भ्रष्टाचार को भारत
से भगाने के लिए फिर से एक स्वाधीनता संग्राम की जरुरत है?
क्या भ्रष्टाचार भारत की जीन में है?
भारत को अंग्रेजों ने जितना न लूटा, उससे ज्यादा इसी देश के
भ्रष्टाचारियों ने लूटा. यही वो महान देश है जहाँ
ट्रकों के पीछे कई बार हमें देखने को मिलता है-
“सौ में नब्बे बेईमान,
फिर भी मेरा देश महान |”
और, उसी ट्रक को कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई सरकारी मुलाजिम रोककर वसूली
करता है. आखिर देश के नब्बे लोगों का ही तो लोकतंत्र पर ज्यादा हिस्सा है ना?
यही वो महान देश है जहाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली हर उस आवाज
को, जिसने धमकियों या तबादले से चुप होना स्वीकार नही किया, गोलियों की भाषा से
चुप करा दिया जाता है. आखिर, ईमानदार लोग लातों के भूत होते हैं, बातों से तो वो
मानने से रहे.
नहीं-नहीं, ऐसा मत सोचिये की मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूँ, देश की हालात
को ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा हूँ. यही सच है इस वक़्त का. ये वक़्त इमानदारों का
नहीं. हमारे समाज ने समझदारी सीख ली है, उसने पैसे की क़द्र जान ली है. वो संस्कृत
में एक कहावत है न-
“यश्यास्ति वित्तः स नरः कुलीनः |
……………………………………………….
सर्वे गुणाः कान्च्न्माश्रयन्ति |
(जिसके पास पैसा है, वह कुलीन है, वह रूपवान है, सर्वज्ञ है | वाकई,
सारे गुण स्वर्ण अर्थात धन के आश्रित है |)
यही वह देश है जिसमे सत्येन्द्र दुबे जैसे होनहार ईमानदार नौजवान को
राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने पर गोलियों की सौगात
मिली. आई आई टी से अच्छी डिग्री लेकर निकले इस उत्साही नौजवान ने देश की सड़कों को
बदलने का सपना देखा था, अपने लिए नहीं, अपने देश-समाज के लिए. मगर कमीशनखोरों की
सारी जमात ने मिलकर उस ईमान की बुलंद आवाज को सदा के लिए खामोश कर दिया. बोधगया,
जहाँ पर भगवान् बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, वही पर सत्येन्द्र डूबे के
बहाने ईमानदारों की सारी जमात को यह ज्ञान मिला कि इस कलयुग में ईमान का पुरस्कार
गोली है. कबीर की उक्ति याद आती है-
“हम घर जाड़ा आपना, लिया लुकाठी हाथ |
जो घर जाड़े आपना, चले हमारे साथ ||
वाकई, ईमान अभी के युग में एक दोधारी तलवार के समान है जिसपर चलने की
हिम्मत बिरले ही कर पा रहे हैं. अभी के युग में ईमानदार होना आश्चर्य की बात हो
गयी है.
भ्रष्टाचार का वटवृक्ष
वर्तमान भारत में देखे तो भ्रष्टाचार की शुरुआत चोटी से होती है.
राजनीतिक भ्रष्टाचार सारे भ्रष्टाचार की जड़ है. यही से उगा भ्रष्टाचार का बरगद
अपनी शाखाएँ फैलता हुआ सब कुछ को अपनी चपेट में ले लेता है. अभी की व्यवस्था में
चुनाव के प्रबंधन में जो खामियां हैं, उसका खामियाजा सारी जनता को भुगतना पड़ता है.
