गुरुवार, 10 मई 2012

कब तक कोख में मारी जाएँगी बेटियाँ

आमिर खान के टीवी सीरियल सत्यमेव जयते ने वाकई अपने पहले ही एपिसोड से जनमानस में हलचल मचाना शुरू कर दिया है. भ्रूण हत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को काफी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ समाज के सामने लाकर वो समाज को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. हलचल बता रही है कि समाज को भी अपने चेहरे पर इतना बड़ा दाग-धब्बा पसंद नहीं आ रहा है और इस प्रोग्राम के बाद प्रशासन और जनता में काफी जागरूकता भी आयी है. राजस्थान में स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा भ्रूण हत्या में डॉक्टरों की भूमिका को उजागर करनेवाले पत्रकारों की कहानी देखकर लगा कि वाकई समाज को बदलने की जद्दोजहद में लगे लोगों को कम ठोकरें नहीं कहानी पड़ती. मगर संतोष इस बात का है कि देर से ही सही बदलाव आने की शुरुआत हो रही है.

कन्या भ्रूण हत्या में सबसे विवश होती है वह माँ जिसे उसकी ही बेटी को मारने में हामी भरने को मजबूर कर दिया जाता है. जरुरत है कि वो इतनी मजबूत बन सके कि अपने बेटी को मारने की साजिश में लगे घर, परिवार और समाज के सामने बुलंदी से अपनी बेटी की ढाल बन कर खड़ी हो सके. वर्ष २००४ की फरवरी में इसी मुद्दे पर एक कविता लिखी थी जिसमे एक कन्या भ्रूण अपनी माँ से संवाद करती है. आपलोगों के सामने पेश है वो कविता -

ओ माँ! तुम सुन रही हो ना!

ओ माँ!
मेरी आवाज सुनो
मैं तुम्हारी बगिया में
अन्खुवाता बिरवा हूँ
मत तोड़ने दो इसे किसी नादान को
मत रौंदने दो इसे किसी हैवान को.

ओ माँ!
पुरुष बेटे के जन्म पर
खुशियाँ मनाता है
तुम क्यों नही खुशियाँ मनाती
बेटियों के जन्म पर
क्या इतनी कमजोर हो तुम
की मेरे दुनिया में आने से
पुरुषों की इस दुनिया में
खुद को असुरक्षित महसूस करती हो?

ओ माँ!
भूलती क्यों हो यह बात
की गर्भ में तुम भी रही होगी एक दिन
पुरुषों के दवाब से झुककर
तुम्हारी माँ ने यदि गर्भ में ही
तुम्हारी हत्या होने दी होती,
तो क्या होता?
सृष्टि की आदिमाता ने यदि
लड़कियों की भ्रूण-हत्या होने दी होती
तो शायद मानव जाति कब की
लुप्त हो चुकी होती.

ओ माँ!
जबतक मैं सुदूर अनंत में थी
मैंने कुछ नही माँगा
मगर, अब जब मैं तुम्हारे गर्भ में हूँ
धरा पर जन्म लेना हक़ है मेरा
मेरे इस हक़ के लिए
तुम्हे लड़ना होगा उनसे
जो स्रष्टा नही हैं
मगर संहार में लगे हैं.

ओ माँ!
लड़की जनने की आशंका से
क्यूँ मुरझाई हो तुम?
क्या खुद पर विश्वास नही,
या मुझ पर विश्वास नहीं?
पुरुष बेटों पर गर्व करता है
तुम बेटियों पर गर्व करना सीखो माँ.

ओ माँ!
जिन्दगी पर सिर्फ बेटो का ही हक़ नही
बेटियों का भी हक़ है बराबर
जिन्दगी सिर्फ बेटों की ही बपौती नही
बेटियों की भी 'ममौती' है.

ओ माँ!
मैं दुनिया को देखना चाहती हूँ
मैं जिन्दगी को जीना चाहती हूँ
मैं उस समाज, उस मानसिकता
को बदलना चाहती हूँ
जो बेटियों की राह में
सिर्फ जिन्दगी-भर ही नहीं
वरन जिन्दगी के पहले भी,
जिन्दगी के बाद भी
नुकीले कांटे बिछाती रहती है.

ओ माँ!
हौसला रखो, विश्वास रखो
आशा रखो, उम्मीद रखो
और मुझे इस दुनिया में आने दो
मैं जन्मने से पहले नही मरना चाहती
तुम भी इस पाप में मूक सहमति
दे कर जीते जी न मरो.
अपनी आत्मा को, अपने अंश को
अपनी मुक्ति के इस मधुर गीत को
अपनी बेटी को न मरने दो.

ओ माँ!
तुम सुन रही हो ना?
04 Feb 2004

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

IPS ऑफिसर नरेंद्र की शहादत

मध्य प्रदेश कैडर के युवा IPS अधिकारी नरेन्द्र की खनन माफियाओं द्वारा हत्या की खबर झकझोरने वाली है. इस शोक की घड़ी में हम सब उनके परिवारवालों और सबसे बढ़कर उनकी पत्नी और अपनी बैचमेट मधु के साथ हैं. भगवान पर से कभी-कभी विश्वास डोलता हुआ महसूस होता है जब अच्छे लोगों के साथ ऐसी घटना होती है. इन खनन माफियाओं और उनका साथ देने वाले टुच्चे लोगों चाहे वो राजनीति में हो या प्रशासन में, को उनकी असली औकात और जगह (जेल) दिखाए जाने की सख्त जरुरत है.
मध्य प्रदेश में २००९ बैच के जांबाज ईमानदार IPS ऑफिसर नरेंद्र की हत्या के बाद बिहार में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने पर मार डाले गए सत्येन्द्र डूबे और उन जैसे सारे ईमानदार लोगों की शहादत याद आ रही है. इन सारे शहीदों की वीरता को नमन और अपनी  एक पुरानी कविता से श्रद्धांजलि


ईमान मर नहीं सकता


आज के इस भयानक दौर में,
जहाँ ईमान की हर जुबान पर
खामोशी का ताला जडा है.
चाभी एक दुनाली में भरी
सामने धरी है ,

फ़िर भी मैं कायर न बनूँगा
अपनी आत्मा की निगाह में
फ़िर भी मैं, रत्ती भर न हिचकूंगा
चलने में ईमान कि इस राह पे।

मैं अपनी जुबान खोलूँगा
मैं भेद सारे खोलूँगा-
(बेईमानों- भ्रष्टाचारियों की
काली करतूतों के )
मैं चीख-चीख कर दुनिया भर में बोलूँगा-
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है।

मैं जानता हूँ कि परिणाम क्या होगा-
मेरी जुबान पर पड़ा खामोशी का ताला
बदल जाएगा फांसी के फंदे में
और फंदा कसता जायेगा-
भिंच जायेंगे जबड़े और मुट्ठियाँ
आँखें निष्फल क्रोध से उबलती
बाहर आ जाएँगी
प्राण फसेंगे, लोग हसेंगे
पर संकल्प और कसेंगे.

देह मर जायेगा मगर
आत्मा चीखेगी, अनवरत, अविराम-
''ईमान झुक नहीं सकता,
ईमान मर नही सकता,
चाहे हालत जो भी हो जाये,
ईमान मर नही सकता,
ईमान मर नही सकता.
-2004 -

(स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में भष्टाचार को उजागर करने पर जान से हाथ धोने वाले 'यथा नाम तथा गुण' सत्येन्द्र डूबे तथा ईमान की हर उस आवाज को समर्पित जिसने झुकना गवारा ना किया बेईमानी के आगे. )

बुधवार, 2 नवंबर 2011

इटली आया नहीं, फ्रांस गया नहीं-केबीसी के पंच कोटि विजेता सुशील कुमार की स्वर्णिम सफलता



बिहार के मोतिहारी के रहनेवाले सुशील कुमार ने एक मिसाल पेश की है भारत के संघर्षरत युवाओं के सामने. महात्मा गाँधी की कर्मभूमि चम्पारण से सम्बन्ध रखनेवाले और महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में कम्प्युटर ऑपरेटर की नौकरी करनेवाले यह युवक भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरा है.
हालाँकि कहनेवाले यह कह सकते हैं कि यह सफलता लौटरी में मिली सफलताओं जैसी ही है और ऐसे मौके हर किसी को नहीं मिलते. मगर, इस शख्श ने इस सफलता के लिए ११ सालों तक इंतजार किया है और इस मंच तक पहुचने के लिए हर संभव प्रयास उसने किये. अपने परिवार को सहारा देने के लिए स्कूली बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने तक का काम किया. इसलिए उनकी इस सफलता को उनके संघर्ष के आईने में देखते हुए उसे समुचित सम्मान दिए जाने की जरुरत है.
सुशील ने जिस हिसाब से इस खेल को खेला और जितने रिस्क लिए, वो भी काबिल-ए-तारीफ है. १ करोड़ के प्रश्न तक वो बस एक लाइफ लाइन प्रयोग कर पहुचे. उन्होंने अच्छे रिस्क भी लिए और किस्मत भी उनपर मेहरबान रही. कई बार उन्होंने अपने इन्ट्यूशन के सहारे बड़ा रिस्क लेते हुए सवालों के जवाब दिए.
मजेदार सवालों में एक करोड़ का सवाल था कि लाल बहादुर शास्त्री जी ने ललिता जी से अपनी शादी के समय खादी के कुछ कपडें के अलावा दहेज में और क्या लिया. इस सवाल का जवाब सुशील ने एक्सपर्ट राय के आधार पर ‘चरखा” आप्शन लॉक कर कर दिया. शायद इस उदाहरण से दहेज के पीछे भागती हमारी युवा पीढ़ी को कुछ प्रेरणा मिले.
सबसे मजेदार किस्सा तो पांच करोड़ के सवाल का रहा. सवाल था कि १८६८ में निकोबार द्वीप को ब्रिटेन के हाथों बेचने के साथ किस औपनिवेशिक शक्ति का भारत से अंत हो गया. आप्शन थे बेल्जियम, डेनमार्क, इटली और फ्रांस. सुशील का जुमला कि – “इटली आया नही, फ्रांस गया नहीं” श्रोताओं को लोटपोट करता रहा. फोन अ फ्रेंड से भी जब बात ना बनी तो अल्टीमेट रिस्क लेते हुए सुशील ने डबल डिप आप्शन लिया. इस आप्शन में अगर वे दो बार में भी सही जवाब नही दे पाते तो सीधे १ करोड़ से नीचे गिरकर १ लाख ६० हजार पर आ जाते. वाकई, उनके इस रिस्क लेने की हिम्मत को नमन.
अगर सुशील कुमार को केंद्र सरकार  मनरेगा के पोस्टर बॉय के तौर पर प्रयोग करे तो यह प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने में और कामगार जनता को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की प्रेरणा देने में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है. सुशील कुमार की सपनीली सफलता की इस कहानी से ढेर सारे संघर्षशील युवा प्रेरित हो, इसी दुआ के साथ मैं एक बार फिर सुशील जी को तहे दिल से शुभकामनाएँ देता हूँ.
---केशवेंद्र कुमार--- 

