यूपीएससी सिविल सेवा
की प्रारंभिक परीक्षा में एक अहम् हिस्सा अब निर्णय क्षमता को जांचने वाले
प्रश्नों का है |
ये
ऐसे प्रश्न हैं जो आपको प्रशासनिक निर्णय लेने की कसौटी पर कसते हैं |
ये इस बात की जांच करते हैं कि कठिन
निर्णय लेने की दुविधा पूर्ण घडी में आप सही निर्णय ले पाते हैं या नहीं?
निर्णय लेना या
डिसीजन मेकिंग काफी सब्जेक्टिव होता है |
किसी भी निर्णय को लेने के पीछे कई कारक तत्त्व होते हैं और
किसी भी व्यक्ति की परवरिश और परिवेश उसके निर्णय लेने की क्षमता को काफी हद तक
प्रभावित करते हैं |
दूसरी
बात कि कोई भी निर्णय कभी भी परफेक्ट नहीं हो सकता |
हर निर्णय के अपने नफे-नुकसान होते हैं |
आपको तो बस ये देखना है कि तत्काल और
लम्बे समय में जनता का सबसे ज्यादा भला किस निर्णय से होगा |
यूपीएससी आपसे आशा करती है कि आप दुविधा और
चुनौती की स्थितियों में सबसे उपयुक्त निर्णय लें |
वर्तमान में सी सैट
में ८० प्रश्नों में ७-८ प्रश्न निर्णय क्षमता को जांचने के लिए पूछे जा रहे हैं |
इनका २०० अंकों के पत्र में १७.५ -२० अंक का योगदान है |
इनके लिए कोई निगेटिव मार्किंग नहीं है |
दिए गए चार विकल्पों में एक से ज्यादा
भी सही उत्तर हो सकते हैं |
यूपीएससी
ने २०१२ की परीक्षा से उत्तर अपने वेबसाइट पर डालने शुरू किये हैं जो कि काफी
अच्छी बात है | सो, इस खंड में बेहतर प्रदर्शन आपके पीटी पास करने की संभावना को
बढ़ा सकता है |
आइये, अब वर्ष २०१२
में इस खंड से आये प्रश्नों का विश्लेषण करे-
CSAT – 2012 QUESTION PAPER SERIES A
*
७४. अपने अधीनस्थ द्वारा तैयार किये गए
प्रतिवेदन के सम्बन्ध में, जिसे अतिशीघ्र प्रस्तुत किया जाना है, आपके अभिमत भिन्न
हैं | आपका अधीनस्थ प्रतिवेदन में दी गयी सूचना को सही ठहरा रहा है | आप क्या
करेंगे?
क) अपने अधीनस्थ से
स्वीकार कराएँगे कि वह गलत है |
ख) उसको परिणामों पर
पुनर्विचार हेतु कहेंगे |
ग) प्रतिवेदन में आप
स्वयं संशोधन कर लेंगे |
घ) अधीनस्थ को कहेंगे
कि अपनी गलती को उचित न ठहराए |
यूपीएससी की उत्तर
कुंजी के अनुसार इसका सही उत्तर क) एवं ग) है |
विश्लेषण- सही
विकल्पों की संगतता का आकलन-
क)यहाँ पर विचार करने
के मुद्दे हैं कि रिपोर्ट को अतिशीघ्र प्रस्तुत किया जाना है | अतः समय बहुत ही
महत्तवपूर्ण घटक है | इसीलिए पहला विकल्प बनता है कि आप अपने अधीनस्थ को समझायेंगे कि रिपोर्ट में
ये गलतियाँ हैं और यदि वह सहमत है तो उसे रिपोर्ट को बदल कर अतिशीघ्र लाने के लिए
कहेंगे |
ग)दूसरा विकल्प है कि
समय को ध्यान में रखते हुए आप खुद ही रिपोर्ट में आवश्यक संसोधन कर लगे | आप बॉस
हैं और आपके अधीनस्थ की रिपोर्ट में संशोधन करने का आपको पूरा-पूरा प्रशासनिक
अधिकार है |
गलत विकल्पों की
अनुपयुक्तता का विश्लेषण-
विकल्प ख) की समस्या
है कि समय की कमी को ध्यान में रखते हुए पुनर्विचार सही विकल्प नहीं है | अगर