चुनाव के लिए ढेर सारे पैसों की जरुरत होती है जिसे जुटाने की कोई पारदर्शी
व्यवस्था नहीं है. फलस्वरूप, राजनीतिक दल पैसेवाले बाहुबलियों को ज्यादा प्राथमिकता
देते हैं. साथ ही, कॉर्पोरेट क्षेत्र से भी उन्हें अच्छी-खासी राशि चुनाव के लिए
वसूलनी होती है. फलतः, चुनाव के बाद उन्हें जिन-जिन से भरपूर चंदा मिला है, उनके
हितों को जनता के हित से ऊपर प्राथमिकता देनी होती है. वर्तमान भारत में देखे तो
सरकार बचाने के लिए विधायकों की खरीद-फ़रोख्त से लेकर संसद में प्रश्न पूछने के लिए
पैसे लेने जैसे उदाहरणों ने इस देश में जनता के विश्वास को हिला कर रख दिया है |
भ्रष्टाचार की शुरुआत चुनाओं से होती है, बाहुबल और पैसों के
प्राधान्य के कारण ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोग राजनीति से कतराने लगे हैं और इस
कारण संसद से लेकर विधान सभा और विधान परिषदों तक मनी और मसल पावर वालों का
बोलबाला है. ऐसी सरकारों से ईमानदारी की उम्मीद करना आकाशकुसुम मांगने जैसा है. अब
जो लोग ढेर सारा पैसा खर्च करके चुनावों में जीते हैं, उन्हें अपने निवेश पर
समुचित मुनाफे की उम्मीद तो रहेगी ही. ऐसे में पिसती है बेचारी जनता और निरीह
ईमानदार सरकारी कर्मचारी. सरकारों के हाथ में ट्रान्सफर एक शक्तिशाली हथियार की
तरह है जिसका उपयोग न झुकने वाले ईमानदार लोगों को सही राह पर लाने के लिए किया
जाता है. और, फिर शंटिंग पोस्टिंग भी एक कारगर हथियार है- जो कर्मचारी ज्यादा
ईमानदार होने की गफलत में उछल-कूद कर रहा हो, उसे ऐसे जगह पर पोस्ट करो जहाँ पर
उसे दस बार अपने ईमानदार होने पर पुनर्विचार करना पड़े. वाकई, ईमानदार होना बड़ी बात
नहीं, पर जिन्दगी भर ईमानदार बने रहना बहुत बड़ी तपस्या की तरह है- एक ऐसी तपस्या
जिसकी क़द्र लोग भूल गए हैं.
नेताओं की बात तो कर ली, पर बाबू लोग भी पीछे कहाँ रहने वाले हैं.
राजनीतिक भ्रष्टाचार से आम जनता का पाला प्रत्यक्ष नहीं पड़ता पर प्रशासनिक
भ्रष्टाचार से तो हमारा साबका गाहे-बगाहे पड़ता ही रहता है.
हर चीज की कीमत बंधी हुई है, बेईमानी इस युग का नियम है, ईमानदारी
अपवाद है. तभी तो इसे शायद कलयुग की संज्ञा दी गयी है.
सरकारी दफ्तरों में चपरासी से लेकर ऊपर तक सब कुछ एक बंधे-बंधाये
तरीके से होता है. ईमानदार लोग भी होते हैं, पर वो बस अपने काम में ईमानदारी दिखा
पाते हैं, और ज्यादातर बेकार की जगहों में पोस्ट कर के रखे जाते हैं. ऑफिसर से
मिलाने से लेकर फाइल को सबसे ऊपर रखने तक की फीस होती है. कोई ईमानदार ऑफिसर भी हो
तो ज्यादातर यही होता है कि वो पैसे नही ले रहा है, पर उसके हर एक चिड़िया पर लोग
पैसे बना रहे होते हैं. इस समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि लोग ईमानदारी को
खुद तक ही सीमित करके संतुष्ट हो लेते हैं. ऐसे ईमानदार अधिकारी का क्या फायदा
जिसका ऑफिस बेईमान हो. मेरी नज़र में ऐसी ईमानदारी छद्म ईमानदारी है, ढोंग है. ईमानदारी
के लिए सबसे बड़ा खतरा वैसे ईमानदार लोग है जो अपनी ईमानदारी पर हमेशा रोते मिलते
हैं.
सरकारी व्यवस्था में देखे तो कुछ सबसे ज्यादा भ्रष्ट विभागों में
पुलिस, यातायात, टैक्स, राजस्व आदि आते है. पैसे की दुनिया है और यहाँ पैसा बोलता
है, पैसा सुनता है. लोगों को भी अपने छोटे कामों के लिए इतनी उतावली रहती है कि
लाइन को फलांगने के लिए अपनी जेब थोड़ी ढीली करना उन्हें नहीं अखरता. इस संस्कृति
ने भ्रष्टाचार को और शह दी है. भ्रष्टाचार लेना-देना भी एक तरह का नशा है जो एक
बार लग जाए तो फिर छूटने का नाम नहीं लेता. कई राज्यों में तो यह हाल है की पुलिस
एफ आई आर लिखने के लिए दोनों पक्षों से पैसे लेती है. ऐसे में न्याय एक स्वप्न की
तरह दीखता है.