रविवार, 4 सितंबर 2011

स्वप्न सच होते हुए


स्वप्न सच होते हुए

साथियों, एक लंबी चुप्पी के बाद मैं फिर से आप लोगों से इस ब्लॉग पर मुखातिब हो रहा हूँ. अभी फ़िलहाल केरल में होने की वजह से मैं सिविल सेवा की तैयारी के माहौल से थोडा सा कटा हुआ हूँ, पर फिर भी तैयारी में लगे युवा साथियों को प्रेरित करने का काम तो किया ही जा सकता है.

सबसे पहले तो मैं उन प्रतिभागियों को बधाई देना चाहूँगा जिन्होंने इस बार की प्रारंभिक परीक्षा में सफलता पाई है. और जो इस बार इस पड़ाव को पार नही कर पाए हैं, उनको बस यही कहना चाहूँगा कि “कोशिश करने वालों की हार नही होती.”

हाँ, इस बार मैं मुखातिब हो रहा हूँ उन लोगों से जो सिविल सेवा में आने का सपना तो देखते हैं पर जो अपनी परिस्थितियों के आगे मजबूर हैं, जिन्हें लगता है कि ज़माने की बाधाओं से वे अपने इस सपने को पूरा करने में सफल नहीं हो पाएंगे. मैं आपको सुनाता हूँ केशवेंद्र और रविकांत की कहानी.. सपनों के सच होने की कहानी.

केशवेंद्र यानि मैं बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आता हूँ. बचपन से ही अपने गुरुदेव नागेन्द्र सिंह के आशीर्वाद से हिंदी साहित्य में मेरी गहरी रूचि रही और बचपन प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, शरतचंद, रविन्द्र , दिनकर, निराला के साहित्य के सान्निध्य में गुजरा. माता-पिता की आँखों में सपना था कि उनके तीनों बच्चे अच्छी सरकारी नौकरी में आयें और जो संघर्ष उन्हें जीवन में करना पड़ा है, वह उनके बच्चों को  ना करना पड़े.

मेरे बाबूजी प्राइवेट प्रैक्टिस करनेवाले आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं और आयुर्वेद के उत्थान-पतन के साथ हमारे घर ने भी अच्छे-बुरे दिन देखे हैं. माँ गृहस्थ महिला है, बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है,पर हमेशा उनके होठों से हम बच्चों के लिए यही दुआ निकली कि बेटा, पढ़-लिख कर बड़ा ऑफिसर बन जा. पिता जी की  दूरदर्शी सोच ने शिक्षा को सबसे ज्यादा महत्व दिया और हम तीन भाइयों की पढ़ाई के लिए उन्होंने हमारे गांव के शिक्षक नागेन्द्र सिंह को रखा. गुरूजी की तारीफ में यही कहूंगा कि उन्हें बच्चों को पढ़ाने की कला बखूबी आती थी और वो बच्चों को बच्चा बनकर पढाने में यकीन रखते थे. साथ ही साहित्य और अध्यात्म में उनके लगाव ने हम तीनों भाइयों को गहरे तक प्रभावित किया. गीता और रामचरितमानस का सुंदरकांड गुरूजी की दुआ से हमारे जीवन का अभिन्न अंग बने.

मेरे जीवन को प्रभावित करने वाली एक और व्यक्तित्व के तौर पर मैं अपने नानाजी श्री उमेश चंद्र ठाकुर का नाम लेना चाहूँगा. नानाजी पुस्तकों के बहुत बड़े प्रेमी थे और बचपन में मैं जब भी ननिहाल जाया करता था, पुस्तकों के ढेर के साथ लौटता था. राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा का १९४७ का संस्करण, भागवद गीता एज ईट इज, सोमनाथ, भारतेंदु के सम्पूर्ण नाटक, निराला की अनामिका और अपरा, गाँधी जी की दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास जैसी कितनी किताबें उनके यहाँ से लाके पढ़ी होगी मैंने. उनसे पुस्तकों का यह प्रेम मुझे उपहार में मिला और इसने मेरे जीवन को कितना खुशहाल बनाया है यह मैं बता नहीं सकता. नानाजी की धर्म के प्रति तार्किक दृष्टि और वेद, उपनिषद, गीता की उनकी सटीक व्याख्या ने भी सभी धर्मों के प्रति एक आलोचनात्मक और स्वस्थ दृष्टिकोण बनाने में योगदान दिया.
पुस्तकों का यह प्रेम बच्चों की कहानी की पत्रिकाओं नंदन, बालहंस, लोटपोट, सुमन सौरव, कॉमिक्स से होता हुआ कादम्बिनी, विज्ञान प्रगति और ढेर सारी पत्रिकाओं के प्रति रहा. समाचार पत्रों के शनिवार और रविवार के विशेषांक भी काफी दिलचस्पी से पढ़ करता था मैं. बड़े भैया से बीबीसी सुनने की आदत लगी जो लंबे समय तक कायम रही.

बचपन से ही भाषण, वाद-विवाद,विज्ञान प्रदर्शनी में मेरी काफी रूचि रही और इन सब के लिए बाबूजी और गुरूजी की तरफ से काफी प्रोत्साहन भी मिला. इन सबमें सबसे बड़ी उपलब्धि मैं १९९८ में बाल विज्ञान कांग्रेस में चेन्नई में राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी को मानता हूँ. सरकारी स्कूलों में पढ़ कर भी इन उपलब्धियों की चमक ने मेरे आत्मविश्वास को हमेशा बुलंद रखा. यही वो समय था जब जिला स्तर की प्रतियोगिताओं में आईएस, IPS अधिकारीयों के हाथ से  पुरस्कार ग्रहण करते हुए मेरे मन में आता था कि इक दिन मैं भी इसी तरह बच्चों को पुरस्कार दे रहा होऊंगा.

बचपन से सातवीं कक्षा तक मैं रीगा मध्य विद्यालय का छात्र रहा, आठवीं कक्षा बभनगामा उच्च विद्यालय में गुजरी जो अपने अतीत के गौरव की जर्जर निशानी भर रह गया था. फिर नवमीं कक्षा में मैंने जिला स्कूल डुमरा में दाखिला लिया. आठवीं- दशमी कक्षा को मैं अपने शैक्षणिक जीवन के लिए बहुत अच्छा नही मानता. इन दो सालों में बहुत सारी बातों की वजह से मेरा प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा, पर यही वो समय भी था जब मैंने अपने जीवन की दिशा निर्धारित की. बिहार के मध्यमवर्गीय परिवारों में सामान्य चलन है कि मैट्रिक की परीक्षा पूरी करने के बाद अगर बच्चा मेधावी है तो उसे इंजिनिअर-डॉक्टर बनाने की कवायद चालू हो जाती है. वहां पर मैंने लीक से हट कर कुछ नया सोचा.

यह वो समय था जब मेरे मन में सिविल सेवा की तैयारी कर आईएस बनने की बात कहीं-न-कहीं आ चुकी थी. पर मैं यह तैयारी अपने पैरों पर खड़े होकर करना चाहता था. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मैं देख रहा था और मैं अपने माता-पिता पर और बोझ नहीं बढ़ाना चाहता था. और जो राह मैंने चुनी, वह थी नौकरी में आकर सिविल सेवा की तैयारी करने की राह.

