मंगलवार, 4 जून 2024

भारतीय चुनाव प्रबंधन

 भारतीय चुनाव पूरे दुनिया में अपनी तरह का सबसे अनूठा और विशालकाय अभ्यास है। मतदान पत्र  से लेकर EVM से चुनाव तक की यात्रा एक रोचक यात्रा रही है। प्रथम चुनाव आयुक्त श्री सुकुमार सेन द्वारा भारत के पहले निर्वाचन से जो यात्रा शुरू हुई, टी एन शेषण के समय जिसने अपने को और सशक्त बनाया , उसने आज तक कई रोमांचक उतार-चढाव देखे हैं। चुनाव भारतीय लोकतंत्र की सबसे मजबूत परंपरा है।


चुनाव प्रबंधन एक सतत प्रक्रिया है जो असली मतदान से काफी पहले शुरू हो जाती है। चुनाव आयोग द्वारा संसद के दोनों सदनों एवं राज्य की विधान सभा, विधान परिषद् के चुनाव की अगुवाई की जाती है।  इसमें संसद के अंग राज्यसभा एवं राज्यों की विधान परिषद् का निर्वाचन अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है अर्थात इसमें देश के सभी वयस्क लोग मतदाता नहीं होते। असली चुनौती होती है लोकसभा एवं राज्य विधान सभा के चुनाव में। सबसे पहला कार्य इसमें है इलेक्टोरल रोल को अद्यतन करना।  इसमें दिवंगत लोगों के नाम को हटाने एवं नए मतदाताओं के नाम को जोड़ने का कार्य एक पारदर्शी प्रक्रिया के साथ किया जाता है। इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए चुनाव आयोग द्वारा पर्यवेक्षक की नियुक्ति भी की जाती है। 


इसके बाद असली चुनाव के लगभग एक-दो  महीने पहले चुनाव की घोषणा के साथ चुनाव प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत होती है।  घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी प्रचलन में आ जाती है जिसका उद्देश्य सबों के लिए समान परिस्थिति उपलब्ध कराना और चुनाव प्रकिया को साफ़-सुथरा  बनाये रखना है। राज्यों में मुख्य निर्वाचन अधिकारी एवं जिलों में जिला कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी के नेतृत्व में रिटर्निंग ऑफिसर, इलेक्टोरल रोल ऑफिसर, और विभिन्न सरकारी विभागों के कर्मचारियों को लेकर बनी चुनाव की टीम इस महती दायित्व को पूरा करने में जुट जाती है। 


नामांकन के समय उम्मीदवार को अपनी चल-अचल  संपत्ति के साथ -साथ अपने विरुद्ध चल रहे सभी मुकदमों एवं सरकारी बकायों का ब्यौरा देना पड़ता है। मतदाताओं को अपने उम्मीदवार के बारे में जानने का अधिकार है और इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद उपरोक्त विवरण को शपथ पत्र के रूप में नामांकन पत्र के साथ देने की शुरुआत हुई।  


प्राप्त नामांकन की स्क्रूटिनी रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा की जाती है और फिर उन्हें मतदान चिन्ह का वितरण किया जाता है। मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को उनके निर्धारित चुनाव चिन्ह एवं निर्दलीय उम्मीदवारों को अन्य उपलब्ध चिन्ह  उनके द्वारा नामांकन पत्र में अंकित पसंद को ध्यान में रखते हुए निर्धारित प्रक्रियानुसार दिया जाता है। नामांकन वापस लेने का भी प्रावधान है और उसके बाद चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची तैयार की जाती है। 


EVM के विभिन्न तल के यादृच्छिकरण की प्रक्रिया के बाद उसे चुनाव के लिए तैयार किया जाता है और वहां भी पारदर्शिता हेतु सभी मशीनों में मॉक पोल किया जाता है।  राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की हर स्तर पर सहभागिता रहती है। चुनाव आयोग के द्वारा पूरी चुनाव प्रक्रिया की निगरानी हेतु भेजे सामान्य पर्यवेक्षक भी अपने-अपने क्षेत्रों में मौजूद होते हैं और स्थिति का निरंतर आकलन करते हुए चुनाव आयोग को उसकी रिपोर्ट देते हैं। चुनाव में विधि एवं व्यवस्था की निगरानी हेतु पुलिस पर्यवेक्षक एवं चुनावी खर्च की निगरानी हेतु व्यय पर्यवेक्षक भी मौजूद होते हैं। 