सरकारी सेवाओं में भ्रष्टाचार का विश्लेषण करे तो दो तथ्य सामने आते
हैं- कुछ जगहें ऐसी है जहाँ व्यस्था जनता को भ्रष्ट तरीके अपनाने को मजबूर करती
है, कुछ जगहें ऐसी है जहाँ जनता अपनी सुविधा के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाती है तो कुछ
जगहों में दोनों बाते होती है. जैसे, पहले तरीके का एक उदाहरण लेते हैं- टू जी
घोटाला- यहाँ पर अपारदर्शी व्यवस्था ने घूसखोरी को बढ़ावा दिया. दूसरे तरीके
का सबसे अच्छा उदहारण वैसी सेवाएँ हैं
जहाँ जनता को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. वहां लोग अपनी जल्दी सेवा पाने के
लिए थोड़े पैसे लगाने में गुरेज नही करते, खुद आगे बढ़कर पेशकश करते है. तीसरे तरीके
का एक उदहारण पुलिस है. वहां एक तरफ व्यस्था कभी घूस देने पर मजबूर करती है तो कभी
लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए व्यवस्था को आगे बढ़ कर घूस ले मनमाफिक काम कर देने
का ऑफर देते हैं .
ऐसा नहीं है कि बेईमानी सिर्फ सरकार में ही है | बेईमानी तो हमारे
समाज की रग-रग में समा चुकी है | कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के भ्रष्टाचार के
किस्से तो जगजाहिर है | हाल में ही राडिया टेप कांड से कॉर्पोरेट जगत में
भ्रष्टाचार की कुरूप तस्वीर जनता के सामने आयी है | वैसे भी प्रसिद्ध व्यापारिक
घरानों के टैक्स चोरी और अपना काम निकलवाने के लिए सरकार और सरकारी दफ्तरों को घूस
खोर बनाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने से जनता भली-भांति परिचित है | छोटे
स्तर पर देखे तो दुकानों में बिल न देकर सरकारी टैक्स चुराने वाले दुकानदार और
थोड़ी छूट के लोभ में बिल न लेने वाली जनता भी भ्रष्ट ही हैं. भारत में हम बड़े फक्र
से “जुगाड़” का जिक्र करते हैं | ये जुगाड़ ही तो भ्रष्टाचार देव का सुदर्शन चक्र है
| नौकरी लगवाने से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पुलिस वेरिफिकेशन हर चीज को
जल्दी करने के लिए भारत में रामबाण दवा है ‘जुगाड़’.
भारतीय न्याय व्यवस्था को भी इस मकड़जाल को हटाने में सफलता कम ही मिली
है | अब तो आलम यह है कि न्याय भी पैसे की देवी के आगे मुहताज है | भारत में न्याय
व्यवस्था इतनी महँगी, समयसाध्य और दुरूह हो गयी है कि भ्रष्ट लोगों को सजा मिलने
के पहले ही वो धरा धाम का सुख भोग ऊपर की और प्रस्थान कर चुके होते हैं | पिसते है
गरीब लोग जिनका शिकार भ्रष्टाचार नाम का खूंखार शिकार बड़े मजे से करता है | आजाद
भारत के इतिहास में देखे तो किसी बड़े भ्रष्टाचार कांड में किसी बड़े शख्श को सजा
मिलने की घटनाएँ अपवाद स्वरुप ही मिलेंगी | हवाला से लेकर चारा घोटाला से लेकर
बोफोर्स घोटाले और वर्त्तमान में आये तो कामनवेल्थ घोटाले हो या 2 जी घोटाला या
कोयला घोटाला, मुक़दमे चलते रहते हैं, अभियुक्त सम्मानपूर्वक अपनी जिन्दगी गुजार कर
इस धरती से प्रस्थान कर जाते हैं पर हमारी जांच पूरी नहीं होती या फिर सबूतों के
अभाव में अभियुक्त बाइज्जत बरी कर दिया जाता है |
आशा के उजले दीप
ऐसे में लगता है कि क्या आशा एक विलुप्त चिड़िया का नाम है? मगर, घनघोर
अँधेरे में भी आशा के टिमटिमाते दिए आश्वास देते हुए दिख ही जाते हैं. सूचना का
अधिकार ऐसा ही एक टिमटिमाता दिया है जिसने डूबती ईमानदारी को तिनके का सहारा दिया
है. इस अधिकार के आने के साथ अब लोग फाइल में सावधान रहने लगे हैं, चूँकि जनता के
प्रति अब उनकी जिम्मेदारी बनती है. इस अधिकार के दायरे में अगर राजनीतिक दल,
स्वयंसेवी संगठन और कॉर्पोरेट जगत को ला दिया जाये, तो वाकई नजारा ही बदला हुआ
दिखेगा. खैर, वर्तमान स्वरुप में भी इस सूचना के अधिकार ने काफी हद तक पारदर्शिता
और जनोन्मुख प्रशासन को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाई है.