उस समय रेलवे में एक वोकेशनल कोर्स हुआ करता था-“ वोकेशनल कोर्स इन रेलवे कौमर्शिअल.” रेलवे के उस समय के ९ जोन रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड के जरिये हर वर्ष इस कोर्स की ४० सीटों के लिए परीक्षा आयोजित किया करते थे जिसमें मैट्रिक की परीक्षा में उस साल शामिल होने वाले छात्र शामिल हो सकते थे. लिखित और मौखिक परीक्षा को पास करने और मैट्रिक की परीक्षा में ५५% अंक लाने पर इस कोर्से में ४० छात्रों को एक जोन में दाखिला मिलता था. फिर आपको सीबीएसई से आई-कॉम की परीक्षा ५५% अंकों के साथ उत्तीर्ण करने पर रेलवे में टिकट कलेक्टर या कौमर्शिअल क्लर्क के रूप में नियुक्ति मिलती थी.
मेरे मझले भैया इस परीक्षा को पास कर यह कोर्स कर रहे थे. मैंने भी निश्चय किया कि मैं इस जॉब को हासिल करने के बाद फिर अपने सपनों को पूरा करने को कदम आगे बढ़ाऊंगा. सो, मैट्रिक परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ मैंने इस परीक्षा की भी तैयारी शुरू कर दी. इस परीक्षा की तैयारी मुझे मेरे आगे की तैयारियों के लिए तैयार कर रही थी- मैं अपनी रणनीति बनाकर पूरे सिलेबस को तैयार कर रहा था. और,पूर्व रेलवे की इस परीक्षा में सफलता पा कर मैं बिहार से बाहर कलकत्ता के बैरकपुर में भोलानंदा विद्यालय में अपने आगे की पढाई पूरी करने आ गया.   

बैरकपुर के दो साल मस्ती के नाम रहे. बिहार से बंगाल का यह सफर काफी बदलाव भरा था. हालाँकि, बैरकपुर में बिहार और उत्तर प्रदेश के ढेर सारे लोग भरे हुए थे, फिर भी बांग्ला भाषा से तो पाला पड़ ही रहा था. ऊपर से अंग्रेजी नही आने से स्कूल में भी शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा. पर, इन दो सालों ने ठीक-ठाक अंग्रेजी लिखना-पढ़ना सिखा दिया. हिंदी माध्यम से अंग्रेजी माध्यम में यह बदलाव भी अच्छा ही रहा. अब भी टाइम्स ऑफ इंडिया पेपर से दो-दो घंटे जूझने के दिन याद आते हैं तो खूब हंसी आती है. बैरकपुर की मस्ती में सिविल सेवा की तैयारी का लक्ष्य आँखों से थोडा ओझल सा हो गया. हाँ, इस दौर में डायरी लिखने और कवितायेँ लिखने में खूब दिल लगाया. और यही वाह समय था जब कोलकाता के पुस्तक मेलों से परिचय हुआ. दीवानों की तरह दो-दो दिन घूम कर किताबों की ढेर अपने संग्रह में खरीदना मेरे जीवन के सबसे यादगार अनुभवों में एक है. इसी समय हिंदी साहित्य की कई अच्छी पत्रिकाओं से नाता बना जो अब तक चल रहा है. दुर्गा पूजा की धूम, गोलगप्पों का स्वाद, साथियों के साथ हुगली नदी में रात में नौका भ्रमण, शांतिनिकेतन, और कोलकाता भ्रमण की यादें अब भी मन को लुभाती है. सिनेमा भी कम नही देखे वहां पर. और जब मन करे बैग उठा कर घर चल देना, ट्रेन तो अब अपनी ही थी. गाँधी संग्रहालय, साइंस म्युजिअम, विक्टोरिया मेमोरिअल, दक्षिणेश्वर, बेलुर मठ, तारापीठ, काली घाट, इंडियन म्युजिअम भुलाने की चीजें नहीं हैं.

बैरकपुर से आई-कॉम पूरा करने के बाद घर आया तो नौकरी में आने तक के ५-६ महीने को मैंने काफी अच्छे से यूज किया. इस समय में मैंने सनातन धर्म पुस्तकालय से ढेर सारी हिंदी साहित्य की किताबें पढ़ी और अरुण सर की कोचिंग में अंग्रेजी बोलने का अभ्यास किया. कुछ काफी अच्छे दोस्त मिले-मृत्युंजय, एजाज़, सरिता, मनीष आदि. साथ ही IGNOU से हिंदी स्नातक में दाखिला भी ले लिया. हिंदी विषय लेने पर घर-समाज के लोगों ने थोड़ी हाय-तौबा मचायी पर मैंने तो यह निर्णय काफी सोच-समझ कर लिया था, और किसी के कहने-सुनने से अपने सही निर्णय को ना बदलना शुरू से ही मेरी फितरत रही है.

२७ अप्रैल २००४ से मैंने सरकारी सेवा में अपने जीवन की शुरुआत की. छोटी से ट्रेनिंग के बाद मुझे कोलकाता के बीरभूम जिले में सिउरी रेलवे स्टेशन पर बुकिंग क्लर्क के रूप में नियुक्ति मिली. शुरुआत में भाषा की वजह से थोड़ी दिक्कतें आयी पर फिर धीरे-धीरे सब कुछ सही हो गया. स्टेशन पर १२ घंटे का रोस्टर था, बीच में नियमानुसार ब्रेक होने चाहिए थे पर नयी गाड़ियों के कारण थे नहीं. ड्यूटी के साथ-साथ जो पहली प्राथमिकता थी, वो थी समय पर अपने स्नातक डिग्री को पूरा करना और वो मैंने किया.

सिविल सेवा में एक विषय के तौर पर हिंदी को चुनने के बारे में तो मैं शुरू से ही निश्चिन्त था पर दूसरे विषय के तौर पर इतिहास या राजनीति विज्ञान को चुनने में मैं काफी समय तक दुविधा में रहा. खैर, अंततः मुख्य परीक्षा में राजनीति विज्ञान से सामान्य अध्ययन में काफी सहायता मिलती देख मैंने उसे ही चुनने का निर्णय लिया. कोलकाता पुस्तक मेला और पटना में अशोक राजपथ की किताब की दुकानों में घूम-घूमकर लगभग सारी पुस्तकें जुटायी . साथ ही सिउरी में विवेकानंद ग्रंथागार तथा जिला पुस्तकालय का सदस्य बन कर भी काफी जरुरी किताबों और साहित्य का अध्ययन किया.

इस बीच में एक और बात ने मुझे सिविल सेवा की तैयारी करने को प्रेरित किया. पास के स्टेशन दुबराजपुर में मुझे काफी लंबे समय तक ड्यूटी करने को जाना पड़ा (२००६ की शुरुआत से) जहां १२ घंटे के रोस्टर की वजह से मैं सुबह ५ बजे ट्रेन से जाकर शाम में ६:३० बजे के आस-पास लौट पता था. उसमें भी रेस्ट बस एक ही दिन का था. इस मुद्दे को मैंने रेल प्रशासन के सामने कई बार उठाया पर उनका असंवेदनशील रवैया देख गुस्से में मन जल भुन उठा. मैंने इस गुस्से को भी अपनी तैयारी कि प्रेरणा बनाया. प्यार तो इस तैयारी की प्रेरणा था ही.

यह मेरी तैयारी का मुख्य समय था, सिउरी में स्टेशन प्रबंधक सुभाष दा के रूप में मुझे एक काफी अच्छे इंसान मिले थे जिनके साथ मैं अपनी भावनाओं को शेयर कर पता था और जो मेरा हौसला भी बढ़ाते थे. बादल दा और उनकी मंडली के तौर पर अच्छे साथी मिले थे जिनके साथ शाम में लौटते हुए अच्छा मनोरंजन होता था. साथ ही सिउरी स्टेशन पर अनंत दा की तितली की पाठशाला जो बाल श्रमिकों और यौन कर्मियों के बच्चों के लिए थी, का सदस्य बन कर भी काफी अच्छा लगा.

जून २००६ तक तो अपनी तैयारी जैसी-तैसी ही रही पर उसके बाद गंभीरता का स्तर बढ़ना शुरू हुआ. यह वह समय था जब मैं दो ट्रेनों के बीच के समय और ट्रेन में आने-जाने के बीच के समय में भी अपने अध्ययन में लगा रहता था. रविकांत मुझसे १ घंटे की ट्रेन यात्रा की दूरी पर उखड़ा स्टेशन पर बुकिंग क्लर्क के रूप में कार्यरत थे. २००६ की प्राथमिक परीक्षा में अपने प्रथम प्रयास में रविकांत की सफलता ने हम दोनों को काफी उत्साहित किया. रविकांत आशा-निराशा के बीच झूल रहे होने के कारन अपने कीमती दो महीनों का समय गवां चुके थे. खैर, उनकी हिंदी विषय की तैयारी को धार देने के लिए मैंने सप्ताह में एक बार उखड़ा जाकर वहां साथ-साथ रणनीति के साथ तैयारी की योजना बनायीं.

तैयारी के सिलसिले में विघ्न-बाधाएं कम नहीं थी. एक और तो बुकिंग क्लर्क के रूप में लगभग १० घंटे के आस-पास की पब्लिक डीलिंग की टफ जॉब, दूसरी और बंगाल के सुदूर जिले में होने के कारण हिंदी माध्यम की किताबों और पत्र-पत्रिकाओं की अनुपलब्धता. हाल यह था कि सारी-की-सारी पत्रिकाएँ मैं पोस्ट से मंगा रहा था. ऊपर से प्रोत्साहित करने वाले लोग कम और टांग खिंचाई करने वाले लोग ज्यादा थे. हमारे सपनों को शेखचिल्ली के हसीन सपने समझने वाले लोगों की कमी ना थी. खैर उनका मुँह हम अपनी सफलता से हमेशा के लिए बंद करना चाहते थे.

