मंगलवार, 17 सितंबर 2013

चलो मनाये हिंदी दिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में

हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़ों के आयोजन की औपचारिकता सारे देश में जारी है | इन औपचारिकताओं से हिंदी का कितना भला होने वाला है, यह तो इतने सालों में भी जनता की समझ में नहीं आया | राजभाषा दिवस, राजभाषा विभाग, राजभाषा आयोग- इन सारे सफ़ेद हाथियों ने हिंदी को उसकी अन्य भारतीय बहन भाषाओं से दूर ला कर खड़ा कर दिया |
 मेरी नजर में हिंदी भाषा अपनी सारी भारतीय बहन भाषाओं के साथ एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है | तकनीकी क्रांति के इस युग में एक संभावना तो यह है की ये सारी भाषाएँ शिक्षा और रोजगार की भाषा बन कर उभरे | वहीं एक संभावना यह है की अंग्रेजी का प्रभुत्त्व हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को हाशिये पर धकेल दे | अंग्रेजी जिस तरह से शिक्षा और रोजगार की भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं को विस्थापित कर रही है, उसे देखते हुए ऐसी आशंका होना लाजमी भी है |  

भाषा की राजनीति को परे रख जिस एक कदम से हम हिंदी के साथ-साथ सारी भारतीय भाषाओं को फलने-फूलने में और राष्ट्रीय एकता फ़ैलाने में मदद दे सकते हैं वो है पूरे भारत में भाषा के पठन-पाठन की त्रिभाषा प्रद्धति को लागू करना | मातृभाषा, हिंदी/भारतीय भाषा/ अंग्रेजी इस रूप में यदि तीन भाषाओं को सारे राज्य में बच्चों को पढाना अनिवार्य कर दिया जाया तो भारत की भाषा की समस्या का शाश्वत समाधान हो सकता है  यदि अहिन्दी भाषी राज्य अपने यहाँ हिंदी को बच्चों को दूसरी भाषा के रूप में  पढाये  तो उसके बदले में हिंदी भाषी राज्यों को अपने यहाँ कोई एक भारतीय भाषा बच्चों को अनिवार्य रूप से पढ़नी चाहिए | कल्पना कीजिये की यदि बिहार के बच्चे मलयालम सीखे, उत्तर प्रदेश में दूसरी भाषा के रूप में तमिल पढाई जाए, मध्य प्रदेश अपने बच्चों को तेलुगु पढाये, राजस्थान में कन्नड़ विद्यालयों में बच्चों को दूसरी भाषा के रूप में पढाई जाये और इसी भांति भारत का हर राज्य अपने बच्चों को मातृभाषा, हिंदी(हिंदी भाषी क्षेत्रों में कोई अन्य भारतीय भाषा) एवं अंग्रेजी, इन तीन भाषाओं की शिक्षा दे तो फिर हिंदी के साथ सारी भारतीय भाषाएँ भी प्रगति करेंगी और सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के बीच की जो भाषिक खाई है, उसे भी पाटा जा सकेगा |

हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच संवाद अभी वक़्त की मांग है | भारतीय भाषाओं में उच्च कोटि के मौलिक लेखन के साथ विश्व की हर भाषा की उत्कृष्ट कृति के अनुवाद की व्यवस्था होनी चाहिए | साहित्यकारों को उनका समुचित सम्मान मिलना चाहिए | जिस भाषा के साहित्यकार हाशिये पर धकेले जाते हो, उस भाषा के दिन गिने-चुने होते हैं हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को इन्टरनेट पर भी बढ़ावा दिए जाने की जरुरत है |


मैं तो यही कहूँगा की हिंदी दिवस को हम यदि भारतीय भाषा दिवस के रूप में मानते हुए हर भारतीय भाषा की प्रगति में अपना अंशदान देने का प्रण ले, तभी हम हिंदी के साथ ही समस्त भारतीय भाषाओं के प्रति अपना कर्तव्य निभा पायेंगें |

इस अवसर पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बारे में लिखी अपनी एक पुरानी कविता आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत है -


कितनी भाषाओँ से कितनी बार

कितनी भाषाओँ से कितनी बार
गुजरते हुए मैंने जाना है की
हर भाषा संजोये होती है
एक अलग इतिहास, संस्कृति और सभ्यता
की हर भाषा में उसके बोलने वालों की हर
ख़ुशी और गम का सारा हिसाब-किताब मौजूद होता है.

हर वो भाषा जो और भाषाओँ को मानती है बहन
और नही रखती उनकी प्रगति से कोई डाह-द्वेष
उनको आकर छलती है कोई साम्राज्यवादी भाषा
कहती है की अब इस भाषा में नए समय को
व्यक्त नही कर सकते, पर चिंता क्यूँ है, मैं हूँ ना!

और धीरे-धीरे इक भाषा दूसरी भाषा को
अपनी गुलामी करने को मजबूर करती है
उनको छोड़ देती है उन लोगों के लिए
जिनके मुख से अपना बोला जाना उसे नागवार है
आखिर मजदूरों, भिखारियों, आदिवासियों,
बेघरों, वेश्याओं, यतीमों, अनपढों या एक शब्द में कहे
तो हाशिये पर जीने वालों के लिए भी तो कोई
भाषा होनी चाहिए ना?

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए महसूसा है मैंने
कितनी ममता होती है हर एक भाषा में
कितनी आतुर स्नेहकुलता से अपनाती है
वो हर उस बच्चे को जो उसकी गोदी में
आ पहुंचा है बाहें पसारे, बच्चा-
जिसे अभी तक तुतलाना तक नही आता नयी भाषा में.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
मैंने महसूसा है की भाषा कभी भी
थोपकर नही सिखाई जा सकती,
जबतक अन्दर से प्रेम नही जागा हो,
भाषा जुबान पर भले चढ़े, दिल पर नही चढेगी.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
देखा है मैंने की सत्ता और बाजार ने
हर बार कोशिश की है, और अब भी कर रहे हैं
भाषा को अपना मोहरा बनाने की
पर भाषा है की हर बार आम आदमी के पक्ष में
खड़ी हो गयी इस बात की परवाह किये बिना
की कौन खडा है सामने.

कितनी भाषाओँ से कितनी बार गुजरते हुए
जाना है की संवाद चाहती है भाषाएँ
भाषाओँ को बोलनेवाले लोग
भाषाओँ में लिखने वाले साहित्यकार
एक-दुसरे से
पर भाषा की राजनीति करने वाले
नही चाहते ऐसा और खडा कर देते है
सगी बहन जैसी भाषाओँ को एक-दुसरे के विरूद्व
उनकी मर्जी के खिलाफ.

भाषाओँ के साथ दिक्कत यही है
की हर भाषा में चीखता हुआ इन्सान
सबसे दूर तक सुना जाता है
और अच्छे इंसानों की खामोशी बस उन्ही तक
सिमट कर रह जाती है.
भाषा को बचाए रखने के लिए
भाषा में अच्छे इंसानों की चीख अब बहुत जरुरी है.