निर्णय काफी जटिल है और समय की कोई पाबन्दी नहीं, उस परिस्थिति में ये सही विकल्प
हो सकता है |
विकल्प घ) तानाशाही
रवैये को दर्शाता है | आपके अधीनस्थ ने रिपोर्ट तैयार की, आप सहमत नहीं है और आपकी
असहमति तार्किक है तो आप उसका मार्गदर्शन कर उसे रिपोर्ट बदलने के लिए कह सकते
हैं| मगर, अगर वह अपने दृष्टिकोण पर अडिग है और उसके पास अपने तर्क है जो उसकी
दृष्टि में सही है तो बेहतर है कि समय की कमी को ध्यान में रखते हुए आप उस रिपोर्ट
को खुद ही संसोधित कर ले |
इस प्रश्न का जवाब
देते हुए इससे मिलती-जुलती निर्णय घटनाओं पर नजर डाल ले-
*कैग की २ जी घोटाले
की रिपोर्ट पर उनके अधीनस्थ ऑडिटर सिंह जी के सवाल- कि नुकसान के आकलन की विधि पर उनकी आपत्तियों को नजरंदाज किया गया | भई,
रिपोर्ट विनोद राय को देनी है, रिपोर्ट की जवाबदेही उनकी है, तो फिर रिपोर्ट तैयार
करने में दृष्टिकोण तो उन्हीं का चलेगा ना |
*हलके-फुल्के मिजाज
में इक और उदाहरण दे देता हूँ- अगर आप किसी सरकारी मंत्रालय में संयुक्त सचिव के
पद पर कार्यरत हो और सीबीआई आपके मंत्रालय के खिलाफ जांच कर रही हो जिसकी रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में जानी हो; उस परिस्थिति में सीबीआई को अपना अधीनस्थ समझने की
गलती बिलकुल ना करे |
७५.इक प्रतिष्टित पुरस्कार के लिए जिसका निर्धारण मौखिक
प्रस्तुतिकरण के आधार पर होना है, आप अपने ही बैच मेट के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे
हैं | प्रत्येक प्रस्तुतीकरण के लिए दस मिनट का समय है | आपको प्रस्तुतीकरण को ठीक
समय से समाप्त करने को कहा है जबकि आपके मित्र को तय समय से ज्यादा समय दिया जाता
है | आप क्या करेंगे?
क) इस भेदभाव के लिए
अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराएँगे |
ख) समिति द्वारा दिए गए
किसी भी औचित्य को नहीं सुनेंगे |
ग) अपना नाम प्रतियोगिता से
वापस लेने की मांग करेंगे |
घ) विरोध करते हुए उस स्थान
को छोड़ देंगे |
यूपीएससी की उत्तर कुंजी के
अनुसार इसका सही उत्तर क) एवं घ) है |
यहाँ समस्या ज्यादा जटिल
नहीं है | ऐसी परिस्थिति अगर स्कूल में भी किसी भाषण या वाद-विवाद प्रतियोगिता के
दौरान आने पर यही सबसे सार्थक विकल्प हैं.
विकल्प ख) एवं ग) खोखले
विकल्प हैं | आपके निर्णय का प्रभाव होना चाहिये | विकल्प क) एवं घ) में आपके
निर्णय से हलचल मचना स्वाभाविक है क्यूंकि प्रश्न के हिसाब से यह इक प्रतिष्टित
पुरस्कार है |
सीढ़ी सी बात है कि अगर आप
अपने खिलाफ हो रहे अन्याय और भेदभाव का प्रतिकार नहीं कर सकते तो जनता को कहाँ से
न्याय दिला पायेंगे |
७६. आप इक समयबद्ध परियोजना
पर कार्य कर रहे हैं | परियोजना की पुनरीक्षण बैठक के दौरान आप यह पाते हैं कि
आपके समूह के सदस्यों के द्वारा सहयोग में कमी के कारण परियोजना विलंबित हो सकती
है | आप क्या करेंगे ?