मतदान केंद्र एवं मतदान कर्मियों का भी पूरी चुनाव प्रक्रिया में अहम स्थान है। मतदान केंद्र के तौर पर अधिकांशतः सरकारी विद्यालयों, आंगनवाड़ी केंद्रों एवं ऐसे अन्य सुविधाजनक भवनों का चयन किया जाता है।  लगभग 1200-1500 मतदाताओं के ऊपर एक मतदान केंद्र की स्थापना की जाती है।  पीठासीन पदाधिकारी एवं मतकर्मी  मतदान दिवस के हीरो हैं जो अपने कर्तव्यों का सम्यक निर्वहन करते हैं। अर्ध सैनिक बल एवं पुलिस के जवानों, , NCC, NSS  जैसे संगठनों के सदस्यों की मतदान के दिन शांति-व्यवस्था बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सेक्टर मजिस्ट्रेट  अपने जिम्मे के मतदान केंद्रों की हर विघ्न-बाधा, मशीन में कोई खराबी आने पर उसे बदलने और वहां पर मतदान दलों के पहुँचने से उनकी सुरक्षित वापसी तक जिम्मेदार होते हैं। 



सामान्यतः मतदान के एक दिन पूर्व मतदान सामग्री का  वितरण किया जाता है।  दूर-दराज के इलाकों के लिए यह प्रक्रिया पहले की जाती है।  मतदान के दिन सुबह से मॉक पोल के बाद उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट की मौजूदगी में चुनाव की प्रक्रिया EVM मशीन द्वारा मतदाताओं के मतदान करने से संपन्न होती है। मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग, वीडियोग्राफी, माइक्रो-ऑब्ज़र्वर आदि के द्वारा भी निगरानी की जाती है।  चुनाव कर्मी एवं सैन्य कर्मी हेतु पोस्टल बैलट से मतदान की व्यवस्था की गयी है। 85 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों एवं दिव्यांगों हेतु घर से पोस्टल बैलट द्वारा वोटिंग की व्यवस्था भी अब शुरू की गई है। 


भारतीय चुनाव में मतगणना के दिन का रोमांच किसी भी हॉलीवुड, बॉलीवुड या किसी भी भाषा  की ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रोमांच से बड़ा होता है। मतगणना निर्धारित दिवस एवं समय को उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि, मतगणना पर्यवेक्षक, मतगणना एजेंट की उपस्थिति में मतगणना कर्मियों द्वारा की जाती है। पहले पोस्टल बैलट की गणना के द्वारा शुरुआत होती है और फिर EVM के कण्ट्रोल यूनिट के द्वारा राउंड वार मतगणना की जाती है। चुनाव आयोग की वेबसाइट द्वारा परिणामों एवं रुझानों को लगातार अद्यतन किया जाता है।  मतगणना के अंत में  यादृच्छिक रूप से चयनित  5 VVPAT की पर्चियों की गिनती द्वारा कण्ट्रोल यूनिट मशीन द्वारा दिए गए परिणामों का मिलाप किया जाता है। मतगणना पर्यवेक्षक की लिखित सहमति के बाद  मतगणना के परिणाम की घोषणा नियमानुसार की जाती है और विजयी उम्मीदवार को रिटर्निंग अफसर द्वारा निर्वाचित होने का प्रमाणपत्र सौंपा जाता है। चुनाव की इस पूरी प्रक्रिया को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 एवं विभिन्न निर्वाचन संबंधी नियमों एवं चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्देशों के अनुपालन द्वारा पूर्ण किया जाता है।