तैयारी के लिए मेरी रणनीति पाठ्यक्रम, बीते सालों के प्रश्नपत्र और फिर स्तरीय पुस्तकों से सिलेबस के सम्यक अध्ययन पर केंद्रित थी. रणनीति के लिए एक अलग डायरी बना कर राखी थी जिसमें अपने हर सबल और दुर्बल पक्ष का सम्यक विश्लेषण और अपने लिए रणनीति थी. यह वाह समय था जब रात को सबके सो जाने के बाद अपने क्वार्टर से बाहर निकल पीपल और बरगद के विशाल वृक्षों की छाँव और ठंडी हवा में टहलता हुआ मैं अपनी रणनीति बनाया करता था कि किस तरह मैं सिविल सेवा में टॉप कर सकता हूँ और उसके लिए किस विषय में मुझे कितने नंबर लाने होंगे. हिंदी के लिए तो धीरे-धीरे कर मैंने सारी किताबें जुटा ली थी, IGNOU के बी.ए और ऍम.ए के स्तरीय किताबों की उपलब्धता भी एक प्लस पॉइंट थी. पर राजनीति विज्ञान के लिए किताबों का संकलन बहुत अच्छा ना था. सिलेबस के कुछ पॉइंट कवर नहीं हो पा रहे थे. तब जाकर प्राथमिक परीक्षा के १५ दिनों पहले मझले भैया से ओ. पी. गाबा की तीन-चार किताबें मंगवाई जिससे राजनीतिक सिद्धांत वाले सारे मुद्दे कवर हुए.

प्राथमिक परीक्षा के लिए शायद १२-१५ दिनों की छुट्टी ली थी और यह सारा समय मैंने मुख्यतः राजनीति विज्ञान के छूटे हुए बिंदुओं को कवर करने में लगाया. यही वजह थी कि मैं सामान्य अध्ययन के रिविजन पर पूरा ध्यान नही दे पाया. खैर मेरी रणनीति थी १५० अंकों के सामान्य अध्ययन में ७५ अंक लाने की और ३०० अंकों के राजनीति विज्ञान में २२५ अंक लाने की. २००७ में पहली बार निगेटिव मार्किंग का प्रावधान किया गया था. उसे ध्यान में रखते हुए ४५० अंकों में ३०० अंक लाने का लक्ष्य पूरी तरह सुरक्षित था.

परीक्षा केंद्र मैंने कोलकाता में रखा था. परीक्षा के लिए गोले रंगने की काफी प्रैक्टिस की थी. खैर सेंटर पर मुझे और मेरे जैसे कुछ कम उम्र लोगों को देख कर परीक्षक ने मजाक में टिप्पणी की कि अगर ये लोग आईएस बन गए तो क्या होगा..मैंने तपाक  से जवाब दिया कि युवा हाथों में प्रशासन और भी असरदार बनेगा. खैर परीक्षा अच्छे से गयी. परीक्षा के बाद स्व-मूल्यांकन करना मेरी पुरानी आदत रही है. राजनीति विज्ञान में मेरी मार्किंग २१०+ थी और सामान्य अध्ययन में ६१+. कुल योग तो सही था पर सामान्य अध्ययन पेपर में कम नंबर को लेकर मेरे मन में चिंता थी. कहने का मतलब कि मैं प्राथमिक परीक्षा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं था. वैसे भी, यह मेरा पहला प्रयास था.

खैर रिजल्ट के दिन जब धड़कते निगाहों ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर पढ़ा कि मेरा नंबर सफल छात्रों की सूची में है तो दिल खुशी से झूम उठा. फिर तो काफी मशक्कत कर लता मैडम (Sr DCM) के सहयोग से छुट्टी मिली और मैं और रविकांत अपनी तैयारियों में जुटे. साधारणतः हमलोग सप्ताह में एक या दो दिन मिलकर अपने पढ़े हुए पर चर्चा करते थे और हिंदी साहित्य तथा सामान्य अध्ययन की साझी तैयारी करते थे. निबंध के पात्र में भी हम लोगों ने कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर निबंध की रूप-रेखा बना कर तैयारी की. पर समयाभाव के कारण हमलोग बस पढ़ कर कम चला रहे थे, लिखने की प्रैक्टिस काफी कम हो रही थी. मैंने हालाँकि जेरोक्स के पन्नों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, हिंदी में साहित्यकारों के ऊपर तथा वैसे विषयों पर नोट्स बनाये थे जिनपर जानकारी बहुत सारी किताबों में बिखरी पड़ी थी. 

मुख्य परीक्षा का केंद्र कोलकाता में था. परीक्षा के एक-दो दिन पहले मैं और रविकांत वहां पहुचे और वहां पर अपने रेलवे के दोस्तों उपेन्द्र और विवेकानंद के यहाँ रुके. पास में ही बेलुर मठ था, शाम में तैयारी की टेंशन और थकान मिटने तथा गंगाजी के सान्निध्य का आनंद लेने हमलोग वहां जाया करते थे.
थोड़ी चर्चा अपनी एक बड़ी भूल या लापरवाही की भी कर लूं. मोबाइल के ज़माने में साधारणतः कलाई घड़ी की आदत छूट सी गयी है लोगों में. ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ था. सिउरी में याद आया तो मैंने सोचा कि कोलकाता जा ही रहे है, वहां से कोई अच्छी सी घड़ी ले लेंगे. बेलुर में शाम में खोजा तो घड़ी कि कोई दुकान ना मिली. साथियों में भी किसी के पास घड़ी नहीं थी. फिर सोचा कि चलो कल सेंटर पर पहले जायेंगे और वहीँ से ले लेंगे. तो वाकया हुआ कि पहले ही दिन मैं और रविकांत बस में ओवरकैरी हो गए. फिर से लौट के जब सेंटर पहुचे तो पता चला कि समय बिलकुल नही बचा है. खैर, उपरवाले का नाम ले बैठे परीक्षा में. सामान्य अध्ययन की परीक्षा थी जिसमे समय प्रबंधन काफी महत्वपूर्ण होता है. हॉल में भी घड़ी नही लगी हुई थी. अब मैंने सोचा कि बस तेज रफ़्तार में लिखना है कि कुछ छूटे नहीं. टाइम मैनेजमेंट की तो वैसे ही बिना घड़ी के वाट लग ही चुकी थी.

खैर जब तक एक्साम का पहला घंटा बजा तब तक मैंने दो नंबर वाले टिप्पणी परक सवालों को पूरा करते हुए १०० नंबर के सवाल बना डाले थे. अब मैं थोडा रिलैक्स होकर जवाब लिख रहा था. प्रश्नपत्र काफी अच्छा था और मेरी काफी अच्छी तैयारी थी उस पर. फिर कुछ देर के अंतराल के बाद एक बार और घंटा बजा. मैं पूरी तरह से हडबडा उठा. मुझे लगा कि यह दूसरा घंटा दो घंटे पूरे होने के उपलक्ष्य में लगा है. संयोग ऐसा कि परीक्षक उस समय पास भी नही था और पास के अभ्यर्थी से मैं इस लिए नही पूछ रहा था कि कहीं जवाब पूछने का झूठा आरोप न लग जाये. खैर, मैंने सोचा कि जैसे भी हो, मुझे इस एक घंटे में सारे सवाल हल करने हैं. और, उस हड़बड़ी में मैंने दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों को जिनके मैं काफी अच्छे उत्तर लिख सकता था, उन्हें जैसा-तैसा लिख डाला. थोड़ी देर बाद जब घंटा फिर से बजा तो पूरी तरह से कन्फ्यूज था. तब जा कर परीक्षक से पूछ कर पता चला कि अभी दो घंटे हुए हैं और बीच का घंटा डेढ़ घंटे का था. मैंने आधे घंटे में १०० नंबर के सवाल हल किये थे तो उनके स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है. मैंने गुस्से के मारे अपने सर पर हाथ दे मारा. फिर बचे हुए एक घंटे में  बचे हुए ५० नंबर के सवाल हल किये और बाकी के जवाबों के स्तर को जितना सुधार जा सकता था, सुधारा. पर आप लिखे हुए उत्तर में quantity बढ़ा सकते हैं, quality नहीं. आलम यह था कि मैं दस मिनट हाथ में रहते हुए सारे सवालों के जवाब लिख कर बैठा था और अपनी उत्तर पुस्तिका को फिर से दुहराते हुए अपने दीर्घ उत्तरीय जवाबों की गुणवत्ता पर अपने सर नोच रहा था.

पहला पेपर देकर निकला तो मैं अपने ऊपर गुस्से से जल रहा था. इतनी बड़ी लापरवाही मुझसे इतने बड़े दिन होनी थी. पास की दुकान से एक घड़ी खरीद कर लाया पर मैं खुद से काफी अपसेट था. सामान्य अध्ययन का दूसरा प्रश्नपत्र मेरे लिए काफी स्कोरिंग होना चाहिए था क्यूंकि राजनीति विज्ञान मेरा ऐच्छिक विषय था. पर अपसेट होने की वजह से मैंने सांख्यिकी के ४० नंबर के सवालों में लगभग १ घंटे लगा दिए और फिर जो समय के लिए मारा-मारी शुरू हुई उसमें अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, अर्थशास्त्र, विज्ञान और प्रौधोगिकी के सवालों के जवाब अपनी तैयारी की तुलना में कमतर लिखा.  सो, परीक्षा हॉल में घड़ी ना ले जाने की इस गलती ने मुझे कम से कम २०-४० नंबरों का चूना लगाया. पहले पेपर में जहां मैं २२५ या उससे ज्यादा नंबर ला सकता था, वहां २०७ अंक आये और दूसरे पेपर में तो ये आलम रहा कि बस १४० अंक आये जहां कि मेरी तैयारी का स्तर १७०-१८० अंक लाने का था.