शनिवार, 3 अगस्त 2013

भ्रष्टाचार को भारत से भगाने के लिए फिर से एक स्वाधीनता संग्राम की जरुरत है?

 भ्रष्टाचार को भारत से भगाने के लिए फिर से एक स्वाधीनता संग्राम की जरुरत है?
 क्या भ्रष्टाचार भारत की जीन में है?


भारत को अंग्रेजों ने जितना न लूटा, उससे ज्यादा इसी देश के भ्रष्टाचारियों ने लूटा. यही वो महान देश है जहाँ  ट्रकों के पीछे कई बार हमें देखने को मिलता है-
“सौ में नब्बे बेईमान,
फिर भी मेरा देश महान |”
और, उसी ट्रक को कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई सरकारी मुलाजिम रोककर वसूली करता है. आखिर देश के नब्बे लोगों का ही तो लोकतंत्र पर ज्यादा हिस्सा है ना?

यही वो महान देश है जहाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली हर उस आवाज को, जिसने धमकियों या तबादले से चुप होना स्वीकार नही किया, गोलियों की भाषा से चुप करा दिया जाता है. आखिर, ईमानदार लोग लातों के भूत होते हैं, बातों से तो वो मानने से रहे.
नहीं-नहीं, ऐसा मत सोचिये की मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूँ, देश की हालात को ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा हूँ. यही सच है इस वक़्त का. ये वक़्त इमानदारों का नहीं. हमारे समाज ने समझदारी सीख ली है, उसने पैसे की क़द्र जान ली है. वो संस्कृत में एक कहावत है न-
“यश्यास्ति वित्तः स नरः कुलीनः |
……………………………………………….
सर्वे गुणाः कान्च्न्माश्रयन्ति |
(जिसके पास पैसा है, वह कुलीन है, वह रूपवान है, सर्वज्ञ है | वाकई, सारे गुण स्वर्ण अर्थात धन के आश्रित है |)

यही वह देश है जिसमे सत्येन्द्र दुबे जैसे होनहार ईमानदार नौजवान को राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने पर गोलियों की सौगात मिली. आई आई टी से अच्छी डिग्री लेकर निकले इस उत्साही नौजवान ने देश की सड़कों को बदलने का सपना देखा था, अपने लिए नहीं, अपने देश-समाज के लिए. मगर कमीशनखोरों की सारी जमात ने मिलकर उस ईमान की बुलंद आवाज को सदा के लिए खामोश कर दिया. बोधगया, जहाँ पर भगवान् बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, वही पर सत्येन्द्र डूबे के बहाने ईमानदारों की सारी जमात को यह ज्ञान मिला कि इस कलयुग में ईमान का पुरस्कार गोली है. कबीर की उक्ति याद आती है-
“हम घर जाड़ा आपना, लिया लुकाठी हाथ |
जो घर जाड़े आपना, चले हमारे साथ ||
वाकई, ईमान अभी के युग में एक दोधारी तलवार के समान है जिसपर चलने की हिम्मत बिरले ही कर पा रहे हैं. अभी के युग में ईमानदार होना आश्चर्य की बात हो गयी है.
 भ्रष्टाचार का वटवृक्ष
वर्तमान भारत में देखे तो भ्रष्टाचार की शुरुआत चोटी से होती है. राजनीतिक भ्रष्टाचार सारे भ्रष्टाचार की जड़ है. यही से उगा भ्रष्टाचार का बरगद अपनी शाखाएँ फैलता हुआ सब कुछ को अपनी चपेट में ले लेता है. अभी की व्यवस्था में चुनाव के प्रबंधन में जो खामियां हैं, उसका खामियाजा सारी जनता को भुगतना पड़ता है. चुनाव के लिए ढेर सारे पैसों की जरुरत होती है जिसे जुटाने की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं है. फलस्वरूप, राजनीतिक दल पैसेवाले बाहुबलियों को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. साथ ही, कॉर्पोरेट क्षेत्र से भी उन्हें अच्छी-खासी राशि चुनाव के लिए वसूलनी होती है. फलतः, चुनाव के बाद उन्हें जिन-जिन से भरपूर चंदा मिला है, उनके हितों को जनता के हित से ऊपर प्राथमिकता देनी होती है. वर्तमान भारत में देखे तो सरकार बचाने के लिए विधायकों की खरीद-फ़रोख्त से लेकर संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसे लेने जैसे उदाहरणों ने इस देश में जनता के विश्वास को हिला कर रख दिया है |

भ्रष्टाचार की शुरुआत चुनाओं से होती है, बाहुबल और पैसों के प्राधान्य के कारण ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोग राजनीति से कतराने लगे हैं और इस कारण संसद से लेकर विधान सभा और विधान परिषदों तक मनी और मसल पावर वालों का बोलबाला है. ऐसी सरकारों से ईमानदारी की उम्मीद करना आकाशकुसुम मांगने जैसा है. अब जो लोग ढेर सारा पैसा खर्च करके चुनावों में जीते हैं, उन्हें अपने निवेश पर समुचित मुनाफे की उम्मीद तो रहेगी ही. ऐसे में पिसती है बेचारी जनता और निरीह ईमानदार सरकारी कर्मचारी. सरकारों के हाथ में ट्रान्सफर एक शक्तिशाली हथियार की तरह है जिसका उपयोग न झुकने वाले ईमानदार लोगों को सही राह पर लाने के लिए किया जाता है. और, फिर शंटिंग पोस्टिंग भी एक कारगर हथियार है- जो कर्मचारी ज्यादा ईमानदार होने की गफलत में उछल-कूद कर रहा हो, उसे ऐसे जगह पर पोस्ट करो जहाँ पर उसे दस बार अपने ईमानदार होने पर पुनर्विचार करना पड़े. वाकई, ईमानदार होना बड़ी बात नहीं, पर जिन्दगी भर ईमानदार बने रहना बहुत बड़ी तपस्या की तरह है- एक ऐसी तपस्या जिसकी क़द्र लोग भूल गए हैं.

नेताओं की बात तो कर ली, पर बाबू लोग भी पीछे कहाँ रहने वाले हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार से आम जनता का पाला प्रत्यक्ष नहीं पड़ता पर प्रशासनिक भ्रष्टाचार से तो हमारा साबका गाहे-बगाहे पड़ता ही रहता है.
हर चीज की कीमत बंधी हुई है, बेईमानी इस युग का नियम है, ईमानदारी अपवाद है. तभी तो इसे शायद कलयुग की संज्ञा दी गयी है.