चुनाव सुधारों की बात करें तो भारतीय चुनावों में प्रवासी लोगों का  मतदान एक ऐसा मुद्दा है जिसमें बदलाव अपेक्षित है ताकि भारत के विभिन्न कोनों में आजीविका हेतु गए लोग सुगमता पूर्वक वोट डाल सकें। प्रवासी लोगों के एक प्रभावी वोट बैंक बनने पर उनके कल्याण पर सरकारों का ज्यादा ध्यान होगा। राजनीति में युवाओं एवं  विभिन्न क्षेत्रों के सक्षम लोगों को भी और भी बढ़ावा दिए जाने की जरुरत है।    साथ ही मतदान प्रतिशत को भी निरंतर बढ़ाये जाने की जरुरत है। चुनाव और चुनाव प्रक्रिया में सतत सुधार सदैव आवश्यक है। 


 भारत में  आम चुनाव अपने आप में अद्भुत और अभिभूत करनेवाली प्रक्रिया है। यह वह प्रक्रिया है जो जनता- मतदाता  की संप्रभुता को साबित करती है।  भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़ता देने में चुनावों ने अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभायी है और भविष्य में भी इस प्रक्रिया को और सुदृढ़ बनाया जाए, इसीमें भारतीय लोकतंत्र का हित है। 


रविवार, 19 मई 2024

सिविल सेवा के बारे में संवैधानिक उपबंध एवं संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की भूमिका एवं कृत्य

किसी भी सिविल सेवक के लिए भारतीय संविधान एक पथप्रदर्शक के स्थान पर है। भारत के स्वाधीनता संग्राम के सबक, संविधान सभा की धारदार बहसें, संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, कर्तव्य ,  नीति निर्देशक तत्त्व, पंचायती राज एवं स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था एवं अन्य संवैधानिक प्रावधान सिविल सेवक को कठिन निर्णयों के समय दिशा दिखाते हैं। सिविल सेवाओं की व्यवस्था भारतीय संविधान में वर्णित है।   

भारतीय संविधान के 14 वें भाग में सिविल सेवाओं के बारे में प्रावधान हैं। 
अनुच्छेद 309, 310, 311, 312 में सिविल सेवाओं का वर्णन है जिसका सार संक्षेप निम्नलिखित है - 

अनुच्छेद 309-सक्षम विधायिका द्वारा अधिनियम बनाने की शक्ति एवं  राष्ट्रपति एवं राज्यपाल द्वारा सेवाओं की भर्ती एवं सेवा शर्तों के सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्ति 

अनुच्छेद  310 -सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल के  प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर बने रहेंगे। 
(उन्हेंअनुच्छेद 311 की सुरक्षा, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्राप्त है।उन्हें विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही अनुच्छेद 311 के प्रावधानों के अधीन ही पदच्युत किया जा सकता है ) 
अनुच्छेद 311-केंद्र एवं राज्य की  सिविल सेवाओं को संरक्षण हेतु प्रावधान
पदच्युति नियुक्ति प्राधिकार के अधीनस्थ द्वारा नहीं , 
पदच्युति, पदावनति,  जांच के बिना नहीं जहां आरोप बताये गए हैं, उन आरोपों पर सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया गया है, जांच के दौरान प्राप्त सबूतों के आधार पर दंड का अधिरोपण किया जा सकता है।  
अनुच्छेद  312 -अखिल भारतीय सेवा का वर्णन , नयी अखिल भारतीय सेवा के निर्माण की प्रक्रिया 

अखिल भारतीय सेवा एवं केंद्रीय राजपत्रित सेवाओं हेतु परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाती है। इस प्रतिष्ठित आयोग ने अपनी जनमानस में एक अटूट छवि और विश्वास साल-दर-सालबरक़रार  रखा है और इस कारण सिविल सेवा परीक्षा भारत की ही नहीं विश्व की सबसे कठिन एवं प्रतिष्ठित परीक्षाओं में एक मानी जाती है।  सिविल सेवाओं हेतु परीक्षा संघ UPSC के बारे में संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 315 से से 323 तक हैं और इन प्रावधानों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-

अनुच्छेद 315 के अनुसार  संघ के लिए एक लोग सेवा आयोग होगा और प्रत्येक राज्य के लिए  एक लोक सेवा आयोग होगा | 