आशा की दूसरी किरण ई –प्रशासन है. जिन –जिन सेवाओं को ई-सेवा के दायरे
में लाया गया है, वहां जनता को सही समय पर बिना कोई रिश्वत दिए सेवा मिल रही है.
जैसी- जैसे ई-सेवाओं का दायरा बढ़ता चलेगा, वैसे-वैसे भ्रष्टाचार मुक्त सेवाएँ पाना
सुलभ होता जायेगा. उदहारण के तौर पर रेलवे आरक्षण को ई सेवा के दायरे में लाने के
बाद आये बदलाव को देख सकते हैं. काफी हद तक इससे लोगों को दलालों और घूस देने की
मज़बूरी से बचने में मदद मिली है. इसी प्रकार पासपोर्ट बनवाने के लिए ऑनलाइन
व्यवस्था ने जनता की परेशानी और भ्रष्टाचार को भी काफी हद तक नियंत्रण में लाया है
|
आशा की एक और किरण लोकपाल बिल है. यदि वाकई में इस देश में सही तरीके
से इस बिल को लागू किया जाये तो भ्रष्टाचारियों के मन में भय पैदा होगा और
मध्यममार्गी लोगों को ईमानदार बने रहने का कारण मिलेगा. वैसे भी, लोगों की तीन
श्रेणियां होती है, एक अल्पसंख्यक श्रेणी होती है जो चाहे जो भी हो जाये, ईमानदार
बनी रहती है, दूसरी अल्पसंख्यक श्रेणी होती है जो चाहे जो भी हो जाये, बेईमानी से
मुख नहीं मोडती. मगर, बहुसंख्यक श्रेणी ढुलमुल प्रवृति के लोगों की होती है जो हवा
का रुख देख अपना रुख बदलते हैं. ऐसी श्रेणी के लिए दंड सबसे कारगर उपाय है. इनके
लिए, तुलसीदास का कथन सत्य है कि –“भय बिन होही न प्रीत’.
आशा की इन छिटपुट किरणों से राहत तो मिल सकती है मगर भ्रष्टाचार को
भारत से जड़ से मिटाना हो तो बहुआयामी
रणनीति की जरुरत पड़ेगी | इसके हर अंग पर एक साथ प्रहार करने पर ही इस रक्तबीज का
अंत किया जा सकेगा | और इसकी शुरुआत ऊपर से ही करनी होगी अर्थात राजनीति से |
भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह भेद कैसे हो
राजनीतिक भ्रष्टाचार –
भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार अन्य भ्रष्टाचार को पोषित करने और
प्रश्रय देने का सबसे बड़ा स्रोत है | अगर राजनीतिक आका ही भ्रष्ट हो तो फिर नीचे
से क्या उम्मीद की जा सकती है |
इस भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सबसे पहले चुनावों में खर्च की
पारदर्शी व्यवस्था करनी पड़ेगी | अभी राजनीतिक पार्टियाँ कॉर्पोरेट घराने से चंदा
लिया करती है जिसके एवज में उन्हें भी जीतने पर इन घरानों को टैक्स छूट या फिर कुछ
अन्य रेबड़ियां बांटनी पड़ती है | चुनावों में भारी खर्च की बाध्यता की वजह से
ईमानदार और अच्छे लोग राजनीति से कतरा रहे हैं और संसद से लेकर विधान सभाओं तक
बाहुबली और अपराधिक पृष्ठभूमि वाले अमीर लोगों का कब्ज़ा होता जा रहा है | राजनीतिक
वंशवाद की भी इक बड़ी वजह यही है कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के वंशधरों को
न तो पैसे की कमी है, न पहुँच की और न ही उनको कड़ी टक्कर देने के लिए ईमानदार लोग
मैदान में आ रहे हैं |
निदान चुनाव सुधारों द्वारा चुनावी खर्च को न्यूनतम स्तर पर रखते हुए
चुनावी खर्चों की सरकारी फंडिंग है | यह छोटा सा कदम भ्रष्टाचार मिटाने के लिए मील
का पत्थर सिद्ध हो सकता है |
साथ ही पंचायतों के स्तर से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सांसद एवं
विधायकों की तरह पंचायत में चुने गए जनप्रतिनिधियों के लिए भी समुचित मानदेय की
व्यवस्था होनी चाहिये |
साथ ही, भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर उसका समयबद्ध निपटारा होना
चाहिये | इससे राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने में काफी मदद मिलेगी |
