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रविवार, 14 अक्तूबर 2018

आपदा प्रबंधन -बदलते आयाम

आपदा प्रबंधन एक प्रशासक एवं एक नागरिक के रूप में भी हम में से हर एक के लिए एक प्रमुख क्षेत्र है | वर्तमान में केरल में आयी प्रलय सामान बाढ़ एवं भू-स्खलन ने भी हमें मानों चेतावनी दी है कि विकास को प्रकृति को साथ लेकर ही चलना होगा | हमें इस बात को समझना होगा की टिकाऊ  विकास प्रकृति के साथ लड़कर नहीं बल्कि उसको साथ लेकर ही संभव हो सकता है |

केरल की इस आपदा ने एक नया आयाम भी जोड़ा है आपदा प्रबंधन में | राज्य सरकार के साथ जनता, स्वयंसेवी संगठन, विद्यार्थी, अन्य राज्य, विदेशों में बसे भारतीय समुदाय, सब ने मिलकर जन भागीदारी के साथ बचाव, राहत और पुनर्वास का एक नया मॉडल सामने रखा |

सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में लगें छात्रों के लिए हमारे देश में इस समय आपदा प्रबंधन के विविध पहलुओं को इस आलेख में मैं आपके सामने संक्षेप में रख रहा हूँ |

भारत में वर्ष 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम के द्वारा आपदा प्रबंधन को संस्थागत ढांचा दिया गया | इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र, राज्य एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को रूप दिया गया है जिसकी अध्यक्षता क्रमशः प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री एवं जिला कलक्टर को सौंपी गयी है | इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2016, 1 जून को  भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को मंजूरी दी जो की सतत विकास लक्ष्यों एवं आपदा प्रबंधन में  सेंडाई फ्रेंमवर्क (सामाजिक व्यवस्था) को ध्यान में रखकर बनायीं गयी है |

आपदा प्रबंधन में सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है तैयारी का | आपदाओं को पूरी तरह से रोकना असंभव है | अगर आप तैयार हैं तो जान-माल की क्षति कम-से-कम होगी | इस सिलसिले में जिले, राज्य और देश में आपदा प्रबंधन प्लान बनाना एक प्रमुख प्रक्रिया है जहाँ आप हर तरह की आपदा की सम्भावना को मापते हैं और उससे निपटने की रणनीति बनाते हैं | इसके प्रमुख घटक हैं-
* जिले के स्तर पर सभी प्रमुख विभागों में आपदा की स्थिति में काम में आने वाले सभी उपकरण एवं सामग्री को हर समय तैयार हालत में रखना
* आपदा शेल्टर होम की पहचान एवं उसे हमेशा तैयार रखना 
*राजस्व विभाग, पुलिस विभाग, फायर एवं रेस्क्यू, स्वास्थय विभाग जैसे बचाव एवं राहत कार्य में प्रमुख भूमिका निभाने वाले विभागों की नियमित ट्रेनिंग एवं अभ्यास करवाना 
*जिले में अतीत में हुई आपदाओं को ध्यान में रखते हुए आपदा संभाव्यता मैपिंग करना और संवेदनशील क्षेत्रों में आवश्यक एहतियात बरतना , इस कार्य में जिले, राज्य या राज्य से बाहर के वैज्ञानिक संस्थाओं की मदद लेना 
*जिले में NGO एवं अन्य नागरिक संगठनों की क्षमता का आकलन और उन्हें भी इस कार्य में भागीदार बनाना 
*आस-पास के जिलों के साथ सहयोग एवं साझीदारी 
*सुदृढ़ संचार व्यवस्था एवं आपदा की स्थिति में वैकल्पिक संचार व्यवस्था का प्रबंध 

इन सब बातों का ध्यान रख कर  बनाये जिले आपदा प्रबंधन प्लान को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में विस्तृत चर्चा कर अंगीकृत किया जाता है | इस प्लान को हर छः महीने/ साल में अपडेट किया जाना इसके प्रभावी बने रहने के लिए अत्यावश्यक है | 


आपदा के समय प्रबंधन के तीन मुख्य चरण होते हैं- बचाव, राहत एवं पुनर्वास | पहला चरण बचाव का है जिसमे आपदा से प्रभावित लोगों और जानवरों को सुरक्षित स्थान पर पहुचाने का काम किया जाता है | इसके बाद का चरण राहत का है जहाँ आपदा प्रभावित क्षेत्रों एवं आपदा शेल्टर होम में लोगों को जरुरत की चीजें मुहैया करने का काम किया जाता है | इस चरण में लोगों के लिए खाना-पानी, कपडे, दवाये और अन्य जरुरत की चीजें जुटा कर उन तक पहुचाई जाती है | सबसे अंत का चरण है पुनर्वास जिसमे आपदा से प्रभावित लोगों को फिर से पहले की अवस्था में लाने की कोशिश की जाती है | यह चरण लम्बी प्रक्रिया है | 

केरल की आपदा का उदहारण ले तो यहाँ बचाव के कार्य में जिला प्रशासन के साथ कंधे-से -कन्धा मिलाकर NDRF, आर्मी, नेवी, एयर फ़ोर्स, पारा मिलिट्री फ़ोर्स, NGO एवं आम लोगों  ने बचाव कार्यों में हिस्सा लिया | केरल में मछुआरों ने जलमग्न क्षेत्रों में फंसे लोगों की जान बचाने में सराहनीय कार्य किया | स्वास्थ्य एवं आयुष  विभाग ने इस बात को सुनिश्चित किया की आपदा के बाद बिमारियों से कम-से-कम लोग प्रभावित हो  और हर राहत कैंप में लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो |  केरल के समाज ने इस विपदा का बड़ी ही गरिमा के साथ सामना किया | यह इस समाज की अन्तर्निहित मजबूती को दर्शाता है | 

शुरूआती बचाव कार्य के बाद के राहत कार्य के चरण में केंद्र एवं अन्य राज्य सरकारों ने एवं नागरिकों, संगठनों ने  अपनी तरफ से राहत कार्य में आवश्यक सामग्री पहुचाने में हरसंभव मदद की | कपडे, दवाएं , खाने- पीने की वस्तुएं, अन्य जरुरत सामग्री हर तरफ से पहुची | मीडिया, सोशल मीडिया एवं तकनीक ने जरुरत की चीजें सही जगह पहुचने में बड़ी मदद की |

इसके बाद का पुनर्वास का चरण खासकर बड़ी आपदा के बाद एक लम्बा समय लेता है | केरल की आपदा में भी आधारभूत संरचना, घर, कृषि, रोजगार, पर्यटन - इन सबको पूर्वावस्था में आने में एक लम्बा समय लगेगा | मगर इनके लिए सही दिशा में शुरुआत की जा चुकी है |  इस तरह की आपदा यह भी सिखाती है की आपदा की सम्भावना वाले क्षेत्रों में कोई भी काम या आधारभूत संरचना आपदा को ध्यान में रखकर ही बनायीं जानी चाहिए |

भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बीते वर्षों में काफी प्रगति हुई है | मगर, आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित करने, जान-माल का नुकसान कम-से-कम करने और समाज और प्रशासन की आपदा को रोकने एवं उससे निपटने की क्षमता विकसित करने के क्षेत्र में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है |  आपदा प्रबंध के बारे में सूत्र वाक्य के तौर पर कह सकते है कि- तैयारी ही बचाव है |

((*कुछ उपयोगी लिनक्स -
https://ndma.gov.in/images/guidelines/NPDM-HINDI.pdf

https://ndma.gov.in/hi/

शुभकामनाओं के साथ,
केशवेन्द्र कुमार, आईएएस