अनुच्छेद 316  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी  |  सदस्यों में लगभग आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी  नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम -से -कम दस वर्ष पद धारण किया हो |   संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य अपने पद ग्रहण की तारीख से छः वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक अपना पद धारण करेगा। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य राष्ट्रपति  को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा | 
इस अनुच्छेद में राज्य लोक सेवा के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया का भी वर्णन है जिनकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी। 

अनुच्छेद 317   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या कोई  अन्य सदस्य यदि दिवालिया घोषित होता है, अपनी पद पर रहते हुए अपने कर्तव्यों के इतर किसी सवेतन नियोजन में लगता है या राष्ट्रपति राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के अयोग्य है , तो राष्ट्रपति अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेंगे। 

संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या कोई  अन्य सदस्य यदि निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में या संयुक्त रूप में भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त किये गए करार से सम्पृक्त  या हितबद्ध हो या उसके लाभ, फायदे या उपलब्धि में साझीदार हों तो इसे कदाचार माना जायेगा | इस कदाचार या किसी अन्य कदाचार में राष्ट्रपति के निर्देश  उपरांत उच्चतम न्यायलय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन जांच पर प्रतिवेदन दिया जायेगा जिसमे कदाचार पुष्ट होने पर राष्ट्रपति अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेंगे। 

अनुच्छेद 318  के अनुसार राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के  सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का विनियमों द्वारा निर्धारण करेंगे मगर लोक सेवा आयोग के  सदस्यों की सेवा की शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जायेगा | राज्य लोक सेवा आयोग के संबंध में यह शक्ति राज्यपाल के पास है।  

अनुच्छेद 319   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा। संघ लोक सेवा आयोग के   अध्यक्ष से भिन्न अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष या राज्य  लोक सेवा आयोग का  अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य सरकार की अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होंगे ।राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य (अध्यक्ष को छोड़कर ) संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य बनने या किसी किसी भी राज्य सेवा आयोग के अध्यक्ष बनने के पात्र होंगे।  

अनुच्छेद 320   के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग संघ की सेवाओं के लिए परीक्षाओं का संचालन करेगी। इसके साथ ही सिविल सेवा और सिविल पदों पर भर्ती की प्रद्धति से संबंधित विषयों पर,  इन पर नियुक्ति में, एक सेवा से दूसरी सेवा में प्रोन्नति या अंतरण में, सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक विषयों, क्षतिपूर्ति पेंशन जैसे कई बिंदुओं पर राष्ट्रपति के निर्देश पर परामर्श देने की संघ लोक सेवा आयोग की अहम् परामर्शदात्री भूमिका है। राज्य लोक सेवा आयोग राज्य हेतु समान भूमिका निभाएगी।   

अनुच्छेद 321 के अनुसार संसद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की सेवाओं  संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में भी  अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा। राज्य विधायिका द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के संबंध में यही भूमिका निभायी जाएगी। 

अनुच्छेद 322  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होंगे एवं राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे। 


अनुच्छेद 322  के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग का यह कर्त्तव्य होगा की वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किये जाने वाले कार्यों  संबंध में वार्षिक प्रतिवेदन दे  और राष्ट्रपति उन मामलों के संबंध में जिसमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गयी थी, अस्वीकृति के कारणों  स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन  की प्रति संसद के दोनों सदनों के सम्मुख रखवाएंगे। 
राज्य लोक सेवा आयोग वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को देंगे और इसे उपरोक्त रूप में राज्य विधानमंडल के सम्मुख रखा जायेगा। 

सिविल सेवा के संबंध में ये प्रावधान एक नियमबद्ध एवं देश के विकास के लिए प्रतिबद्ध सेवा हेतु सभी आवश्यक प्रावधानों को संवैधानिक संरक्षण दे कर सिविल सेवाओं को उनकी आंतरिक मजबूती प्रदान करते हैं और सेवाओं को एक गरिमापूर्ण उत्तरदायित्व के रूप में सामने लाते हैं।