खैर, इस गलती से सबक लेते हुए मैंने निबंध पात्र में थोडा सा रिस्क लिया. निबद्ध के ६ टॉपिक्स में दो विषय मैं काफी अच्छे से लिख सकता था- एक विषय भारत में पंचायती राज के बारे में था जो मैं राजनीति विज्ञान का होने के कारण काफी अच्छे से लिख सकता था. दूसरा विषय था –“बच्चों में स्वतंत्र विचार शक्ति को शुरू से ही प्रोत्साहित करना चाहए”. मैंने सोचा कि दूसरे विषय में मेरी कल्पना के लिए काफी गुंजाईश है और इसमें संभावना है कि मैं २०० में १२० से ज्यादा नंबर ला सकूं. मेरा इस निर्णय ने वाकई मेरा साथ दिया क्यूंकि निबंध में मैंने १४३ नंबर लाए. सामान्य अध्ययन पेपर में जो नंबर अपनी भूल से खोये थे, उसकी थोड़ी सी भरपाई इस तरह हुई.

सामान्य अंग्रेजी का प्रश्न पत्र इतना हल्का था कि मैंने एक घंटे में बना डाला. एक्साम हॉल से ३ घंटे पूरा होने के पहले जाने कि अनुमति ना होने की वजह से बाकी के दो घंटे आराम से लेट कर बिताए. आस-पास के अभ्यर्थी सोच रहे थे कि शायद बंदा अंग्रेजी में फेल होने की तैयारी में है. खैर, सामान्य हिंदी का पेपर मैंने टाइम पास करने के ख्याल से काफी धीरे-धीरे २ घंटे में लिखा.

फिर हिंदी साहित्य के पेपर में पहला पेपर तो सही गया, मगर एक छोटी सी भूल वहां भी थी. साधारणतः हम लोग पिछले साल पूछे गए प्रश्नों के बारे में मान कर चलते है कि वे इस साल नही ही आयेंगे. इस पेपर में पिछले साल के दो-तीन प्रश्न थे जिनके जवाब थोड़े मध्यम हो गए. दूसरे पेपर में पेपर हाथ में आने के साथ ही मेरा मन खुश हो गया. हर सवाल का काफी अच्छा जवाब में लिख सकता था. और फिर अति आत्मविश्वास का शिकार तो बनना ही पड़ता है. साहित्य के पात्र में व्याख्या के प्रश्न सबसे ज्यादा अंक दिलाने वाले होते है और उन्हें सबसे पहले हल करना चाहिए. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न इतने ललचाने वाले थे कि मैंने उनसे शुरुआत कर दी. और, सवालों के जवाब ज्यादा जानने की वजह से लंबे होते चले गए. नतीजा यह हुआ कि व्याख्या के लिए मेरे पास काफी कम समय बचा. जानते हुए भी गद्य खंड की व्याख्या काफी संक्षेप में लिखी और पद्य खण्डों की व्याख्या भी अपनी संतुष्टि के हिसाब से नहीं लिखी. हिंदी में पहले पेपर में मेरे १६७ और दूसरे पेपर में १६६ नंबर आये. दूसरे पेपर में अगर मैंने व्याख्या पहले लिखी होती तो कम-से-कम १०-१५ नंबर ज्यादा आने की सम्भावना थी. वाकई, एक्साम हॉल की आपकी रणनीति की छोटी-से-छोटी चूक आपके लिए काफी भारी पड़ सकती है.

राजनीति विज्ञान की परीक्षा देशव्यापी हड़ताल की वजह से एक महीने के लिए बढ़ गयी. लेकिन इस समय का मैंने सही सदुपयोग नहीं किया. राजनीति सिद्धांत मेरी कमजोर कड़ी था क्यूंकि यह हिस्सा मुझे थोडा बोर करता था. इस समय को मुझे रिविजन में लगाना चाहिए था पर मैं बाकी हिस्सों पर लगा रहा. सो, राजनीति विज्ञान का दूसरा पेपर तो अच्छा गया पर पहले पेपर में मेरे पास दो दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों में एक को लिखने का आप्शन था –एक था कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत और दूसरा था कि “मैकियावेली की थियोरी संकीर्णत: काल बद्ध और स्थानबद्ध है. पहले सवाल में मुझे सप्तांग सिद्धांत में बस ५ ही याद आ रहे थे, दूसरा सवाल बहुत ज्यादा पकड़ में नही था. १२ मिनटों का समय बचा था और मैंने एक दूसरे सवाल को लिखने का फैसला लिया. यह एक गलत फैसला था, सप्तांग सिद्धांत वाले जवाब में मैं ६० अंकों में कम से कम २५-३० अंक ला पता पर मैकियावेली वाला सवाल का मैंने जो जवाब लिखा उसमे मैंने खुद को बस १३ अंक दिए थे. इस पत्र में मुझे बस १३२ अंक प्राप्त हुए.

खैर, मुख्य परीक्षा देने के बाद मैंने अपन स्व-मूल्यांकन किया और मैं पूरी तरह आश्वस्त था कि साक्षात्कार के लिए मेरा बुलावा जरुर आएगा. मैं अपनी ड्यूटी के साथ उसकी तैयारियों में लगा हुआ था. मैंने एक नोट बुक में अपने बायो-डाटा के सारे विवरणों के बारे में जरुरी जानकारी जुटायी. साथ ही सारे संभावित प्रश्न तैयार कर उनके उत्तरों का अभ्यास किया.

मुख्य परीक्षा के रिजल्ट के बाद मैंने और रविकांत ने आपस में मौक इंटरव्यू की खूब प्रैक्टिस की और इसमें रेलवे के सहकर्मियों का भी काफी सहयोग मिला. अब तक हमारी सफलता के सफर को देख कर वे भी काफी उत्साहित थे और उनकी शुभकामनाएँ हमारे साथ थी. साक्षात्कार के १०-१२ दिन पहले हम दोनों दिल्ली आ गए और फिर मस्ती के साथ साथियों के साथ थोड़ी-बहुत तैयारी में लगे. अभ्यास के लिए दो कोचिंग संस्थाओं में ५०० रूपये देकर दो मौक इंटरव्यू भी किये. हालाँकि बाद में जब इन संस्थाओं ने हमारी सफलता को अपना बताने की कोशिश की तो उनके ऊपर काफी गुस्सा आया. हाँ, इस बात ने दिल्ली की कोचिंग संस्थाओं का असली चेहरा दिखा दिया कि इनके पास चरित्र नाम की चीज काफी कम है.

साक्षात्कार का संक्षिप्त विवरण मैंने अपनी पिछली पोस्ट में दिया है. अपने साक्षात्कार से मैं पूरी तरह संतुष्ट था और अपने मूल्यांकन के हिसाब से मैं आश्वस्त था कि सफलता मुझे मिलकर रहेगी. एक बात मैं अपने स्व-मूल्यांकन के बारे में गर्व से कह सकता हूँ कि मैंने अपने को ११२४ मार्क्स दिए थे और मेरी अंक तालिका में आये अंक ११२९ थे.

हाँ, तो जब १६ मई २००८ को पता चला कि रिजल्ट आज आने की सम्भावना है तो फिर पूरे दिन रिजल्ट का आतुर इंतजार था. खैर, शाम में ८ बजे के आस-पास जब ये पता चला कि रिजल्ट आया है और मेरा ४५ और रविकांत का ७७ वाँ स्थान है तो फिर खुशी का ठिकाना न रहा. फिर तो घर-परिवार के लोगों और अपनों-बेगानों की शुभकामनाओं का लंबा सिलसिला शुरू हुआ.

वाकई. ये मेरी अकेली जीत नही थी. जीत कभी भी अकेले कि नहीं होती, जीत हमेशा सामूहिक होती है. मेरी जीत में न जाने कितने लोगों की जीत शामिल थी. मेरे माँ-बाबूजी, मेरे गुरूजी, मेरे भैया-भाभी, मेरे परिवारवाले, मेरे दोस्त, मेरे शुभचिंतक-ये सब मेरे साथ जीते हैं और उनके चेहरे पर चमकती खुशी ही मुझे सबसे ज्यादा आनंद देती है.
अपने पहले प्रयास में पाई इस सफलता में कई मिथक ध्वस्त हुए थे –एक तो मेरी शिक्षा किसी नामी-गिरामी संस्थान से नही थी, यहाँ तक कि अपनी स्नातक की डिग्री मैंने पत्राचार माध्यम से इग्नू से ली, यह सफलता बिना किसी कोचिंग संस्थान की वैशाखियों के सहारे थी, साथ ही यह सफलता मैंने दिल्ली या किसी बारे शहर में सुख-सुविधाओं के बीच रहकर नही पाई थी, वरन मैं कोलकाता के एक सुदूर पिछड़े जिले में रेलवे की श्रमसाध्य नौकरी के साथ अपनी तैयारी कर रहा था जहां हिंदी माध्यम की किताबें तो दूर, पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी काफी पापड़ बेलने पड़े थे. बस, मन में एक जूनून था, एक लगन थी और था कुछ हट के करने का जज्बा.