प्रशासनिक भ्रष्टाचार-
यह भ्रष्टाचार का सबसे दृश्य रूप है जिससे हम सबका साबका हर दिन पड़ता
है | प्रशासनिक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मुख्य सतर्कता आयुक्त की संस्था को और
भी सशक्त किये जाने, राज्यों में समान संस्थाओं की स्थापना तथा उनका सुचारू रूप से
कार्य करना अत्यावश्यक है | हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को स्वायत्त बनाने
के निर्देश दिए हैं | अगर सीबीआई मुख्य सतर्कता आयुक्त के नियंत्रण में बिना किसी
सरकारी हस्तक्षेप के कार्य करे तो इस निर्देश का पालन किया जा सकता है | साथ ही
लोकपाल को लेकर भी हाल में व्यापक जन आन्दोलन रहा है | एक सशक्त लोकपाल जिसे
प्रधानमंत्री से लेकर हर सरकारी सेवक, सांसद, विधायक और हर उस संस्था की जांच करने
का अधिकार हो जो सरकार से मदद या अनुदान लेती हो तथा मुख्य सतर्कता आयुक्त एवं
सीबीआई जिसके नियंत्रणाधीन कार्य करे, भ्रष्टाचार कि समस्या को हल करने में काफी
कारगर हो सकती है | मगर लोकपाल की संस्था पर भी सम्यक नियंत्रण एवं संतुलन की
आवश्यकता होगी |
जनसेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध करना भी सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने में
काफी कारगर है | “सेवा का अधिकार” के द्वारा कई राज्यों ने समयबद्ध सेवा पाने को
जनता का मौलिक अधिकार बना दिया है | इससे भी प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर नकेल डालने
में काफी सहायता मिलेगी |
पुलिस एवं न्याय व्यवस्था –
पुलिस में भ्रष्टाचार में नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस सुधारों को
सही ढंग से कार्यान्वित करना समय की मांग है | सबसे बड़ा सुधार FIR फाइल करने में
पुलिस स्टेशन की मनमानी पर नियंत्रण लगाने का है |अभी देश के कई पिछड़े हिस्सों में
पुलिस द्वारा FIR फाइल नहीं करने या फिर फाइल करने-न करने के लिए पैसे मांगने की ढेर
सारी शिकायतें सामने आती है | अगर जनता को ऑनलाइन, मेल द्वारा, SMS द्वारा FIR
फाइल करने का विकल्प दिया जाए तो इस पर काबू पाया जा सकता है | इसके दुरूपयोग को
रोकने के लिए झूठी FIR फाइल करने पर दंड का प्रावधान किया जा सकता है | इसके
अलावा, हर केस के निपटारे के लिए चरणबद्ध समय सीमा बांधना भी अनिवार्य है |जाँच को
स्वतंत्र बनाना भी इस दिशा में अच्छा कदम सिद्ध होगा |
न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ा सुधार ब्रिटिश काल में बने कानूनों को
वर्तमान युग की वास्तविकताओ के अनुरूप अद्यतन संसोधित करने का है | दीवानी और
आपराधिक दंड संहिता की कई धाराओं में दंड की राशी देख कर हंसी आ जाती है | दंड को
अपराध के अनुरूप और अपराधी के मन में भय पैदा करने वाला होना चाहिये | दुरूह और
जटिल कानून न्याय पाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है | साथ ही हर केस के निपटारे के
लिए समयसीमा तय होनी चाहिये | न्याय प्रणाली को पूर्ण पारदर्शी और प्रभावी बनाये
जाने की जरुरत है | समुचित कोर्ट,
पर्याप्त न्यायिक एवं गैर-न्यायिक कर्मचारी एवं लंबित मुकदमों का त्वरित निपटारा
ही न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बरक़रार रख सकता है |
भ्रष्टाचार के मुकदमों के लिए विशेष कोर्ट की व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार
निवारक अधिनियम १९८८ को सम्यक रूप से कार्यान्वित किये जाने की जरुरत है | भ्रष्टाचारियों