सरकारी दफ्तरों में चपरासी से लेकर ऊपर तक सब कुछ एक बंधे-बंधाये तरीके से होता है. ईमानदार लोग भी होते हैं, पर वो बस अपने काम में ईमानदारी दिखा पाते हैं, और ज्यादातर बेकार की जगहों में पोस्ट कर के रखे जाते हैं. ऑफिसर से मिलाने से लेकर फाइल को सबसे ऊपर रखने तक की फीस होती है. कोई ईमानदार ऑफिसर भी हो तो ज्यादातर यही होता है कि वो पैसे नही ले रहा है, पर उसके हर एक चिड़िया पर लोग पैसे बना रहे होते हैं. इस समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि लोग ईमानदारी को खुद तक ही सीमित करके संतुष्ट हो लेते हैं. ऐसे ईमानदार अधिकारी का क्या फायदा जिसका ऑफिस बेईमान हो. मेरी नज़र में ऐसी ईमानदारी छद्म ईमानदारी है, ढोंग है. ईमानदारी के लिए सबसे बड़ा खतरा वैसे ईमानदार लोग है जो अपनी ईमानदारी पर हमेशा रोते मिलते हैं.

सरकारी व्यवस्था में देखे तो कुछ सबसे ज्यादा भ्रष्ट विभागों में पुलिस, यातायात, टैक्स, राजस्व आदि आते है. पैसे की दुनिया है और यहाँ पैसा बोलता है, पैसा सुनता है. लोगों को भी अपने छोटे कामों के लिए इतनी उतावली रहती है कि लाइन को फलांगने के लिए अपनी जेब थोड़ी ढीली करना उन्हें नहीं अखरता. इस संस्कृति ने भ्रष्टाचार को और शह दी है. भ्रष्टाचार लेना-देना भी एक तरह का नशा है जो एक बार लग जाए तो फिर छूटने का नाम नहीं लेता. कई राज्यों में तो यह हाल है की पुलिस एफ आई आर लिखने के लिए दोनों पक्षों से पैसे लेती है. ऐसे में न्याय एक स्वप्न की तरह दीखता है.

सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार का विश्लेषण करे तो दो तथ्य सामने आते हैं- कुछ जगहें ऐसी है जहाँ व्यस्था जनता को भ्रष्ट तरीके अपनाने को मजबूर करती है, कुछ जगहें ऐसी है जहाँ जनता अपनी सुविधा के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाती है तो कुछ जगहों में दोनों बाते होती है. जैसे, पहले तरीके का एक उदाहरण लेते हैं- टू जी घोटाला- यहाँ पर अपारदर्शी व्यवस्था ने घूसखोरी को बढ़ावा दिया. दूसरे तरीके का  सबसे अच्छा उदहारण वैसी सेवाएँ हैं जहाँ जनता को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. वहां लोग अपनी जल्दी सेवा पाने के लिए थोड़े पैसे लगाने में गुरेज नही करते, खुद आगे बढ़कर पेशकश करते है. तीसरे तरीके का एक उदहारण पुलिस है. वहां एक तरफ व्यस्था कभी घूस देने पर मजबूर करती है तो कभी लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए व्यवस्था को आगे बढ़ कर घूस ले मनमाफिक काम कर देने का ऑफर देते हैं .

ऐसा नहीं है कि बेईमानी सिर्फ सरकार में ही है | बेईमानी तो हमारे समाज की रग-रग में समा चुकी है | कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के भ्रष्टाचार के किस्से तो जगजाहिर है | हाल में ही राडिया टेप कांड से कॉर्पोरेट जगत में भ्रष्टाचार की कुरूप तस्वीर जनता के सामने आयी है | वैसे भी प्रसिद्ध व्यापारिक घरानों के टैक्स चोरी और अपना काम निकलवाने के लिए सरकार और सरकारी दफ्तरों को घूस खोर बनाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने से जनता भली-भांति परिचित है | छोटे स्तर पर देखे तो दुकानों में बिल न देकर सरकारी टैक्स चुराने वाले दुकानदार और थोड़ी छूट के लोभ में बिल न लेने वाली जनता भी भ्रष्ट ही हैं. भारत में हम बड़े फक्र से “जुगाड़” का जिक्र करते हैं | ये जुगाड़ ही तो भ्रष्टाचार देव का सुदर्शन चक्र है | नौकरी लगवाने से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पुलिस वेरिफिकेशन हर चीज को जल्दी करने के लिए भारत में रामबाण दवा है ‘जुगाड़’.   

भारतीय न्याय व्यवस्था को भी इस मकड़जाल को हटाने में सफलता कम ही मिली है | अब तो आलम यह है कि न्याय भी पैसे की देवी के आगे मुहताज है | भारत में न्याय व्यवस्था इतनी महँगी, समयसाध्य और दुरूह हो गयी है कि भ्रष्ट लोगों को सजा मिलने के पहले ही वो धरा धाम का सुख भोग ऊपर की और प्रस्थान कर चुके होते हैं | पिसते है गरीब लोग जिनका शिकार भ्रष्टाचार नाम का खूंखार शिकार बड़े मजे से करता है | आजाद भारत के इतिहास में देखे तो किसी बड़े भ्रष्टाचार कांड में किसी बड़े शख्श को सजा मिलने की घटनाएँ अपवाद स्वरुप ही मिलेंगी | हवाला से लेकर चारा घोटाला से लेकर बोफोर्स घोटाले और वर्त्तमान में आये तो कामनवेल्थ घोटाले हो या 2 जी घोटाला या कोयला घोटाला, मुक़दमे चलते रहते हैं, अभियुक्त सम्मानपूर्वक अपनी जिन्दगी गुजार कर इस धरती से प्रस्थान कर जाते हैं पर हमारी जांच पूरी नहीं होती या फिर सबूतों के अभाव में अभियुक्त बाइज्जत बरी कर दिया जाता है |

आशा के उजले दीप

ऐसे में लगता है कि क्या आशा एक विलुप्त चिड़िया का नाम है? मगर, घनघोर अँधेरे में भी आशा के टिमटिमाते दिए आश्वास देते हुए दिख ही जाते हैं. सूचना का अधिकार ऐसा ही एक टिमटिमाता दिया है जिसने डूबती ईमानदारी को तिनके का सहारा दिया है. इस अधिकार के आने के साथ अब लोग फाइल में सावधान रहने लगे हैं, चूँकि जनता के प्रति अब उनकी जिम्मेदारी बनती है. इस अधिकार के दायरे में अगर राजनीतिक दल, स्वयंसेवी संगठन और कॉर्पोरेट जगत को ला दिया जाये, तो वाकई नजारा ही बदला हुआ दिखेगा. खैर, वर्तमान स्वरुप में भी इस सूचना के अधिकार ने काफी हद तक पारदर्शिता और जनोन्मुख प्रशासन को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाई है.