हमारी सफलता के अनूठेपन ने मीडिया की सुर्खिया भी खूब बटोरी. हिंदी,बांग्ला और अंग्रेजी के तमाम समाचार पत्रों ने पहले पन्ने पर केशवेंद्र और रविकांत की जोड़ी की सफलता की खबरे छापी. NDTV और बांग्ला समाचार चैनलों में हमारी सफलता की कहानी आयी. सहारा समय में हम दोनों का लाइव साक्षात्कार आया. इग्नू के तरफ से दिल्ली में बुला कर हमें सम्मानित किया गया. सबसे बड़ी बात की इस सफलता ने उन सारे युवाओं को प्रेरणा दी जो नौकरी की बाध्यताओं या अपने परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत हार रहे थे. इस सफलता की सारी शुभकामनाओं में सबसे मार्मिक जो शुभकामना लगी, उसे आप लोगों के सामने पेश कर रहा हूँ-
यह पत्र था दक्षिण पूर्व रेलवे के आद्रा मंडल में संथाल्दीह स्टेशन पर मुख्य बुकिंग पर्यवेक्षक मार्टिन जॉन की जो हिंदी के अच्छे लेखक भी है. उनकी ३१-५-२००८ की लिखी चिठ्ठी आप लोगों के सामने है-
प्रियवरद्वय,
केशवेंद्र और रविकान्त,
सस्नेहभिवादन,

सिविल सेवा परीक्षा में तुम दोनों का ससम्मानित स्थान में चयन होने की खबर निश्चित रूप से भारतीय रेल के वाणिज्य संस्थान को गौरवान्वित करने वाली खबर है ...अपने शैक्षणिक काल और रेल सेवा के शुरुआती दौर में हम जैसे महत्वाकांक्षी और स्वप्नदर्शी रेलकर्मी तुम दोनों की बुलंद कामयाबी को अपने सपनों को ताबीर में तब्दील होने जैसे अहसास से भरापूरा महसूस करने लगे हैं.
वाकई तुम दोनों मिसाल हो कुछ कर दिखाने के हौसले से लैस नवागत रेलकर्मियों के लिए.
हाशिये से सुर्ख़ियों में आने बधाइयों, तारीफों, शुभकामनाओं की रेलमपेल और ‘अनियंत्रित भीड़’ में तहे दिल से निकली हमारी बधाइयों और सद्कामनाओं को भी थोड़ी सी जगह जरुर देना.

तुम दोनों की कामयाबी पर अपनी ताजा पंक्तियाँ –

वक्त के सीने में एक निशां बनाया है तुमने
तूफां में भी इक चराग जलाया है तुमने
गुलशन है तो गुल खिलाना क्या मुश्किल,
पत्थर पे भी इक फूल खिलाया है तुमने,
किनारे खड़े समंदर के सोचते सब हैं
उतर के गहरे मोती ढूंढ लाया है तुमने.

आगे भी जंग जीतने और फ़तह हासिल करने की दुआ के साथ,
तुम दोनों का,
मार्टिन जॉन.

तो साथियों, ये थी मेरी और रविकांत की कहानी, बस आपलोगों के सपनों और संघर्ष के लिए यही कहूँगा कि-


सपने सच होते है, होंगे सच तुम्हारे भी, यक़ीनन यारों
बस उनकी सच्चाई में यकीन जरा दिल से किया करो.
30-8-2011 & 04-09-2011









बुधवार, 31 मार्च 2010

UPSC Interview--HOBBIES

Dear Friends,

In this post, I would like to discuss the importance of hobbies for your interview. Let me tell you one thing, that sometimes your hobby section may be deciding factor of your interview.

For example, I am telling you about my interview experience in 2008. I had given 7 hobbies in my interview form namely, Diary writing, Poetry, Meditation, Inspiring others, Social Service, Enjoying  company of Nature and participating in debates. My interview begin with my Hobby and the last question was also on hobby. Questions on hobby formed one third of my interview. And, for my Interview, I got 210 marks, quite good for a first timer.

Parveen Talha was chairperson. She started with the question that what you write in your diary? I gave a small but complete reply. Then she asked me to name one famous diary. Initially, I started with diaries of Hindi Writers but she interrupted me and said that tell me about  any world famous diary. Suddenly, I remembered Anne Frank's Diary and I named it. I think that madom was also thinking about the same book. So, there was broad simle on her face. Then she asked me 4-5 questions regarding this Diary like who wrote it, where, how etc. Fortunately, I had read this Book in 2006 so I gave satisfactory answers to those questions.

Then madom turned to my next Hobby and told me that You write poems. Recite 4 lines of your poem. I boldly said that I would like to share my full poem because in 4 lines, the board would not be able to make out any sense.  Madom gave her permission with smile. Then I recited one of my Hindi Poem "Majboori ka Naam Mahatma Gandhi". I am giving this poem below-

मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी




पता नही कब से मज़बूरी का

नाम महात्मा गाँधी है

हर मुश्किल में हर बेबस की

ढाल महात्मा गाँधी है.



अक्सर इस जुमले को सुनते-

सुनते मन में आता है -

गाँधी जी का मज़बूरी से

ऐसा भी क्या नाता है?



ऑफिस की दीवारों पर

गाँधी की फोटो टंगी-टंगी

बाबुओं का घूस मांगना

देखा करती घडी- घडी.



चौराहों- मैदानों में

बापू की प्रतिमा खड़ी- खड़ी

नेताओं के झूठे वादे

सुनती विवश हो घडी-घडी .



गाँधी का चरखा, गाँधी की

खड़ी आज अतीत हुई,

गाँधी के घर में ही देखो

गोडसे की जीत हुई.



गाँधी जी की हिन्दुस्तानी

पड़ी आज भी कोने में,

गाँधी के प्यारे गांवों में

कमी न आयी रोने में.



नोटों पर छप, छुपकर गाँधी

सब कुछ देखा करते हैं

हर कुकर्म का, अपराधों का

मन में लेखा करते हैं.



गाँधी भारत का बापू था,

इंडिया में उसका काम नही,

मज़बूरी के सिवा यहाँ होठों पर

गाँधी नाम नही.



इतना कुछ गुन-कह-सुन मैंने

बात गांठ यह बंधी है-

गाँधी होने की मज़बूरी का ही

नाम महात्मा गाँधी है.

When I was reciting this poem, there was pin-drop-silence in the Interview room and all members were listening to it very sincerely. When I finished this Poem, Parveen Talha  took one link from this poem and came to corruption in government offices. She asked me that you know the reality, even then why you want to become part of this system. I replied with smile that I want to clean the system. Then she asked-how? I gave a detailed answer for that.

After that, there were some questions regarding the District where I was working, about International relations(My one optional was Political science) about Development scenario in India, about Indian Freedom struggle etc.  In the end, final question was on Hobby again. One board member asked that you have written Social Service as your hobby. Could you explain that how social service is your hobby?
I was associated with one Grass-root NGO named Titli in Birbhoom, W.B. This NGO works for educating Child labours and children of sex workers. I told them about my experiences in working with this NGO and they were very moved by this. Again one member asked that How will you continue this hobby once you come into this service. I told them if a administrator takes care of efficient and honest implementation of all the Government welfare projects, that will be the greatest social service. They were fully satisfied and agree.

I would like to share experience of one of my batchmates who socred highest marks in interview in 2008 IAS examination, Lalita Lakshmi. She is a gifted singer and has good knowledge of classical music. In her previous interviews, she gave classical music as her hobby. So, normally board went for questions regarding classical music, its masters etc. Then, she gave SINGING as her hobby. Chairperson was Balaguruswami. They asked her to sing. She sang one Song written by great Tamil Poet Subhramanyam Bharti in Tamil. She scored 249 and her hobby played its part in it.

So, I suggest all candidates that prepare about the hobbies you have written in interview forms very sincerely. You should be clear about that what is this hobby, if any other famous person has this hobby, how you will continue your hobby in future, how your hobby benefitting you. Prepare all possible questions regarding your hobby and their possible answers. Remember that when u r talking about your hobby, there should be happiness and relaxation on your face.

If you have any specific doubts, let me know. I would try my best to give meaningful suggestions.
Best of Luck.

मंगलवार, 9 मार्च 2010

UPSC Civil Services INTERVIEW

Friends, Results for Mains examination has been declared by UPSC and I congratulate those who got the golden chance to appear in Interview. I would like to give some suggestions form my side based on my experiences-

1.Formalities- You have to take certificates in regard of your Educational qualification, Caste Certificate(if u belong to SC/ST or OBC community) and No Objection certificate from your employer if u r already working. Before interview, your certificate will be checked by upsc officials. Read carefully all instructions in this regard in interview form.

2.Dress- Your dress should be decent and  formal. Use dark colour pant(preferrably black and blue) with plain or simple sriped shirts. Tie is optional but if u r comfortable with it then use it. It adds to your look. Use formal shoes and belt. The most important thing is that you should be comfortable and confident about your dress. Use your dress at least 2-3 times to be fully comfortable with it.

3.Salutation- 
Either use Good Morning/afternoon/Evening Sirs/Madom or in Indian Tradition Use Namsakar/Namate with hand gesture. Your eye and face movement should be towards all the board members in one go. Greeting chairman and each board member separately is not needed.

4.Biodata-   Normally, candidates remain in doubt that they need bio-data and their certificates with them in interview room or not. That is not required. Board will have your bio-data based on details filled by u at the time of Mains examination. So, take your certificate folder with you but leave that outside interview room with gateman their.

5.Preparation-
list out all the possible questions on the following area-
-Your Optional subjects
-Current affairs and important topics, Indian Economics, Important public debates going on at present in India and abroad
-HOBBIES given by you in the mains form, their importance and significance in your life, any important development related to that hobby  (I'll discuss this topic in detail in my next post because somtimes your hobby may be most important segment or your interview)
-Your home state, home district and all related and important matters
-If you are working, then important things about your job
Also acquire some knowledge about your Work state and District.
-Regarding extra-curricular activities if You have mentioned them in Your mains Form
-Your Inspiration for joining this service
-Service preference given by you
-Cadre preference given by you
-Hypothetical questions Suppose if you are holding this post, what will you do for this problem...

