविन्द का ज्ञान दिया है | कृष्ण, बुद्ध, महावीर और गुरु नानक, इनके व्यक्तित्व का अहम् हिस्सा गुरु के रूप में  लोगों के पथप्रदर्शन का है |   गुरु बिना ज्ञान न होई, यह कहावत लोकमन में यूँ ही नहीं बैठी है |  

प्राचीन काल की गुरुकुल  प्रद्धति में गुरु ही शिष्य के अभिभावक और उसके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास  हेतु उत्तरदायी  होते थे | शिष्य शिक्षा के पूर्ण होने पर अपनी क्षमता के अनुसार गुरुदक्षिणा देकर गुरु के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करते थे | द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा तो हम  सब ने सुनी है जहाँ गुरु  पक्षपात के कारण एकलव्य को जिसने गुरु को अपने मन में स्थान देकर धनुर्विद्या सीखी थी, उसका अंगूठा गुरुदक्षिणा के तौर पर मांग बैठते है | और   एकलव्य बेहिचक अपनी शस्त्र-विद्या के बलिदान समान अपना अंगूठा काटकर गुरु के चरणों में रख देता है |  

वर्तमान समय में देखे तो गुरु-शिष्य की भारतीय अवधारणा में पाश्चात्य प्रभावों की घुसपैठ हुई है | पहले के जैसे गुरु भी कम है, और शिष्य तो और भी कम हैं | गुरु कई ऐसे हैं जिनके ज्ञान की गगरी अधजल है और छलकती जा रही है | ना तो उनमें बाल मनोविज्ञान की परख है, ना ही विद्यार्थियों के प्रति समानुभूति और प्रेम | नतीजा है की शिक्षा बोझिल होती जा रही है और रचनात्मकता का ह्रास हो रहा है | 


सरकारी विद्यालयों के साथ-साथ प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं में भी शिक्षकों की  गुणवत्ता, ज्ञान और छात्रों को नए जमाने की तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए आकर्षक तरीके से पढ़ाने की क्षमता में गिरावट दीख पड़ती है | सरकारी व्यवस्था में आंगनवाड़ी से पूर्व -प्राथमिक शिक्षा तक का सफर काफी धीमा रहा है और अब जाकर वर्तमान शिक्षा नीति में उसकी रूपरेखा सामने आयी है | प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा के व्यवसायीकरण ने भी शिक्षक और छात्रों के रिश्ते में दरार डाली है | 

एक सशक्त और सकारात्मक शिक्षा व्यवस्था के लिए पूर्ण रूपेण प्रशिक्षित एवं संकल्पित शिक्षक अनिवार्य है | शिक्षक की आत्मनिष्ठा शिष्य को संवारने के हिसाब से महत्त्वपूर्ण है | नई शिक्षा नीति का भी मानना है कि शिक्षा में सकारात्मक बदलाव लाने धुरी शिक्षक ही है |  समाज में शिक्षक का सम्मान एवं स्थान सर्वोच्च आदर का होना चाहिए | इसे सुनिश्चित करने के लिए यह जरुरी है की शिक्षण को कैरियर मात्र नहीं वरना समाजसेवा के तौर पर देखा जाए | शिक्षकों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, सतत गुणवत्ता वर्धन,  एवं सेवा शर्तें इस   प्रकार की  होनी  चाहिए ताकि  बेहतरीन  प्रतिभाओं को शिक्षण  क्षेत्र में  आकर्षित  किया जा सके |  नयी शिक्षा नीति में 30 छात्रों पर एक शिक्षक(पिछड़े क्षेत्रों में 25 पर एक शिक्षक ) का लक्ष्य रखा गया है जो स्वागतयोग्य है | शिक्षकों के लिए साल में 50 घंटे का सतत व्यावसायिक विकास का ऑनलाइन कार्यक्रम भी शिक्षकों के ज्ञान और क्षमता को अद्यतन रखने के उद्देश्य में काफी कारगर रहेगा | 

शिक्षक दिवस जिनकी याद में मनाया जाता है, उन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन भी अपनेआप में एक सीख है | एक सामान्य परिवार से आते हुए अपने ज्ञान के बूते उन्होंने  भारत के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया | मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज, मैसूर विश्वविद्यालय, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी  में  दर्शन शास्त्र का अध्यापन, बनारस विश्वविद्यालय के उप कुलपति के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन  और भारतीय दर्शन, सभ्यता-संस्कृति के ऊपर लिखी उनकी किताबें ज्ञान को बांटने की उनकी लगन को दर्शाती है | 

 शिक्षक दिवस के अवसर पर आज मैं अपने सभी शिक्षकों विशेषकर अपने गुरु श्री नागेंन्द्र सिंह और उनके बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ के साथ बच्चों को पढाने की  उनकी तकनीक आप लोगों के सम्मुख रखना चाहूॅंगा | खेल-खेल में बच्चों को अंकगणित, भाषा एवं विज्ञान सिखाने की उनकी कला सभी प्राथमिक शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है | बच्चों को  प्यार के साथ और जिज्ञासु बनाते हुए पढ़ाने की शैली उनमें क्या खूब थी | 