आशा की दूसरी किरण ई –प्रशासन है. जिन –जिन सेवाओं को ई-सेवा के दायरे में लाया गया है, वहां जनता को सही समय पर बिना कोई रिश्वत दिए सेवा मिल रही है. जैसी- जैसे ई-सेवाओं का दायरा बढ़ता चलेगा, वैसे-वैसे भ्रष्टाचार मुक्त सेवाएँ पाना सुलभ होता जायेगा. उदहारण के तौर पर रेलवे आरक्षण को ई सेवा के दायरे में लाने के बाद आये बदलाव को देख सकते हैं. काफी हद तक इससे लोगों को दलालों और घूस देने की मज़बूरी से बचने में मदद मिली है. इसी प्रकार पासपोर्ट बनवाने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था ने जनता की परेशानी और भ्रष्टाचार को भी काफी हद तक नियंत्रण में लाया है |


आशा की एक और किरण लोकपाल बिल है. यदि वाकई में इस देश में सही तरीके से इस बिल को लागू किया जाये तो भ्रष्टाचारियों के मन में भय पैदा होगा और मध्यममार्गी लोगों को ईमानदार बने रहने का कारण मिलेगा. वैसे भी, लोगों की तीन श्रेणियां होती है, एक अल्पसंख्यक श्रेणी होती है जो चाहे जो भी हो जाये, ईमानदार बनी रहती है, दूसरी अल्पसंख्यक श्रेणी होती है जो चाहे जो भी हो जाये, बेईमानी से मुख नहीं मोडती. मगर, बहुसंख्यक श्रेणी ढुलमुल प्रवृति के लोगों की होती है जो हवा का रुख देख अपना रुख बदलते हैं. ऐसी श्रेणी के लिए दंड सबसे कारगर उपाय है. इनके लिए, तुलसीदास का कथन सत्य है कि –“भय बिन होही न प्रीत’.


आशा की इन छिटपुट किरणों से राहत तो मिल सकती है मगर भ्रष्टाचार को भारत से जड़ से  मिटाना हो तो बहुआयामी रणनीति की जरुरत पड़ेगी | इसके हर अंग पर एक साथ प्रहार करने पर ही इस रक्तबीज का अंत किया जा सकेगा | और इसकी शुरुआत ऊपर से ही करनी होगी अर्थात राजनीति से |

भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह भेद कैसे हो
राजनीतिक भ्रष्टाचार –
भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार अन्य भ्रष्टाचार को पोषित करने और प्रश्रय देने का सबसे बड़ा स्रोत है | अगर राजनीतिक आका ही भ्रष्ट हो तो फिर नीचे से क्या उम्मीद की जा सकती है |
इस भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सबसे पहले चुनावों में खर्च की पारदर्शी व्यवस्था करनी पड़ेगी | अभी राजनीतिक पार्टियाँ कॉर्पोरेट घराने से चंदा लिया करती है जिसके एवज में उन्हें भी जीतने पर इन घरानों को टैक्स छूट या फिर कुछ अन्य रेबड़ियां बांटनी पड़ती है | चुनावों में भारी खर्च की बाध्यता की वजह से ईमानदार और अच्छे लोग राजनीति से कतरा रहे हैं और संसद से लेकर विधान सभाओं तक बाहुबली और अपराधिक पृष्ठभूमि वाले अमीर लोगों का कब्ज़ा होता जा रहा है | राजनीतिक वंशवाद की भी इक बड़ी वजह यही है कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के वंशधरों को न तो पैसे की कमी है, न पहुँच की और न ही उनको कड़ी टक्कर देने के लिए ईमानदार लोग मैदान में आ रहे हैं |
निदान चुनाव सुधारों द्वारा चुनावी खर्च को न्यूनतम स्तर पर रखते हुए चुनावी खर्चों की सरकारी फंडिंग है | यह छोटा सा कदम भ्रष्टाचार मिटाने के लिए मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है |
साथ ही पंचायतों के स्तर से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सांसद एवं विधायकों की तरह पंचायत में चुने गए जनप्रतिनिधियों के लिए भी समुचित मानदेय की व्यवस्था होनी चाहिये |

साथ ही, भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर उसका समयबद्ध निपटारा होना चाहिये | इससे राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने में काफी मदद मिलेगी |

प्रशासनिक भ्रष्टाचार-
यह भ्रष्टाचार का सबसे दृश्य रूप है जिससे हम सबका साबका हर दिन पड़ता है | प्रशासनिक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मुख्य सतर्कता आयुक्त की संस्था को और भी सशक्त किये जाने, राज्यों में समान संस्थाओं की स्थापना तथा उनका सुचारू रूप से कार्य करना अत्यावश्यक है | हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को स्वायत्त बनाने के निर्देश दिए हैं | अगर सीबीआई मुख्य सतर्कता आयुक्त के नियंत्रण में बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के कार्य करे तो इस निर्देश का पालन किया जा सकता है | साथ ही लोकपाल को लेकर भी हाल में व्यापक जन आन्दोलन रहा है | एक सशक्त लोकपाल जिसे प्रधानमंत्री से लेकर हर सरकारी सेवक, सांसद, विधायक और हर उस संस्था की जांच करने का अधिकार हो जो सरकार से मदद या अनुदान लेती हो तथा मुख्य सतर्कता आयुक्त एवं सीबीआई जिसके नियंत्रणाधीन कार्य करे, भ्रष्टाचार कि समस्या को हल करने में काफी कारगर हो सकती है | मगर लोकपाल की संस्था पर भी सम्यक नियंत्रण एवं संतुलन की आवश्यकता होगी |

जनसेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध करना भी सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने में काफी कारगर है | “सेवा का अधिकार” के द्वारा कई राज्यों ने समयबद्ध सेवा पाने को जनता का मौलिक अधिकार बना दिया है | इससे भी प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर नकेल डालने में काफी सहायता मिलेगी |

पुलिस एवं न्याय व्यवस्था
पुलिस में भ्रष्टाचार में नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस सुधारों को सही ढंग से कार्यान्वित करना समय की मांग है | सबसे बड़ा सुधार FIR फाइल करने में पुलिस स्टेशन की मनमानी पर नियंत्रण लगाने का है |अभी देश के कई पिछड़े हिस्सों में पुलिस द्वारा FIR फाइल नहीं करने या फिर फाइल करने-न करने के लिए पैसे मांगने की ढेर सारी शिकायतें सामने आती है | अगर जनता को ऑनलाइन, मेल द्वारा, SMS द्वारा FIR फाइल करने का विकल्प दिया जाए तो इस पर काबू पाया जा सकता है | इसके दुरूपयोग को रोकने के लिए झूठी FIR फाइल करने पर दंड का प्रावधान किया जा सकता है | इसके अलावा, हर केस के निपटारे के लिए चरणबद्ध समय सीमा बांधना भी अनिवार्य है |जाँच को स्वतंत्र बनाना भी इस दिशा में अच्छा कदम सिद्ध होगा |