Prepare all possible questions on these topic and then conduct mock interview sessions with your friends, relatives, teachers, good institutions with all seriousness. Always remember UPSC's motto of Interview-

"The candidate will be interviewed by a Board who will have before them a record of his career. He will be asked questions on matters of general interest. The object of the interview is to assess the personal suitability of the candidate for a career in public service by a Board of competent and unbiased observers. The test is intended to judge the mental calibre of a candidate. In broad terms this is really an assessment of not only his intellectual qualities but also social traits and his interst in current affairs. Some of the qualities to be judged are mental alertness, critical powers of assimilation, clear and logical exposition, balance of judgement, variety and depth of interest, ability for social cohesion and leadership, intellectual and moral integrity.







2. The technique of the interview is not that of a strict cross-examination but of a natural, though directed and purposive conversation which is intended to reveal the mental qualities of the candidate.






3. The interview test is not intended to be a test either of the specialised or general knowledge of the candidates which has been already tested through their written papers. Candidates are expected to have taken an intelligent interest not only in their special subjects of academic study but also in the events which are happening around them both within and outside their own state or country as well as in modern currents of thought and in new discoveries which should rouse the curiosity of well educated youth."
(From UPSC website http://www.upsc.gov.in/)

I'll come with specific guidance on some topics like hobbies, Hypothetical questions, using your sense of humour in a positive way, reading the mind of Interview board in coming days. I wish good luck to all the candidates who are going to appear for this year's interview.
With best wishes and Good Luck,
Yours,
Keshvendra

रविवार, 10 जनवरी 2010

सिविल सेवा -इतिहास वैकल्पिक विषय के लिए पुस्तक सूची

इतिहास विषय  अब तक के सिविल सेवा की परीक्षा में निरंतर एक लोकप्रिय विषय के तौर पर अभ्यर्थियों को सफलता दिलाता रहा है, इतिहास के लिए पुस्तकों की संक्षिप्त सूची मैं आपके सामने रख रहा हूँ-

 प्राचीन भारत
के.सी. श्रीवास्तव 
-झा एवं श्रीमाली
-IGNOU   BA बुक्स 

मध्यकालीन भारत-
-हरिश्चंद्र वर्मा-दोनों भाग- हिंदी माध्यम क्रियान्वयन निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय   या
-सतीश चंद्रा- दो भाग- जवाहर पब्लिशर्स दिल्ली

-इम्तियाज़ अहमद
-IGNOU BA बुक्स

आधुनिक भारत
आधुनिक भारत का इतिहास एक नवीन मूल्यांकन-  बी एल ग्रोवर एवं यशपाल - एस चाँद प्रकाशन
-आधुनिक भारत -संपादक- विपिन चन्द्र- अनामिका प्रकाशन, दिल्ली
-पलासी से विभाजन तक और उसके बाद- आधुनिक भारत का इतिहास- शेखर बंदोपाध्याय , अनुवाद- नरेश नदीम, ओरिएंट ब्लैकस्वान प्रकाशन
-IGNOU BA बुक्स
-

विश्व  इतिहास
-जैन एवं माथुर

-लालबहादुर वर्मा
-IGNOU BA बुक्स


गहन अध्ययन  के लिए (पुस्तकालय की सहायता से )
यहाँ पर दी हुई सारी पुस्तकों को पढना सिविल सेवा की तैयारी के हिसाब से अनिवार्य नहीं है | हाँ, अगर आपके पास की किसी पुस्तकालय में ये पुस्तकें उपलब्ध हैं तो उपर दिए गए पुस्तकों को पढने के बाद इन पुस्तकों को आप संक्षेप में पढ़ सिविल सेवा के हिसाब से जरुरी अंशों के नोट्स बना सकते हैं |


प्राचीन भारत की संस्कृति एवं सभ्यता- डी डी कौशाम्बी- अनुवादक गुनाकर मुले- ईशान प्रकाशन, दिल्ली
भारतीय लिपियों की कहानी - गुणाकर मुले- राजकमल प्रकाशन
भारत का इतिहास- रोमिला थापर- राजकमल प्रकाशन
प्राचीन भारत- डॉ रमेशचंद्र मजुमदार-मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन

मध्यकालीन भारत- विद्याधर महाजन- एस चाँद प्रकाशन


आधुनिक भारत का इतिहास-  संपादक- डॉ आर एल शुक्ल - हिंदी माध्यम क्रियान्वयन निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
आज का भारत- रजनी पामदत्त - अनुवादक- आनंदस्वरूप वर्मा- मैकमिलन प्रकाशन


किताबों की यह सूची मात्रा सांकेतिक है, मेरा मानना है की किताबों से आप कितना ग्रहण कर पा रहे हैं वो ज्यादा महत्वपूर्ण है. एक ही विषय पर कई सारी स्तरीय किताबें हो सकती हैं, एक बार पूरे पाठ्यक्रम को किसी एक किताब से समाप्त करने के बाद Question बैंक को देखते हुए आप खुद का आकलन कर सकते हैं और अपनी जरुरत के हिसाब से और किताबें ले सकते हैं. अगर आपके आस-पास कोई अच्छी library हो तो कुछ topics की तैयारी के लिए आप उसकी मदद ले सकते हैं. साथ ही, इतिहास विषय की तैयारी करते हुए कांसेप्ट को clear रखने पर पूरा ध्यान दे और थोड़ा अपनी कल्पनाशीलता की मदद लेकर उस युग को अपनी आँखों के आगे जीवंत करने का प्रयास kare. इससे तैयारी आपके लिए मजेदार हो उठेगी.
शुभकामनाओं के साथ,
केशवेन्द्र

नयी उर्जा और नयी सफलता से हो भरा नया साल

सिविल सेवा की तैयारियों में लगे सभी साथियों को मेरी तरफ से नव वर्ष की शुभकामनाएँ!
साथियों, मैं सोच रहा हूँ की इस साल मैं छोटे-छोटे पोस्ट के द्वारा आपके सामने आऊंगा, कार्य भार की वजह से मैं लम्बे पोस्ट लिखने का समय नही निकल पा रहा.
साथियों, आपमे से जो लोग वर्ष 2010 की प्राथमिक परीक्षा दे रहे हैं, उनके लिए ये काफी अहम् समय है जिसका सदुपयोग आपकी सफलता को निर्धारित करेगा. प्रारंभिक परीक्षा ज्यों-ज्यों पास आ रही है, चिंताएं उतनी बढती जाती है. पर मेरा सुझाव माने तो-"DON'T WORRY, BE HAPPY"

जैसा की upsc के Notification  से स्पष्ट है की तमाम अफवाहों के बाद इस साल परीक्षा के ढांचे में कोई बदलाव नही किया गया है, पर मैं सलाह दूंगा की प्रश्नों के ढांचे में पिछली साल की भी मुख्य परीक्षा में कुछ बदलाव हुए थे और इस साल भी आप को इसके लिए तैयार रहना चाहिए. प्राम्भिक परीक्षा में  किस भाग से कितने प्रश्न
पूछे जाये, इसमें upsc हर साल कुछ-ना-कुछ बदलाव कर रही है. उसके लिए आप पूरी तरह तैयार रहे.  

मेरी सलाह है की आप अपना पूरा ध्यान पाठ्यक्रम के ऊपर लगाइए, किसी किताब के ऊपर नही. आपको syllabus  तैयार करना है, किताबें नही, इस बात को हमेशा ध्यान रखे. कुछ अच्छे मॉडल प्रश्न पत्रों का अभ्यास करते हुए अपनी तैयारी के स्टार को परखते भी रहे. बार-बार revision द्वारा पढ़ी हुई चीजों को दिमाग में बनाये रखे. कुछ तथ्य याद करने भी परे तो उन्हें किसी image या रोचक बात के साथ जोड़ कर याद रखे, इससे वो आपकी याद में बना रहेगा.  
अभी के समय में अपने  स्वास्थ्य का पूरा  ख्याल रखते हुए और लगभग  6-8 घंटे  की सुकून भरी नींद लेते हुए अपनी तैयारी में जुटे रहे. अपने ऊपर विश्वास बनाये रखे कि आप इसमें सफल होंगे और इमानदार मेहनत करते हुए बाकी की चिंता उपरवाले पर छोड़ दीजिये . तनाव मुक्त होकर तैयारी करना ज्यादा बेहतर तरीका है.
सफलताओं की शुभकामनाओं के साथ,
आपका केशवेन्द्र

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

सिविल सेवा की तैयारी में कोचिंग संस्थाओं की भूमिका

सिविल सेवा की तैयारी में लगे अभ्यर्थियों के सामने ये बहुत बार सवाल उठता है की कोचिंग करे या न करे, करे तो किस कोचिंग में जाएँ? हर साल UPSC  के रिजल्ट के बाद पेपर-पत्रिकाओं  में कोचिंग संस्थाओं के बड़े -बड़े विज्ञापनों की टैग लाइन होती है-" सफलता का पर्याय, इस बार के सफल अभ्यर्थियों में आधे से ज्यादा हमारी कोचिंग से, टॉप 50 और टॉप 100  में हमारे इतने छात्र इत्यादि".  क्या वाकई ऐसा है, क्या कोचिंग सफलता दिलाने में इतने अहम् हैं, क्या कोचिंग के बिना सफलता प्राप्त नही की जा सकती, क्या सारे TOPPERS  जिनके बारे में कोचिंग संस्थान दावा करते हैं, उन्होंने उनके यहाँ से कोचिंग की होती है?