उदाहरण के लिए गिनती सीखने  के लिए माटी की गोलियां बनवाना, उनको आग में पक्का करना और फिर उनसे गिनती सीखना | क्या मजाल की बच्चा पढ़ने में फिर आना-कानी करें | वैसे ही घन और घनाभ के बारे में पढ़ाते हुए लकड़ी के बक्सों से उदाहरण देते हुए पढ़ाना | मानों चित्र जैसे बच्चे की  स्मृति में बस जाए | भाषा पठन  श्रुतलेख का नित्य अभ्यास, कविता का सस्वर पाठ और याद करना, शब्दों से वाक्य निर्माण में कल्पना की ऊंची उड़ान को अवसर देना उनकी खूबी थी | भाषा को  पढ़ना  प्रेमचंद्र की  कहानियों और जयशंकर प्रसाद के नाटक, दिनकर की कविताओं से हो तो फिर भाषा पर मजबूत पकड़ सुनिश्चित है | साथ में गीता के एक श्लोक को नित्य याद करना और अर्थ का मनन  करना, महापुरुषों की जीवनियों को पढ़ना-लिखना-गुनना, गुरूवार को सुंदरकांड पाठ, ऐसी कितनी उनकी तकनीकें थी जिनकी खूबी अपने बच्चों के लिए ऐसे अवसरों के  अभाव में ही नजर आती है | 

ऐसे ही अपने बलभद्र उच्च विद्यालय, बभनगामा के भूगोल के मौलवी साहब की भी याद आती है | कक्षा में आने के बाद अध्याय का नाम पूछने के बाद किताब बंद कर रख देते थे | फिर जो वो भूगोल की जटिलता को सरस चित्रात्मकता के साथ पढ़ाते थे, तो समां  बंध जाता था | उनके द्वारा पढ़ाया गया बफर स्टेट का पाठ जब-जब भारत-चीन के संबंधों और सीमा विवाद की चर्चा होती है, आँखों के आगे मूर्तिवत हो जाता है | दो बड़े देशों की सीमा यथासंभव आपस में नहीं मिलनी चाहिए  और उनके बीच छोटे-छोटे बफर स्टेट होने चाहिए | और उसके बाद उनके द्वारा दिया गया भारत और चीन के बीच के बफर स्टेट्स का विवरण आज तक यादों में चित्र की तरह जड़ा है | रीगा मध्य विद्यालय के अपने शिक्षकों भुवनेश्वर सर, चन्द्रिका सर, जीतेन्द्र सर, रामरेखा सर और अन्य सभी गुरुजनों का, बलभद्र उच्च विद्यालय बभनगामा के अपने गुरुजनों का, एम पी उच्च विद्यालय डुमरा  विशेषकर इंदु मैडम, प्रभावती मैडम, मिलिंद सर, पाठक सर, मंडल सर, पीटी अध्यापक और अन्य गुरुजन  , भोलानंद विद्यालय बैरकपुर से झरना मैडम,देवाशीष सर, मुख़र्जी सर और अन्य गुरुजन इन  सभी  आदर्श शिक्षकों के  प्रति इस शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ एवं सभी शिक्षकों का समाज  उनके महती योगदान हेतु अभिनन्दन करता हूँ | 

बराकर में सरकारी विद्यालय में शिक्षक रहे अपने नानाजी स्वर्गीय श्री उमेश चंद्र ठाकुर को भी इस अवसर पर मैं श्रद्धा पूर्वक याद करता हैं | पुस्तक प्रेम उनका ऐसा था की घर पर लगभग १० अलमीरा में साहित्य, धर्म, अध्यात्म की किताबें भरी रहती थी | निराला की अनामिका, राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा का पहला सजिल्द संस्करण, स्वामी प्रभुपाद की Bhagvad  Gita As Is के अमेरिकी संस्करण की पहले संस्करण की किताब, कल्याण के सैकड़ों अंक, वेद-पुराण-उपनिषद की अनगिन किताबें-यह प्रचुर पुस्तक प्रेम जो एक शिक्षक में होना ही चाहिए, वह उनसे विरासत में मिला है | गीता या धर्म की जब वो व्याख्या करते थे तो क्या ज्ञानी और क्या आम जान, मंत्रमुग्ध से उनकी वाणी को घंटों सुनते न अघाते थे | 


कोरोना संकट के बाद आये इस दौर में छात्रों को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाना एक नयी चुनौती के रूप में हमारे शिक्षकों के सामने है |  वैसे भी जिन विद्यालयों में स्मार्ट क्लासरूम की व्यवस्था थी, वो इस समय ज्यादा अच्छे से तकनीक  प्रयोग कर पा रहे हैं | लेकिन इस समस्या ने शिक्षकों को अपने तकनीकी ज्ञान को अद्यतन रखने की आवश्यकता भी सामने लायी है | वर्तमान समय में ऑनलाइन क्लास रोचक बनाना और अच्छे कंटेंट दे पाना एक बड़ी चुनौती और अवसर के रूप में हमारे शिक्षक समुदाय के सामने है | अभी की सीख उन्हें शिक्षा को और विद्यार्थी केंद्रित, तकनीकी युक्त और इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए रोचक बनाने में मदद करेगी | जब शिक्षक खुद नया ज्ञान सीख रहे हों, तो वाकई वो छात्रों  समानुभूति भी रख पाएंगे और उन्हें प्रेरित भी कर पाएंगे | शिक्षक का कार्य छात्रों को जिज्ञासु, नैतिक मूल्य युक्त और मानवीय गुणों से ओतप्रोत बनाने का है | इतना कर पाए तो  बाकी की राह शिष्य बड़ी कृतज्ञतापूर्वक तय कर लेंगे और जीवन में हमेशा अपने शिक्षक को आदर और प्रेम के साथ याद रखेंगे | कोरोना काल में पूर्वछात्रों द्वारा अपने शिक्षकों  की यथासंभव मदद करने की ख़बरें इस समय भी गुरु-शिष्य संबंधों के  प्रेम भाव की एक अलग की बानगी सामने लाती हैं |  

--केशवेंद्र कुमार---