न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ा सुधार ब्रिटिश काल में बने कानूनों को वर्तमान युग की वास्तविकताओ के अनुरूप अद्यतन संसोधित करने का है | दीवानी और आपराधिक दंड संहिता की कई धाराओं में दंड की राशी देख कर हंसी आ जाती है | दंड को अपराध के अनुरूप और अपराधी के मन में भय पैदा करने वाला होना चाहिये | दुरूह और जटिल कानून न्याय पाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है | साथ ही हर केस के निपटारे के लिए समयसीमा तय होनी चाहिये | न्याय प्रणाली को पूर्ण पारदर्शी और प्रभावी बनाये जाने की जरुरत है |  समुचित कोर्ट, पर्याप्त न्यायिक एवं गैर-न्यायिक कर्मचारी एवं लंबित मुकदमों का त्वरित निपटारा ही न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बरक़रार रख सकता है |

भ्रष्टाचार के मुकदमों के लिए विशेष कोर्ट की व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम १९८८ को सम्यक रूप से कार्यान्वित किये जाने की जरुरत है | भ्रष्टाचारियों के मन से सजा का खौफ होना चाहिये | बिहार सरकार ने इस दिशा में भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त कर अनुकरणीय पहल की है |

सामाजिक सुधार
समाज और जनता को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है | समाज अगर ईमानदारी की क़द्र न करेगा और पैसे को पूजेगा चाहे वह जैसे भी आया हो, तो वैसे समाज में ईमानदार होना बेमानी हो जाएगा |
समाज को अपनी मानसिकता को ईमानदार बनाना होगा | पैसे की कद्र छोड़ उसे व्यक्ति के गुणों की कदर फिर से सीखनी होगी | जुगाड़ से हमेशा आगे रहने वाले लोगों को उसे तिरस्कृत करना होगा | समाज को ईमानदारी को इक आदर्श और वांछनीय मूल्य के तौर पर आदर देना होगा | नहीं तो सामाजिक दवाबों में आकर ईमानदार लोग टूटते-बिखरते रहेंगे और बेईमान लोग ईमान की कीमत सरेआम लगते रहेंगे |

वाकई, भारत से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए समाज,शासन,साहित्य, मीडिया  अर्थात भारत राष्ट्र के हर अंग को अपने तरीके से लड़ाई लड़नी होगी | मीडिया और साहित्य को भी ईमानदारी के महत्त्व को जनता और समाज के सामने रखना होगा | मीडिया अगर खुद सरकारी विज्ञापन और पेड न्यूज़ के भ्रष्टाचारी मकडजाल में फंसा और साहित्यकार पुरस्कारों-पदों के लोभ में भ्रष्टाचारी सत्ता की चाटुकारिता करते रह गए तो समाज को जागरूक करने के महत्त कार्य के लिए कोई नहीं बचेगा | मीडिया और साहित्य को मशाल की तरह जनता को राह दिखानी होगी |
जनता को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी और भ्रष्टाचारियों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा | हमें अपने बच्चों-बच्चियों में ईमानदारी के संस्कार डालने होंगे | भ्रष्टाचार भारत की जीन में नहीं भारत के परिवेश में है और हमें इस परिवेश को स्वच्छ और ईमानदार बनाने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे | हमें माहौल की उस असहायता को मिटाना होगा जिसमे ईमानदार लोग यह सोचने पर मजबूर कर दिए जाते हैं कि –“क्या ईमानदार होना गुनाह है?”

इस निबंध के अंत में मैं सत्येन्द्र दूबे को समर्पित अपनी लिखी एक पुरानी कविता से करना चाहूँगा | मेरा विश्वास है कि अब भी ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है और अंत भले ही कितनी भी देर से आये पर अंत में सत्य की ही जीत होगी |

ईमान मर नहीं सकता
आज के इस भयानक दौर में,
जहाँ ईमान की हर जुबान पर
खामोशी का ताला जडा है.
चाभी एक दुनाली में भरी
सामने धरी है ,

फ़िर भी मैं कायर न बनूँगा
अपनी आत्मा की निगाह में
फ़िर भी मैं, रत्ती भर न हिचकूंगा
चलने में ईमान कि इस राह पे।

मैं अपनी जुबान खोलूँगा
मैं भेद सारे खोलूँगा-
(बेईमानों- भ्रष्टाचारियों की
काली करतूतों के )
मैं चीख-चीख कर दुनिया भर में बोलूँगा-
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है।

मैं जानता हूँ कि परिणाम क्या होगा-
मेरी जुबान पर पड़ा खामोशी का ताला
बदल जाएगा फांसी के फंदे में
और फंदा कसता जायेगा-
भिंच जायेंगे जबड़े और मुट्ठियाँ
आँखें निष्फल क्रोध से उबलती
बाहर आ जाएँगी
प्राण फसेंगे, लोग हसेंगे
पर संकल्प और कसेंगे.

देह मर जायेगा मगर
आत्मा चीखेगी, अनवरत, अविराम-
''ईमान झुक नहीं सकता,
ईमान मर नही सकता,
चाहे हालत जो भी हो जाये,
ईमान मर नही सकता,
ईमान मर नही सकता.
-2004 -

(स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भष्टाचार को उजागर करने पर जान से हाथ धोने वाले 'यथा नाम तथा गुण' सत्येन्द्र डूबे तथा ईमान की हर उस आवाज को समर्पित जिसने झुकना गवारा ना किया बेईमानी के आगे.)
----केशवेन्द्र कुमार---

(निबंध में व्यक्त विचार लेखक की निजी सोच को प्रदर्शित करते हैं | निबंध यूपीएससी के अभ्यर्थियों और अन्य छात्रों के मार्गदर्शन के लिए लिखा गया है | )



रविवार, 14 जुलाई 2013

UPSC Civil Service Exam- for Beginners

Students from Kerala surprised the whole country when this year’s UPSC Civil Service result came out. First rank, second rank, fourth rank…and a long list of successful candidates from Kerala. This was one of the best performance By Kerala in this exam till date. Likewise success of students form J&K is showing that now this service is becoming more inclusive. Now dominance of students from Delhi or from Bihar or UP is shifting in the favour of states which were not faring well in Civil Service exam till recently. This should inspire students from difficult background. Students from rural,  remote and hilly areas, students from not so wide known Universities, Students from Open Universities, students who are working to support their family and so on.   This should inspire young generation to make Civil Service as their career goal. Through this article, I am throwing some light over this exam for the beginners who are doing their plus two or who are in College for their graduation.

Civil Service is not just a profession, it is a service to the society, to the nation. Similarly, UPSC Civil Service exam is not just a job oriented exam, but it is an opportunity to you to serve your society and Nation. This is considered as one of the toughest examination in our country where you compete with people from all walks of life. But, if you prepare with a good self- made strategy and passion, you can achieve success.

Opportunity- This exam gives you chance to choose from a variety of services. Total 24 top services of this country are available through this single exam. If you are interested in Administration, IAS is for you. If you are interested in shaping India’s foreign policy then you can opt for IFS. If you are a Police fan, then you can opt for IPS. There is Indian Revenue service, Custom service, Accounts service, Railway Traffic service, Postal service and a lot of other service which give you chance to start from the top and to make a difference to your nation.