चलिए मैं अपने और अपने साथी रविकांत के उदहारण से अपनी बात को आगे बढ़ाता हूँ. हम दोनों ने सिविल सेवा की 2007 -08  की परीक्षा की तैयारी रेलवे में जॉब करते हुए साथ-साथ की थी. हमारे मन में सीधी-सीधी बात थी की हमें किसी कोचिंग संस्थान की वैशाखी की जरुरत नही और हम अपने बल-बूते तैयारी करेंगे. दूसरी बात यह भी की नौकरी की व्यस्तताओं के कारण न हमारे पास कोचिंग करने का समय था और न ही हम अपने पैसे कोचिंग में बर्बाद करना चाहते थे. सो, एक अहिन्दीभाषी राज्य पच्छिम बंगाल के सुदूर जिलों बर्धमान और बीरभूम में रेलवे में बुकिंग क्लर्क की नौकरी करते हुए हमने हिंदी माध्यम से सिविल सेवा की तैयारी की. पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता का यह आलम था की मैंने लगभग सारी पत्रिकाएँ डाक से मंगाई होगी या फिर किताबों के लिए महीने-दो महीने में एक बार पटना जा कर किताबें ली. इन सब के बावजूद मैंने अपने पहले प्रयास में 45  वाँ और रविकांत ने अपने दुसरे प्रयास में 77 वाँ स्थान पाया. Interview के पहले हम लोगों ने दिल्ली में चाणक्य और Discovery संस्थान से एक-एक mock interview किया था. और रिजल्ट के बाद  की कहानी सुनिए, चाणक्य कोचिंग संस्थान ने तो शालीनता बरतते हुए अपनी पत्रिका में स्पष्ट लिखा की हम लोगों ने उनका साक्षात्कार का course किया पर discovery ने बेशर्मी की सारी हदों को पार करते हुए THE Hindu  पेपर और सिविल सेवा की सारी पत्रिकाओं में मेरी और रविकांत की फोटो तक छापते हुए हमें अपना छात्र घोषित किया. ट्रेनिंग की व्यस्तताओं के कारण मैं इस सम्बन्ध में कुछ नही कर पाया नही तो मैं उनके विरुद्ध क़ानूनी कदम उठाने की सोच रहा था. सो, 500 रूपये देकर आधे घंटे का mock interview करने से जब कोई कोचिंग उस बन्दे की सफलता को अपनी कोचिंग के प्रचार में भुनाने का साहस कर सकता है तो फिर आप इन विज्ञापनों की विश्वसनीयता को खुद जाँच सकते हैं.

आप खुद देख सकते हैं की हर साल के रिजल्ट के बाद टॉप 50 -100 की सूची में आने वाले अधिकांश छात्रों की सफलता के दावे आपको के लिए कम-से-कम 10 -15 कोचिंग संस्थान सामने आते हैं. होता है की अपनी तैयारी के क्रम में लड़के भटकते हुए कई कोचिंग्स को try करते हैं, सो अगर आप एक बार किसी कोचिंग में गए  और आपने अपनी फोटो के साथ उसका फॉर्म भर दिया तो फिर भले ही आपने एक दिन के बाद ही उस कोचिंग को छोड़ दिया हो, आपकी सफलता को भुनाने में वो कोचिंग पीछे नही रहेगा. कोचिंग कोई सेवा नही, शुद्ध व्यवसाय है मेरे भाई और ये व्यवसाय अभी करोडो का है. कोचिंग की फ़ीस को देखो तो 50000 से लेकर एक लाख या उससे भी ज्यादा चार्ज करने वाले कोचिंग आपको दिख जायेंगे.

खैर, मूल प्रश्न पर वापस लौटे, 'क्या कोचिंग किसी को आईएस बना सकते हैं?' मेरा मानना है- नहीं. जब तक आपके अन्दर वो जज्बा और जूनून नही होगा तब तक कुछ नही हो सकता. और अगर कोई बन्दा आपने भाग्य के सहारे पूरी तरह कोचिंग के सहारे आईएस बन भी जाता है तो वो आपने करियर में क्या करेगा, राम जाने. आइयें, लगे हाथो कोचिंग के लाभ और घटे पर एक निष्पक्ष विश्लेषण कर ले-

कोचिंग के लाभ-
१. अगर विज्ञान विषयों का कोई छात्र किसी बिलकुल नए मानविकी विषय को अपनाता है तो प्राम्भ में कोचिंग उसे थोड़ी मदद पहुंचा सकते हैं.
२. अगर किसी छात्र ने परीक्षा के बारे में जानने का अपना बेसिक होम वर्क पूरा नही किया है तो यह जानकारी उसे कोचिंग से मिल सकती है.
३. अगर छात्र किसी अन्तःप्रेरणा से नही बल्कि घर-समाज के दवाब में इस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो कोचिंग इस परीक्षा के प्रति रुझान बनाने में उनकी मदद कर सकते हैं.
४. कोचिंग आपको एक ग्रुप से मिलाते हैं जो आपकी तरह ही आशंकाओं-आशाओं-निराशाओं के झूले में झूलता इस परीक्षा की तैयारी में लगा है.
५. कोचिंग कुछ रोमांटिक अभ्यर्थियों को लव stories बनाने के मौके भी देते हैं.

कोचिंग के नुक्सान -
१. कोचिंग आपके अभिभावकों की जेब पर एक अच्छा-खासा बोझ डालते हैं. कोचिंग ज्यादातर दिल्ली या बड़े शरों में केन्द्रित हैं सो छात्र दूर-दराज से दिल्ली में आकर छोटे-छोटे कमरों में अस्वास्थ्यकर जीवन बिताते हुए चिंता-तनाव-अवसाद की दुनिया में जीते हुए इसकी तैयारी करते हैं.
२. कोचिंग आपको शोर्ट-कट की आदत लगाते हैं, और याद रखे की यदि जिन्दगी में कुछ बड़ा करना है तो शोर्ट-कट से बचते हुए आपने रस्ते खुद तैयार करने चाहिए.
३. UPSC अपनी तरफ से कोचिंग को बढ़ावा न देने के लिए हर संभव कदम उठती है. हर साल प्रश्नपत्रों की बदलती प्रकृति  से आप देख सकते हैं की कोई भी कोचिंग इस बात का दावा नही कर सकती की क्या पूछ जा सकता है.
४. कोचिंग का एक सबसे बार घाटा है की  एक जैसे नोट्स से सैकड़ो लड़के जब परीक्षा में लिखेंगे तो अनुभवी examinor उनके नंबर काटने में कोई हिचकिचाहट नही करते हैं.
५. कोचिंग आपको स्तरीय किताबों की जगह नोट्स पढने की आदत लगाते हैं, एक्साम की बदलती प्रकृति के मद्देनजर यह बात आपकी सफलता के लिए खतरनाक हो सकती है.



अगर कोचिंग करनी ही पर जाये तो-
१. कोचिंग के नोट्स पे पूरी तरह depend नही करे, उनको सहायक सामग्री की तरह इस्तेमाल करते हुए आपने विशिष्ट नोट्स तैयार करे.
२. अपनी रचनात्मकता और विशिष्टता को कोचिंग की भीड़ में नही खोने दे.

दोस्तों, मेरा सन्देश यही है की आप खुद पर भरोसा करे, Question Bank , Syllabus , library  और स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं तथा किताबों को आपने अध्ययन की आधारशिला बनाये. कोचिंग करना, न करना आपकी पसंद, जरुरत और उनके बारे में आपकी राय पर निर्भर करता है. खुद पर और स्वाध्याय पर भरोसा करे. हमेशा याद रखे की-
                  गगन को झुका के धरा के चरणों पर धर सकता है
                  इन्सान ठान ले तो फिर क्या नही कर सकता है.

सोमवार, 21 सितंबर 2009

सिविल सेवा की तैयारी के लिए उपयोगी पत्र-पत्रिकाएँ

सिविल सेवा की तैयारी में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान बड़ा ही अहम होता है। सामान्य अध्ययन पत्र की आधी तैयारी का दारोमदार इन्ही के ऊपर होता है। इसके अलावा बहुत सारे ऐच्छिक विषयों यथा राजनीतिविज्ञान, लोकप्रशासन, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र में भी पत्र-पत्रिकाएँ आपको अद्यतन बने रहने में मदद करती हैं। निबंध पत्र में अच्छे अंक लाना पूरी तरह आपके द्वारा अच्छे पत्र-पत्रिकाओं के अध्ययन पर निर्भर है। साक्षात्कार में भी ये आपको काफी मदद पहुंचाते हैं।


तो साथियों, मैं सिविल सेवा की तैयारी में उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं की एक संक्षिप्त सूची आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ-


समाचार पत्र:-
The Hindu
दैनिक जागरण/हिंदुस्तान/दैनिक भास्कर/प्रभात खबर



पत्रिकाएं:- (कोई दो)

प्रतियोगिता दर्पण

चाणक्या सिविल सर्विसेज टूडे

सिविल सर्विसेज क्रोनिकल

CSR (हिन्दी या अंग्रेजी)

सिविल सर्विसेज टाईम्स

अरिहंत समसामयिकी महासागर



अन्य पत्रिकाएं:- विज्ञान प्रगति

योजना

कुरुक्षेत्र

अहा, जिंदगी! (निबंध एवं सकारात्मक चिंतन हेतु)

Frontline (ऐच्छिक)/इंडिया टुडे/आउटलुक के विशिष्ट अंक



सन्दर्भ पत्रिकाएं:- मनोरमा ईयर बुक

भारत (ईयर बुक)



Question Bank (UPSC: 1988-2008) with answer

प्रारम्भिक:- अरिहंत

मुख्य:- सिविल सर्विसेज क्रोनिकल