क) अपने समूह के सदस्यों को
उनके असहयोग के लिए चेतावनी देंगे |
ख) असहयोग के कारणों की
जांच-पड़ताल करेंगे |
ग) समूह के सदस्यों को
प्रतिस्थापित करने की मांग करेंगे |
घ) कारण प्रस्तुत करते हुए
समय सीमा बढ़ाने की मांग करेंगे |
यूपीएससी की उत्तर कुंजी के
अनुसार सही विकल्प क) एवं ख) हैं |
इस प्रश्न का विश्लेषण करे
तो हम पाते हैं कि समयबद्ध परियोजना होने के कारण विकल्प ग) एवं घ) अनुपयुक्त हैं
| विकल्प ख ) पर अमल करने के बाद अगर लगे कि असहयोग की कोई तार्किक वजह नहीं हैं
तो आपके पास विकल्प क) के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचता |
७७. आप एक राज्य क्रीड़ा समिति के अध्यक्ष हैं | आपको इक
शिकायत मिली है और बाद में यह पाया गया है कि कनिष्ठ आयु वर्ग के किसी पदक जीतने
वाले एथलिट की आयु, आयु के दिए गए मानदंड से पांच दिन अधिक हो गयी है | आप क्या
करेंगे?
क) छान-बीन समिति से
स्पष्टीकरण देने को कहेंगे |
ख) एथलिट से पदक वापस करने
को कहेंगे |
ग) एथलिट को अपनी आयु की
घोषणा करते हुए न्यायलय से शपथ पत्र लाने को कहेंगे |
घ) क्रीड़ा समिति के सदस्यों
से उनकी राय मांगेंगे |
इसका सही उत्तर क ) एवं घ )
है |
यहाँ प्रश्न से ऐसा प्रतीत
होता है कि शिकायत मिलने के बाद जांच पूरी हो चुकी है | अतः स्पष्टीकरण एवं क्रीड़ा
समिति के सदस्यों की राय इक औपचारिकता भर है जिससे ऐसा प्रतीत नहीं हो कि अध्यक्ष
अकेले ही महत्तवपूर्ण निर्णय ले रहे है | ख ) और ग) विकल्प ही इस मामले की तार्किक
परिणति होंगे | पर सहभागी निर्णय को बढ़ावा देने के लिए तथा निर्णय निर्दोष हो,
इसके लिए ही विकल्प क) एवं घ) को सही
बताया गया है |
दूसरी बात कि ऐसे निर्णयों
में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन अनिवार्य है | इस सिद्धांत के अनुसार किसी
भी व्यक्ति को कोई दंड देने के पहले या उसके हितों के विपरीत निर्णय लेने के पहले
उसे अपनी बात रखने का अवसर अवश्य मिलना चाहिये |
७८. आप एक प्राथमिकता परियोजना पर कार्य कर रहे हैं और सभी
अंतिम तिथियों को पूरी तरह निभा
रहे हैं और इसी आधार पर
परियोजना के दौरान अवकाश लेने की योजना बना रहे हैं | आपका आसन्न अधिकारी परियोजना
की अविलम्बता बताकर आपका अवकाश अनुमोदित नहीं करता है | आप क्या करेंगे?