Eligibility- Graduate from any recognized university (that includes Open Universities also) from any subject is eligible to appear in this exam. There is no marks limit. Being a graduate is the only criteria. Age limit is 21 to 30 for general candidate and there is relaxation to OBC and SC/ST candidate and to Ex-serviceman. Details can be seen form Current Notification for UPSC Civil Service exam from www.upsc.gov.in. In Examination segment of website, go for Notification (archival) where you will find Notification for CSP 2013 and Corrigendum. Syllabus and Previous year’s question paper is also available in this website. Number of attempt is 4 for General candidates and there are relaxations for OBC/SC/ST and PH candidates for no of attempts.

Exam Pattern-
PT- (Objective Type)
Preliminary examination consists of two papers-1) General Studies & 2) CSAT.
General Studies consists of History, Geography, Political Science, Indian Constitution, Economics, General Science, Current Affair, International Relation etc. 100 questions carries 200 marks.
CSAT consists of Comprehension, Communication skills,Data Analysis, Mathematics, Decision Making, Statistics, English language comprehension. 80 questions carries 200 marks.
There is provision for negative marking (0.33 mark deduction for per wrong answer) for majority of questions except some segments like decision making.
PT exam is qualifying in nature. Marks of PT are not added in your final mark.

MAINS-
Mains exam consists of  One Optional Subject from the list of subjects given in UPSC Notification, Common General Studies paper, Essay paper, Two qualifying paper of English and Indian language. Candidates who pass mains exam, get chance to appear for  Interview.
GS consists of four papers of 250 marks each. This is the single largest component consisting of 1000 marks.
Paper 1- Indian History and freedom struggle, Indian Heritage and Culture, World History, Geography and Society
Paper 2 Governance, Constitution, Polity, Social Justice and International relations
Paper 3- Indian Economy, Science and Technology, Security and Disaster Management.
Paper 4- Ethics, Integrity and Aptitude – this is a new thing added this year. Case study based questions will be asked.

Optional- You will have option to choose 1 optional Subject of your choice out of 26 different papers. There are  2 paper of 250 marks each for optional subject. There are lot of variety for optional subject which includes History, Geography, Political Science, Public Administration, Management, Agriculture, Accounting, Sociology, Language and Literature of languages which are mentioned in 8th schedule, Physics, Chemistry, Math etc. Questions are  conventional (essay) type.

Essay- you have to write an assay for 250 marks. This paper is for testing candidate’s writing skill, thinking process, analytical power and his intellect.

English and Indian Language Paper- There are two paper of 300 marks each which are qualifying in nature. Standard of papers is of Matriculation level.

Interview- interview consists of 275 marks and it is a test of your overall personality. Your suitability for service is assessed in interview.

Totoal marks of exam which will count for your merit list is 2025 (GS 1000, Optional 500, Essay 250, Interview 275).

MYTHS 
This is the scheme of examinations. There are so many myths about the examination like this exam is very tough, people who take coaching will be in more advantage, People of English medium will have upper hand, 16-18 hours study will be required etc. Do not get scared with all these myths. This is just an exam and if you prepare with a good strategy and with passion, you will have good chance to succeed. Make a strong foundation for GS by studying NCERT books for Science and Social science from 6-12 standard, read good newspaper, magazines and books, have some good hobby and participate in extra-curricular activities during your school and college time and when in last year of your Graduation, select your optional subject carefully. One year time after your graduation is sufficient to prepare for this exam if you devote honest 8-10 hours to study.

Regarding language myth, I would like to assure you that you can achieve success in Civil Service exam with any Indian Language as medium. Many candidates achieved success through Hindi, Tamil, Malyalam, Marathi and other Indian language as their medium. Even for me, medium was Hindi. But, have a good command over English and Hindi for verbal communication which will give you more confidence in Interview.

Another myth is that coaching is necessary for success. I have got success in this exam in my first attempt without any coaching. At the same time, I prepared while doing a time consuming Clerical job with Indian Railway. There are many people who prepared and succeeded in this exam without any coaching. Coaching is just a mean, not a necessity.

So, prepare with a strategy of your own with passion to serve your county despite all odds. Your self -confidence and self- motivation will keep you on the track to become a successful Civil Servant.



शनिवार, 22 जून 2013

यूपीएससी के नए पैटर्न में सामान्य अध्ययन मुख्य परीक्षा के लिए पुस्तक सूची

साथियों, यूपीएससी ने इस वर्ष से मुख्य परीक्षा में कई बड़े बदलाव लाये हैं जिनमे सामान्य अध्ययन पत्र में आये बदलाव काफी अहम् हैं | पहले जहां मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के दो पेपर होते थे जिनका कुल अंक 600 था वहीं अब 250 अंको के चार पेपर ने सामान्य अध्ययन में अच्छे अंक लाने को सिविल सेवा में सफलता के लिए अनिवार्य बना दिया है |

इन बदलावों को मद्देनजर रखते हुए मैं अपनी पुरानी सामान्य अध्ययन की पुस्तक सूची को अद्यतन कर रहा हूँ | यह सूची प्रारंभिक एवं  मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के  पाठ्यक्रम को आच्छादित करती है। हालाँकि यह आलेख मुख्यतः मुख्य परीक्षा पर केन्द्रित है | हाँ, यह सूची बस सांकेतिक है, एक-एक विषय पर अभी ढेरों  स्तरीय किताबें उपलब्ध हैं, आपको उस किताब को चुनना है जो आपको पढने और समझने में अच्छी लग रही हो। आपको यह ध्यान में रखना है की आपको सिलेबस तैयार करना है न की किताबें। किताबो से वे ही चैप्टर पढ़े जो सिलेबस में पढने हो।

एक बार सिलेबस को समाप्त करने के बाद आप किसी भी नई किताब को देखकर यह पता कर सकते हैं की उसमे आपके कामका और कुछ है या नही। वैसे NCERT की 6 से 12 वीं  क्लास की विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान आदि की  किताबों को आप आंख मूंदकर सामान्य अध्ययन  का आधार बनाने के लिए प्रयोग कर सकते हैं |

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र  1 
(भारतीय विरासत और संस्कृति ,विश्व का इतिहास ,भूगोल और समाज )


क) .इतिहास हेतु
-NCERT 6-12
-आधुनिक भारत- यशपाल एवं ग्रोवर
-स्वाधीनता संग्राम-विपिन चंद्र
-आजादी के बाद का भारत- विपिन चंद्र
-विश्व इतिहास - जैन एवं माथुर - (सिर्फ चुनिन्दा मुद्दे जो सिलेबस में हैं )
-प्रतियोगिता दर्पण -कला-संस्कृति अतिरिक्तांक
-प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत- प.द.अतिरिक्तांक (सिर्फ़ प्रारंभिक परीक्षा हेतु)

ख) भूगोल हेतु

-Atlas- Oxford Student's Atlas या हिमालय एटलस
--NCERT 6-12
 - भारत का भूगोल-खुल्लर
-प्रतियोगिता दर्पण भूगोल अतिरिक्तांक प्राम्भिक परीक्षा के लिए