के मन से सजा का खौफ होना चाहिये | बिहार सरकार ने इस दिशा में भ्रष्टाचारियों की
संपत्ति जब्त कर अनुकरणीय पहल की है |
सामाजिक सुधार
समाज और जनता को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरुरत है | समाज अगर
ईमानदारी की क़द्र न करेगा और पैसे को पूजेगा चाहे वह जैसे भी आया हो, तो वैसे समाज
में ईमानदार होना बेमानी हो जाएगा |
समाज को अपनी मानसिकता को ईमानदार बनाना होगा | पैसे की कद्र छोड़ उसे
व्यक्ति के गुणों की कदर फिर से सीखनी होगी | जुगाड़ से हमेशा आगे रहने वाले लोगों
को उसे तिरस्कृत करना होगा | समाज को ईमानदारी को इक आदर्श और वांछनीय मूल्य के
तौर पर आदर देना होगा | नहीं तो सामाजिक दवाबों में आकर ईमानदार लोग टूटते-बिखरते
रहेंगे और बेईमान लोग ईमान की कीमत सरेआम लगते रहेंगे |
वाकई, भारत से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए समाज,शासन,साहित्य,
मीडिया अर्थात भारत राष्ट्र के हर अंग को
अपने तरीके से लड़ाई लड़नी होगी | मीडिया और साहित्य को भी ईमानदारी के महत्त्व को
जनता और समाज के सामने रखना होगा | मीडिया अगर खुद सरकारी विज्ञापन और पेड न्यूज़
के भ्रष्टाचारी मकडजाल में फंसा और साहित्यकार पुरस्कारों-पदों के लोभ में
भ्रष्टाचारी सत्ता की चाटुकारिता करते रह गए तो समाज को जागरूक करने के महत्त
कार्य के लिए कोई नहीं बचेगा | मीडिया और साहित्य को मशाल की तरह जनता को राह
दिखानी होगी |
जनता को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी और
भ्रष्टाचारियों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा | हमें अपने बच्चों-बच्चियों में
ईमानदारी के संस्कार डालने होंगे | भ्रष्टाचार भारत की जीन में नहीं भारत के
परिवेश में है और हमें इस परिवेश को स्वच्छ और ईमानदार बनाने के लिए हर संभव कदम
उठाने होंगे | हमें माहौल की उस असहायता को मिटाना होगा जिसमे ईमानदार लोग यह
सोचने पर मजबूर कर दिए जाते हैं कि –“क्या ईमानदार होना गुनाह है?”
इस निबंध के अंत में मैं सत्येन्द्र दूबे को समर्पित अपनी लिखी एक
पुरानी कविता से करना चाहूँगा | मेरा विश्वास है कि अब भी ईमानदारी सर्वोत्तम नीति
है और अंत भले ही कितनी भी देर से आये पर अंत में सत्य की ही जीत होगी |
ईमान मर नहीं सकता
आज के इस भयानक दौर में,
जहाँ ईमान की हर जुबान पर
खामोशी का ताला जडा है.
चाभी एक दुनाली में भरी
सामने धरी है ,
फ़िर भी मैं कायर न बनूँगा
अपनी आत्मा की निगाह में
फ़िर भी मैं, रत्ती भर न
हिचकूंगा
चलने में ईमान कि इस राह पे।
मैं अपनी जुबान खोलूँगा
मैं भेद सारे खोलूँगा-
(बेईमानों- भ्रष्टाचारियों की
काली करतूतों के )
मैं चीख-चीख कर दुनिया भर में बोलूँगा-
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है।
मैं जानता हूँ कि परिणाम क्या होगा-
मेरी जुबान पर पड़ा खामोशी का ताला
बदल जाएगा फांसी के फंदे में
और फंदा कसता जायेगा-
भिंच जायेंगे जबड़े और मुट्ठियाँ
आँखें निष्फल क्रोध से उबलती
बाहर आ जाएँगी
प्राण फसेंगे, लोग हसेंगे
पर संकल्प और कसेंगे.
देह मर जायेगा मगर
आत्मा चीखेगी, अनवरत, अविराम-
''ईमान झुक नहीं सकता,
ईमान मर नही सकता,
चाहे हालत जो भी हो जाये,
ईमान मर नही सकता,
ईमान मर नही सकता.
-2004 -
(स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भष्टाचार को उजागर
करने पर जान से हाथ धोने वाले 'यथा नाम तथा गुण' सत्येन्द्र
डूबे तथा ईमान की हर उस आवाज को समर्पित जिसने झुकना गवारा ना किया बेईमानी के
आगे.)
----केशवेन्द्र कुमार---