क) मंजूरी की प्रतीक्षा
किये बिना अवकाश पर चले जायेंगे |
ख) बीमारी का बहाना बना कर
अवकाश पर चले जायेंगे |
ग) अवकाश के आवेदन पर
पुनर्विचार करने के लिए उच्चतर अधिकारी से बात करेंगे |
घ) आसन्न अधिकारी को
बताएँगे कि यह न्यायसंगत नहीं है |
उत्तर कुंजी के अनुसार सही
उत्तर ग) या घ) है |
विकल्प क) आपके
उत्तरदायित्वहीन होने को दर्शाता है और विकल्प ख) दर्शाता है कि आप झूठे और मक्कार
है | इस स्थिति में ग) और घ) ही सही विकल्प है |
७९. आप सुदूर क्षेत्र में जल आपूर्ति परियोजना पर कार्य कर रहे
है | किसी भी हालत में परियोजना की पूरी लागत वसूल कर पाना असंभव है | उस क्षेत्र
में आय का स्टार काफी नीचा है और २५ % जनता गरीबी की रेखा से निचे है | जलापूर्ति
की कीमत निर्धारण का नियम लेते समय आप क्या करेंगे?
क) यह अनुशंसा करेंगे कि
पूरी जलापूर्ति निशुल्क हो |
ख) यह अनुशंसा करेंगे कि
सभी उपयोगकर्ता नल लगाने हेतु इक बार तय शुल्क का भुगतान करे और पानी का उपयोग
निशुल्क हो |
ग) यह अनुशंसा करेंगे कि
गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए इक निर्धारित तय मासिक शुल्क हो और गरीबी
रेखा से निचे के परिवारों के लिए जलापूर्ति निशुल्क हो |
घ) यह अनुशंसा करेंगे कि
उपयोगकर्ता जल के उपभोग पर आधारित शुल्क का भुगतान करे जिसमे गरीबी रेखा से ऊपर
तथा निचे के परिवारों के लिए विभेदीकृत शुल्क निर्धारित किया जाए |
उत्तरकुंजी के अनुसार इसका
सही उत्तर ग) और घ) है |
विकल्प क) मुद्रीय घाटे को
देखते हुए तथा इस बात को ध्यान में रखते हुए निशुल्क सुविधा जल के दुरूपयोग को
बढ़ावा देगा, अनुपयुक्त है |
विकल्प ख) गरीबी रेखा से
नीचे के परिवारों पर ज्यादा बोझ डालता है (नल की स्थापना के लिए एकमुश्त शुल्क के
रूप में ) और फिर जल आपूर्ति निशुल्क होने पर जल के दुरूपयोग की सम्भावना है |
विकल्प ग ) एवं घ) सामाजिक
न्याय और सकारात्मक विभेदीकरण के साथ-साथ जल के दुरूपयोग की सम्भावना को भी न्यूनतम
स्तर पर रखते है|
८०. एक नागरिक के रूप में आपको एक सरकारी विभाग से कुछ काम है
| सम्बद्ध अधिकारी आपको बार-बार बुलाता है और आपसे अप्रत्यक्षतः बिना कुछ कहे
रिश्वत देने के इशारे करता है | आप अपना कार्य कराना चाहते है | आप क्या करेंगे?
क) रिश्वत दे देंगे |
ख) ऐसा व्यवहार करेंगे
मानों आप उसके इशारे नहीं समझ रहे हैं और अपने आवेदन पर डटे रहेंगे |
ग) रिश्वत के इशारों के
सम्बन्ध में मौखिक शिकायत के साथ उच्चतर अधिकारी के पास सहायता के लिए जायेंगे |
घ) इक औपचारिक शिकायत
भेजेंगे |
यूपीएससी की उत्तरकुंजी के
हिसाब से इसका सही उत्तर ख) एवं ग) है |
यहाँ विकल्प क) के सही होने
का सवाल ही नहीं उठता |
विकल्प ख ) सही होते हुए भी
इक लचर विकल्प है | धारणा यह ली गयी है कि यदि आप उसके इशारे न समझने का व्यवहार
करेंगे तो आजिज आकर वो आपका काम कर देगा | मगर मेरी धारणा में अगर वह अधिकारी आपको
बार-बार बुलाकर परेशान कर रहा है तो वह बेशर्मी की मोटी खाल से ढका नंगा इन्सान है
जिससे मरते दम तक बिना घूस लिए काम की आशा आकाशकुसुम की आशा जैसी ही है |
विकल्प ग) सही और तार्किक
है |
विकल्प घ) भी दमदार है पर
यूपीएससी ने किस हिसाब से इसे सही नहीं माना, वो मेरी समझ के परे है |
इक और अच्छा विकल्प जो यहाँ
मौजूद नहीं है वह यह है कि आप सूचना के अधिकार में आवेदन देकर अधिकारी से पूछे कि
इस कार्य को करने के लिए कितने समय की आवश्यकता है और इसपर अनावश्यक विलम्ब का कारण
क्या है? आपको उत्तर भेजने के पहले आपका काम कर दिया जाएगा |
वर्ष २०१२ एवं २०११ के
निर्णय क्षमता परखने के लिए आये प्रश्नों के विश्लेषण के बाद इन प्रश्नों को हल
करने के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव निम्नांकित हैं-
१.