ग)  भारतीय समाज एवं सामाजिक मुद्दे 
 किसी विशेष पुस्तक की आवश्यकता नहीं
 योजना, कुरुक्षेत्र तथा अन्य पत्र- पत्रिकाओं से तथा भारतीय अर्थव्यवस्था(दत्ता एवं सुन्दरम) एवं भारतीय प्रशासन एवं राजनीति (फाडिया)  से तैयारी करें | ये किताबें आपको सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र 2 एवं 3 के लिए पढनी है |
 अधिकांश मुद्दे निबंध के रूप में तैयारी करने के लिए उपयुक्त हैं |

घ ) भारतीय विरासत एवं संस्कृति हेतु 

हमारी परंपरा - संपादक वियोगी हरि - सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन 



सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र  2 
(शासन व्यवस्था ,संविधान ,शासन प्रणाली ,सामाजिक न्याय ,अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध )


घ) प्रशासन एवं संविधान
-NCERT 11 & 12
-भारतीय राज्यव्यवस्था-लक्ष्मीकांत (प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा )
-भारतीय प्रशासन एवं राजनीति -पुखराज जैन एवं   बी. एल. फाडिया
-हमारा संविधान- सुभाष कश्यप या बासु


च) अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध / भारत के विदेश सम्बन्ध
-अंतर्राष्ट्रीय संबंध (सिद्धांत एवं समकालीन राजनीतिक मुद्दे ) - बी. एल. फाडिया
-२१वी शताब्दी में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध -पुष्पेश पन्त
-अंतर्राष्ट्रीय संगठन- पुष्पेश पन्त
-सिविल सेवा हेतु समर्पित पत्रिकाओं के अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध / भारत के विदेश सम्बन्ध विशेषांक



सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 
(प्रौद्योगिकी , आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण , सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन )


छ) .अर्थशास्त्र एवं भारतीय अर्थव्यवस्था
-NCERT 11 & 12
-प्रतियोगिता दर्पण का भारतीय अर्थव्यवस्था अतिरिक्तांक
-भारतीय अर्थव्यवस्था- रुद्रदत्त व् सुन्दरम
(या मिश्र एवं पुरी या एस. एन. लाल )

योजना, कुरुक्षेत्र,  frontline, इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली को अपने ज्ञान को अद्यतन रखने के लिए प्रयोग करे |

ज).विज्ञान/ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण 
NCERT 6 -12 की बुक
IGNOU - BDP- Foundation Course on Science and Technology FST (Hindi)
-प्रतियोगिता दर्पण का सामान्य विज्ञानं अतिरिक्तांक
-भारत में विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी- टाटा मैक्ग्राहिल या विवास पैनोरमा या सिविल सर्विसेस क्रोनिकल प्रकाशन की -कोई एक पुस्तक
-विज्ञान प्रगति पत्रिका के नवीनतम साल-दोसाल के अंक
-हमारे वैज्ञानिक - एनबीटी
-Tell Me Why- मलयाला मनोरम पब्लिकेशन 



सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 
(नीतिशास्त्र, सत्य निष्ठा एवं अभिरूचि )
1.नीतिशास्त्र के प्रमुख सिद्धांत- डॉ डी आर जाटव- मालिक एंड कंपनी- जयपुर, दिल्ली
2. नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिरुचि -जी सुब्बाराव आईएएस एवं पी एन राय चौधुरी आईएस - एक्सेस पब्लिकेशन, दिल्ली 


  इस पत्र के बारे में अभी ज्यादा कुछ कहना संभव नहीं है | इस पत्र के लिए आपको थोडा नीतिशास्त्र, थोडा लोक प्रशासन, थोडा महापुरुषों एवं विचारकों-दार्शनिकों की जीवनी और दर्शन पढने पड़ेंगे | इस पत्र के लिए द्वितीय  प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट काफी काम की है जो आप भारत सरकार की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं | इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पत्रिका भी इस पत्र के लिए कारगर सिद्ध होगी | इस अकेले पत्र के लिए बाद में विस्तार से लिखने की कोशिश करूँगा |







सफलता की शुभकामनाएँ के साथ-

केशवेन्द्र कुमार, आईएएस 

बुधवार, 22 मई 2013

UPSC CIVIL SERVICE PT 2013- परीक्षा पूर्व एवं परीक्षा भवन हेतु कुछ उपयोगी सुझाव


साथियों, यूपीएससी की प्राथमिक परीक्षा के दिन अब करीब आ गये हैं | मई की इस भीषण गर्मी में तापमान के दवाब के साथ इस परीक्षा का दवाब काफी भारी होता है, इसे मैं अपने अनुभव से जानता हूँ | हालाँकि, इस परीक्षा में भाग ले रहे सभी साथियों को मैं सुझाव दूंगा कि आप अपने आप पर मौसम की गर्मी या परीक्षा की टेंशन को हावी न होने दें और सहज और संयत भाव से इस परीक्षा को लें | बुद्ध पूर्णिमा आपके परीक्षा के ठीक इक दिन पहले है और महात्मा बुद्ध के शब्दों को उधार लेते हुए कहूं तो कहूँगा-

यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में कष्ट है, इस कष्ट से बचने का उपाय है और सम्यक तरीके से सफलता-विफलता के सुख- दुःख से परे होकर निरपेक्ष भाव से इसकी तैयारी करने से आप इस दुःख से बच सकते हैं |”

 

साथियों, आप में से जो लोग यूपीएससी की सिविल सेवा प्राथमिक परीक्षा में २६ मई को शामिल हो रहे हैं, उनके लिए कुछ परीक्षा पूर्व और परीक्षा हॉल की नसीहतें लेकर मैं आप लोगों के सामने हाजिर हूँ-

परीक्षा से पहले

*आप लोग सिलेबस का पर्याप्त अध्ययन कर चुके होंगे | वैसे भी प्राथमिक परीक्षा का सीसैट और सामान्य अध्ययन पत्र सिलेबस के दायरों से छलक-छलक पड़ती है | इसलिए कितनी भी तैयारी करने के बाद आप आश्वस्त नहीं रह सकते कि आपकी तैयारी सम्पूर्ण है | इसलिए अब जितनी भी तैयारी की है, उससे संतुष्ट होकर अपने मन को आश्वस्त रक्खें |