अनिर्णय या निर्णय को
अनिश्चित काल तक टालने या उसे अपने सर से किसी और के सर पर लादने वाले विकल्पों से
बचे |
२.
सही विकल्प हमारे संविधान
और कानूनों की सीमा रेखा में हो, इस बात का ख्याल रखे |
३.
नेचुरल जस्टिस अर्थात
नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का हर निर्णय में पालन अनिवार्य है. इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कोई
दंड देने के पहले या उसके हितों के विपरीत निर्णय लेने के पहले उसे अपनी बात रखने
का अवसर अवश्य मिलना चाहिये |
४.
पक्षपात से अपने निर्णयों
में बचे | हमेशा ध्यान रखे कि हमारे निर्णय निष्पक्ष और जनता के लिए होने चाहिये |
५.
निर्णय लेने में कोई संदेह
हो तो गांधीजी के जंतर को याद जो हर एन सी ई आर टी की पुस्तक में आपको लिखा मिलता
है-
“तुम्हें एक जंतर
देता हूँ. जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे, तब तो यह कसौटी आजमाओ. जो सबसे गरीब और कमजोर
आदमी तुमने देखा हो, उसकी शकल याद करो,
और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम
विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के
लिए कितना उपयोगी होगा. क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू पा सकेगा?
यानि क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य
मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और
आत्मा अतृप्त है?
तब तुम देखोगे कि
तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त होता जा रहा है.”
आपके निर्णय पॉजिटिव
डिस्क्रिमिनेशन अर्थात सकारात्मक विभेदीकरण के सिद्धांत के अनुरूप हो सकते है |
६.
यूपीएससी के उत्तरों के लिए
व्यवहारिकता के ऊपर सिद्धांतों को प्रश्रय दे | लिखित परीक्षा में जिसके उत्तर अब
यूपीएससी अपनी वेबसाइट पर भी दे रही है, वो आपसे ऊँचे नैतिक मूल्यों वाले उत्तरों
की ही आशा करेगी भलेही उसे यह पता हो कि जो उत्तर है उसे अमल में लाना टेढ़ी खीर है
|
७.
जनता की किसी भी शिकायत को
अनदेखा न किया जाए, यह आपके उत्तरों में झलकना चाहिये | आप जनता के लिए काम
करेंगे, इस बात का हमेशा ख्याल रखे |
८.
दवाब में कोई निर्णय नहीं
लें, सबकी सुने पर निर्णय वही ले जो आपको अपने दिल से सही लगता है | अपने निर्णय
की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अप्रत्याशितता को बरक़रार रखे | यूपीएससी आपसे बुलंद
निर्णयों की अपेक्षा रखती है जो राष्ट्रहित में हों |
बस इन्हीं सुझावों के साथ
मैं आपसे विदा लेता हूँ. प्रारंभिक परीक्षा में सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ
|
----केशवेन्द्र कुमार---
डायरेक्टर, हायर सेकेंडरी
एजुकेशन
केरल