*रिविजन यानि पढ़े हुए का बार-बार दुहराव इस समय काफी महत्तवपूर्ण है | प्राथमिक परीक्षा में समझ के साथ-साथ आपकी याददाश्त की भी परीक्षा होती है | बहुत सारे तथ्यात्मक प्रश्नों में आपकी स्मरण शक्ति ही साथ देगी | इसलिए अपने बनाये हुए शोर्ट नोट्स, सामान्य अध्ययन की पत्रिकाओं के पिछले साल-डेढ़ साल के अंक, प्रतियोगिता दर्पण की अर्थशास्त्र एवं समसामयिकी वार्षिकी, प्रकाशन विभाग की भारत वार्षिकी का त्वरित दुहराव करें | दुहराव में इस बात का ध्यान रखे कि आप अपनी मेमोरी की टेस्ट ले रहे हैं, अतः पाठ या चैप्टर को शब्दशः पढ़ना जरुरी नहीं है | किसी भी टॉपिक को देख कर उसके मुख्य तथ्यों को रिकॉल करें, यदि आप उसके मुख्य तथ्यों को रिकॉल कर पा रहे हैं तो उस टॉपिक को सरसरी निगाह से देखते हुए आगे बढ़ चले | यदि सारे तथ्य नहीं याद आ रहे हों या आपको कन्फ्यूजन हो रहा हो तो फिर उस टॉपिक को थोड़ी गहराई से पढ़ सारी शंकाओं को दूर करे और फिर आगे बढे |

* इन्टरनेट का अब परीक्षा तक कम- से- कम इस्तेमाल करें |

* सामान्य अध्ययन और सीसैट के उन भागों पर ज्यादा ध्यान दे जिसमें आप अपने को मुश्किल में महसूस कर रहे हैं | इतिहास, प्रशासन एवं संविधान, समसामयिकी, भारतीय अर्थव्यवस्था जैसे तथ्य बहुल अंगों का दुहराव अभी ज्यादा काम आएगा |  सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्र की प्रवृत्ति को देखते हुए विषय पर गहरी पकड़ जरुरी है | सतही ज्ञान से अब काम नहीं चलने वाला है |

*परीक्षा की पूर्व संध्या से अपने मन को शांत रखे, रात में अच्छे से नींद ले और अगली सुबह अपने आप को सकारात्मक और सफलता प्राप्ति के विचारों से भरते हुए परीक्षा के लिए जाये |

 

 

परीक्षा के दिन एवं परीक्षा भवन में

*परीक्षा के लिए आवश्यक सभी सामग्रियों (एडमिट कार्ड, बॉल पेन, घड़ी ) के साथ समय से परीक्षा भवन पहुंचे | परीक्षा भवन में समय से लगभग एक घंटा पूर्व पहुचने से निश्चिन्त रहेंगे |

*परीक्षा हॉल पर अपने साथियों से अनावश्यक बात करने में मशगूल न हों, हो सकता है कि किसी की निराशा भरी बात आपको भी संशयग्रस्त कर जाये | अपने में मगन रहे |

* अगर परीक्षा केंद्र पर बिना टेंशन के पढ़ सके और काफी समय रहते आप वहां पहुचे हैं तो कोई एकांत कोना तलाश कर अपने शोर्ट नोट्स को सरसरी नजर देखे या फिर किसी भी स्तरीय समसामयिकी वार्षिकी को इक नजर देखे | इसका उद्देश्य बस समय बिना टेंशन के बिताना है | अगर आपको टेंशन हो रही हो तो शांत कोने में आराम से बैठ कर लम्बी-गहरी सांसें लेते हुए मन को समझाए कि आप परीक्षा में अपनी तैयारी के हिसाब से काफी अच्छा परफॉर्म करेंगे |

*गर्मी को ध्यान में रखते हुए पानी की बोतल अपने पास में रखे, मन हो तो उसमे ग्लूकोस मिला कर रखे | बहुत बार एग्जाम हॉल में आपको टेंशन की वजह से गला सूख रहा महसूस होगा और आप समय की तंगी की वजह से अपनी जगह से उठ कर पानी पीने की ज़हमत में अपना समय बर्बाद करना नहीं चाहेंगे | अतः बेहतर है कि आप पानी की बोतल अपने पास रखे |

* नेगेटिव मार्किंग को ध्यान में रखते हुए जिन प्रश्नों के बारे में थोडा भी पता न हो, उन्हें छोड़ देना ही बेहतर है | हां, अगर आप ४ विकल्पों में से दो या इक विकल्प के सही उत्तर न होने के बारे में श्योर हों तो फिर इंटेलीजेंट गेस कर सकते हैं | सीसैट के निर्णय क्षमता वाले प्रश्न में नेगटिव मार्किंग नहीं है, अतः उस खंड के सारे प्रश्न हल करे |

* यूपीएससी के द्वारा अंग्रेजी में सेट प्रश्नों के मशीनी हिंदी अनुवाद की समस्या को देखते हुए, यदि किसी भी प्रश्न को समझने में दुविधा हो तो उसके अंग्रेजी प्रश्न को देखना व्यावहारिक होगा | यूपीएससी के कॉम्प्रिहेंशन के खंड में हिंदी अनुवाद में पिछले प्रश्नों में (मैंग्रूव वन ) भयंकर भूल मैंने खुद देखी है |

 * प्राथमिक परीक्षा के प्रश्न पत्र १(सामान्य अध्ययन ) में प्रश्नों की प्रवृत्ति का ध्यान से अध्ययन करें | सामान्यतः अब हर प्रश्न के उत्तर में ३-४ कथन होते हैं और फिर उन कथनों में कौन-कौन से सही हैं, यह आपको उत्तर में बताना होता है | इसलिए इन प्रश्नों को ध्यान से पढ़कर क्या पूछा गया है, इसके बारे में कन्फर्म होकर फिर ध्यान से विकल्पों को देखे और सही विकल्प चुने |

*प्रश्न पत्र २ में परिच्छेद पर आधारित प्रश्नों में आपके उत्तर सिर्फ परिच्छेद पर आधारित होने चाहिये | इन प्रश्नों की बहुसंख्या को देखते हुए इनमें अच्छा प्रदर्शन आपके सफलता का पथ प्रशस्त करेगा |

* कथन या आंकड़ों या चित्र  के आधार पर निष्कर्ष निकलने वाले प्रश्नों में आपकी विश्लेषण क्षमता का टेस्ट है | इन प्रश्नों की संख्या भी अच्छी-खासी है | इन्हें समय देते हुए आराम से बनाये |

* गणितीय योग्यता एवं मानसिक योग्यता परिक्षण के प्रश्न काफी सावधानी और समझ-बूझ के साथ बनाये |

*अंग्रेजी भाषा की योग्यता को जांचने वाले परिच्छेद पर आधारित 8 प्रश्नों में अंग्रेजी भाषा और व्याकरण का विशेष  ख्याल रखे |

* निर्णय क्षमता वाले प्रश्नों में ध्यान रखे कि आपके निर्णय भारतीय संविधान के अनुरूप हों, नेचुरल जस्टिस के सिद्धांत का पालन करते हों और जनकल्याण में हो |

 

इन्हीं छोटी-छोटी मगर काम की बातों के साथ मैं आप सबों को सफलता हेतु और प्राथमिक परीक्षा में अच्छे प्रदर्शन की दुआ करता हुआ विदा लेता हूँ.

शुभकामनाएँ,

केशवेन्द्र कुमार, आईएएस

डायरेक्टर, हायर सेकेंडरी, केरल